कोविड-19 का पुनः संक्रमण | 05 Apr 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा 1,300 ऐसे व्यक्तियों के मामलों की जांँच की गई है जो दो बार कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं।
- जांँच में पाया गया कि 1,300 लोगों में से 58 अर्थात् 4.5 प्रतिशत लोग कोरोना से दोबारा संक्रमित हुए।
प्रमुख बिंदु:
-
पुनः संक्रमण के वैश्विक मामले:
- पुनः संक्रमण के पहले मामले की पुष्टि हॉन्गकॉन्ग में की गई।
- अमेरिका और बेल्जियम में भी कुछ मामले सामने आए।
- हालाँकि भारत में भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें लोगों का कोरोना टेस्ट कई बार पॉज़िटिव आया परंतु ऐसे मामलों को कोरोना के केस में शामिल नहीं किया जा सकता है।
- इस प्रकार के मामले परसिस्टेंट वायरल शेडिंग (Persistent Viral Shedding) का परिणाम है। वायरल शेडिंग से तात्पर्य शरीर में वायरस के विस्तार से होता है।
परसिस्टेंट वायरल शेडिंग:
- जब कोई व्यक्ति SARS-CoV-2 जैसे श्वसन वायरस (Respiratory Virus) से संक्रमित हो जाता है तो वायरस के कण विभिन्न प्रकार के वायरल रिसेप्टर (Viral Receptor) के साथ बंँधे होते हैं।
- कोरोना वायरस से ठीक होने वाले लोगों में कोरोना के निम्न स्तर के वायरस कम-से-कम तीन महीने तक रह सकते हैं।
- इस निम्न स्तर के वायरस में दूसरों को बीमार करने और संक्रमित कर देने की सीमित क्षमता ही होती है. इस वायरस का पता डायग्नोस्टिक टेस्ट के माध्यम से लगाया जा सकता है।
- इस प्रकार लगातार वायरस से विकसित होने वाली बीमारी को पर्सिस्टेंट वायरल शेडिंग कहा जाता है।
-
पुनः संक्रमण के अध्ययन का महत्त्व:
- यह स्पष्ट करना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है कि एक व्यक्ति जो एक बार संक्रमित हो चुका है क्या उसके द्वारा बीमारी के खिलाफ स्थायी प्रतिरक्षा विकसित की जा चुकी है या वह कुछ समय बाद पुनः संक्रमित होता है।
- पुनः संक्रमित होने की संभावना के प्रति समझ कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) का मुकाबला करने में महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
- यह बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने हेतु आवश्यक रणनीतिक हस्तक्षेप के निर्धारण में सहायक होगा।
- यह इस बात का आकलन करने में भी मदद करेगा कि कब तक लोगों को मास्क का उपयोग और शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करना होगा।
- इसका प्रभाव टीकाकरण की रफ्तार पर भी देखने को मिलेगा।
- यह स्पष्ट करना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है कि एक व्यक्ति जो एक बार संक्रमित हो चुका है क्या उसके द्वारा बीमारी के खिलाफ स्थायी प्रतिरक्षा विकसित की जा चुकी है या वह कुछ समय बाद पुनः संक्रमित होता है।
-
पुनः संक्रमण का निर्धारण:
- पुनः संक्रमण की पुष्टि हेतु वैज्ञानिकों द्वारा वायरस के नमूने का जीनोम अनुक्रम विश्लेषण (Genome sequence analysis) किया गया।
- क्योंकि वायरस में लगातार उत्परिवर्तन की क्रिया होती रहती है। दो नमूनों के जीनोम अनुक्रमों में कुछ अंतर विद्यमान होता है।
- हालांँकि जीनोम विश्लेषण हेतु प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति से वायरस के नमूने एकत्र नहीं किये गए हैं।
- आमतौर पर अधिकांश मामलों में पिछले संक्रमण का कोई जीनोम अनुक्रम नहीं देखा गया, जिससे तुलना की जा सके।
- इस प्रकार ICMR के वैज्ञानिकों द्वारा अपने अध्ययन में उन मामलों को शामिल किया गया जिनमें रोगी 102 दिनों के भीतर कम-से-कम दो बार संक्रमित हुए थे लेकिन इस प्रकार के संक्रमण को परसिस्टेंट वायरल शेडिंग में शामिल नहीं किया जाएगा।
- सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (Centers for Disease Control- CDC) के अनुसार, वायरल शेडिंग में लगभग 90 दिनों का समय लगता है।
- पुनः संक्रमण की पुष्टि हेतु वैज्ञानिकों द्वारा वायरस के नमूने का जीनोम अनुक्रम विश्लेषण (Genome sequence analysis) किया गया।
-
पुनः संक्रमण के लक्षण:
- पुनः संक्रमण की मध्यावधि में अधिकांश रोगियों में वायरस का कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है, हालांँकि कुछ रोगियों द्वारा हल्के लक्षणों की पुष्टि की गई है।
- कुछ लक्षणों में रुक-रुक कर बुखार आना, खांँसी या सांँस लेने में तकलीफ आदि शामिल हैं।
-
पुनः संक्रमण का निहितार्थ:
- पुनः संक्रमण के कारण स्थायी प्रतिरक्षा (Permanent Immunity) प्रणाली को विकसित नहीं किया जा सकता है।
- यदि प्रत्येक संक्रमित व्यक्ति के जीनोम का विश्लेषण करना संभव हो तो पुनः संक्रमण की पुष्टि सही तरीके से की जा सकती है।
- यदि पुनः संक्रमण के मामलों की पुष्टि हो जाती है तो मास्क का प्रयोग और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपाय सभी लोगों के लिये सामान्य हो जाएंगे।
- पुनः संक्रमण के कारण स्थायी प्रतिरक्षा (Permanent Immunity) प्रणाली को विकसित नहीं किया जा सकता है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद:
- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) जैव चिकित्सा अनुसंधान के निर्माण, समन्वय एवं संवर्द्धन हेतु भारत का शीर्ष निकाय है।
- ICMR द्वारा जारी अधिदेश समाज के लाभ हेतु चिकित्सा अनुसंधान का संचालन, समन्वय और कार्यान्वयन करना है जो उत्पादों/प्रक्रियाओं में चिकित्सा नवाचारों का अनुवाद कर उन्हें सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में शामिल करता है।
- यह भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से वित्तपोषित है।