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भारतीय अर्थव्यवस्था

COVID- 19 महामारी और बीमा दावा

  • 06 May 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

बीमा पॉलिसी, फोर्स मेजर, सामान्य बीमा परिषद, बीमा के संबंध में FDI नीति, भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण

मेन्स के लिये:

भारत में बीमा संबंधी नियम 

चर्चा में क्यों?

जिन कंपनियों को COVID- 19 महामारी के तहत लगाए गए लॉकडाउन के कारण व्यावसायिक नुकसान का सामना करना पड़ा है, उन कंपनियों द्वारा किये गए बीमा अनुबंधों के कुछ प्रावधानों/क्लॉज़ को लेकर विवाद होने की संभावना है।

मुख्य बिंदु:

  • अनेक कंपनियों द्वारा अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण होने वाली हानि को कवर करने के लिये बीमा पॉलिसियाँ ली गई थीं, किंतु इस बात को लेकर विवाद हो रहा है कि क्या COVID-19 महामारी को भी इन बीमा पॉलिसियों के अंतर्गत कवर किया गया है।
  • परिणामस्वरूप कॉर्पोरेट इकाइयों को ‘स्टैंडर्ड फायर एंड स्पेशल पेरिल्स पॉलिसी’ (Standard Fire and Special Perils Policy), जिसे सामान्यत: ‘प्रॉपर्टी पॉलिसी’ (Property Policy) के नाम से जाना जाता है, के तहत कोई बीमा क्लेम (I nsurance Claim) नहीं मिलेगा। 

कॉर्पोरेट इकाइयों की बीमा पॉलिसी:

  • सामान्यत: किसी कॉर्पोरेट इकाई द्वारा दो प्रकार की बीमा पॉलिसी ली जाती है:
    • संपत्ति क्षति पॉलिसी (Material Damage Policy): 
      • यह पॉलिसी आग, बाढ़ या मशीन त्रुटि के कारण संपत्ति का नुकसान को कवर करती है।
    • व्यवसाय व्यवधान पॉलिसी (Business interruption policy):
      • जब व्यवसाय में हानि ‘संपत्ति क्षति नीति’ (Property Damage Policy) के तहत उल्लिखित क्लॉज़ के कारण हुई हो।

प्रॉपर्टी पॉलिसी संबंधी प्रावधान:

  • बीमा कंपनियों की नीतियों में लॉकडाउन के कारण कॉर्पोरेट को होने वाले नुकसान संबंधी कोई प्रावधान नहीं है।
  • ‘प्रॉपर्टी पॉलिसी’ के तहत यदि किसी क्षति या आग के कारण बीमित संयंत्र या कार्यालय बंद हो जाता है, तो कंपनी नुकसान की भरपाई का दावा करने की पात्र होगी।
  • यदि कोई इकाई लगातार 30 दिनों तक बंद रहती है तो पॉलिसी कवर लैप्स (Lapse) हो जाएगा। 

पॉलिसी लैप्स में राहत:

  • राहत के रूप में वर्तमान 30 दिनों की अवधि में राहत दी गई है तथा बीमा कंपनियों द्वारा उन कॉर्पोरेट्स को भी मुआवज़ा दिया जाएगा जो एक महीने से अधिक समय से बंद है।
  • इसका मतलब है कि कॉर्पोरेट इकाईयाँ बीमा मुआवज़े का दावा कर सकती हैं यदि आग या किसी अन्य नुकसान के कारण संपत्ति क्षतिग्रस्त हो जाती है, भले ही 3 मई की अवधि के दौरान कारखाना या इकाई चालू न हो।

फोर्स मेजर (Force Majeure):

  • फोर्स मेजर या 'एक्ट ऑफ गॉड' (Act of God) से आशय ऐसी असाधारण घटनाओं और परिस्थितियों से है, जो मानव नियंत्रण से परे हों। ज़्यादातर बीमाकर्त्ता फोर्स मेजर क्लॉज उपयोग अपनी बीमा पॉलिसियों में करती है।
  • ‘फोर्स मेजर क्लॉज़’ बीमा पॉलिसी में शामिल दोनों पक्षों को अनुबंध के दायित्त्व या बाध्यताओं से मुक्त करता है। 'फोर्स मेजर’ से संबंधित नियम ‘भारतीय संविदा अधिनियम, 1872’ (Indian Contract Act, 1872) के तहत निर्धारित किये गए हैं।

भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण

(Insurance Regulatory and Development Authority of India- IRDAI): 

  • भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण एक स्वायत्त सांविधिक एजेंसी है जिसका कार्य भारत में बीमा और पुनः बीमा करने वाले उद्योगों का नियमन करना और उन्हें बढ़ावा देना है। 
  • इसे बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण अधिनियम,1999 के तहत भारत सरकार द्वारा गठित किया गया था।

‘सामान्य बीमा परिषद’

(General Insurance Council):

  • ‘भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण’ द्वारा वर्ष 2001 में बीमा अधिनियम, 1938 (Insurance Act, 1938) की धारा 64C के तहत ‘सामान्य बीमा परिषद’ (General Insurance Council) का गठन किया गया है।
  • यह IRDAI और गैर-जीवन बीमा उद्योग के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी का कार्य करता है। यह सरकार तथा उद्योग के बीच के मुद्दों में समन्वय स्थापित करने का भी कार्य करता है।

बीमा के संबंध में FDI नीति:

  • उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) ने बीमा बिचौलियों को 100% FDI की अनुमति देने के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment-FDI) नीति में संशोधन किया है। 
  • जिसमें बीमा ब्रोकिंग, बीमा कंपनियाँ, थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर, सर्वेयर और लॉस असेसमेंट शामिल हैं। 
    • उल्लेखनीय है कि बीमा बिचौलिये वे एजेंट होते हैं जो बीमा कंपनियों और ग्राहकों के मध्य संबंध स्थापित करते हैं। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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