लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

भारतीय अर्थव्यवस्था

COVID- 19 संकट इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़: PM मोदी

  • 01 Apr 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

सामाजिक दूरी 

मेन्स के लिये:

आपदा प्रबंधन में मानव-केंद्रित संकल्पना  

चर्चा में क्यों?

विदेश मंत्रालय की एक विज्ञप्ति के अनुसार, भारतीय प्रधानमंत्री ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति के साथ हुई टेलीफोन वार्ता पर फ्राँस में महामारी के कारण हुई मौतों पर शोक व्यक्त किया। 

मुख्य बिंदु:

  • दोनों देशों की वार्ता में भारतीय प्रधानमंत्री ने COVID- 19 महामारी को 'इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़' (Turning Point in History) के रूप में इंगित किया है।
  • भारत तथा फ्राँस के दोनों नेताओं ने विशेषज्ञों में निवारक उपायों (Prevenstive Measures), उपचार पर शोध तथा टीके संबंधी जानकारी साझा करने के लिये सहमति व्यक्त की है।

मानव-केंद्रित अवधारणा (Human-Centric Concept):

  • फ्राँस के राष्ट्रपति ने, भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा COVID- 19 महामारी को इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ मानने वाले दृष्टिकोण पर दृढ़ता से सहमति व्यक्त की तथा बताया कि COVID- 19 महामारी से निपटने के लिये वैश्वीकरण के युग में हमें एक नवीन मानव-केंद्रित अवधारणा (Human-Centric Concept) की आवश्यकता है। 
  • हाल ही में आयोजित 'G- 20 वर्चुअल समिट' में भारतीय प्रधानमंत्री बताया कि महामारी, जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिये सिर्फ आर्थिक पक्ष ही नहीं बल्कि मानवीय पहलुओं में भी सहयोग की आवश्यकता है।
  • दोनों देशों के शीर्ष नेताओं ने सहमति जताई कि जलवायु परिवर्तन जैसी अन्य वैश्विक समस्याएँ समग्र मानवता को प्रभावित करती है, अत: इनमें अधिक मानवीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • साथ ही इस बात पर बल दिया कि वर्तमान COVID- 19 संकट के दौरान अफ्रीका के कम विकसित देशों की ज़रूरतों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। 

सामाजिक दूरी (Social Distancing) की व्यावहारिकता: 

  • हाल में लॉकडाउन के दौरान लागू ‘सामाजिक दूरी’ का दुनिया भर के स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा समर्थन किया गया तथा उनका मानना है कि कोरोनोवायरस के प्रसार को रोकने का केवल यही एक तरीका है। जबकि कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि सामाजिक दूरी की अवधारणा अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक पूर्वाग्रहों को बढ़ावा दे सकती है। इसे हम निम्नलिखित देशों के उदाहरणों से समझ सकते हैं-
  • कोरिया:
    • दक्षिण कोरिया में COVID- 19 महामारी की शुरुआत एक विवादास्पद चर्च से मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस चर्च में आने वाले अनुयायियों के बीच वुहान से दक्षिण कोरिया तक लगातार यात्रा के कारण COVID- 19 का प्रसार हुआ।  
    • नतीजतन, महामारी की शुरुआत में सभी आधे से अधिक मरीज़ इस धर्मिक आंदोलन से संबंधित थे, जो कि कोरियाई आबादी का 1% से भी कम है। सामाजिक दूरी ने इस धार्मिक समुदाय को जो पहले से कोरियाई समाज के हाशिये पर है और अधिक खराब स्थिति में ला दिया है।
  • ईरान:
    • ईरान में विशेष परिस्थितियों के कारण यह पश्चिम एशिया में COVID-19 का एक प्रमुख हॉट स्पॉट बन गया है। 
    • यह अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के कारण चीन के साथ संबंध विकसित करने के लिये मजबूर था, ऐसे में ईरानी व्यापारी जिसने वुहान की व्यापारिक यात्रा की, ईरान में कथित तौर पर प्रथम COVID- 19 रोगी माना गया। ईरान में रोग संचरण का प्रारंभिक केंद्र कॉम (Qom) नामक धार्मिक स्थल था, जो शिया मुसलमानों के लिये एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है। 
    • ईरान में COVID- 19 का अगला केंद्र ईरानी संसद था, जिसका ईरानी समाज के आध्यात्मिक केंद्र कॉम के साथ मज़बूत संबंध थे। सभी सांसदों में से 8% अर्थात 23 सांसद 3 मार्च तक इस महामारी से संक्रमित थे। सामाजिक दूरी ईरान में विशेष रूप से सत्ताधारी अभिजात वर्ग के बीच सामाजिक अभिवादन के लोकप्रिय रूपों के विपरीत थी।
    • ईरान में इस महामारी के प्रत्येक मामले में वैश्वीकरण तथा अंतर्राष्ट्रीय पहलुओं से जोड़ा गया तथा राजनीतिक व धार्मिक प्रक्रियाओं ने इन मामलों को ओर तेज़ करने का कार्य किया।
  • श्रीलंका तथा भारत:
    • भारत और श्रीलंका में COVID- 19 महामारी की शुरुआत पर्यटन तथा श्रम प्रवास से मानी जाती है जो बहुत कुछ वैश्वीकरण के साथ जुड़ी हुई हैं। श्रीलंका तथा केरल की एक बड़ी श्रम शक्ति विदेशों में कार्यरत हैं। इन श्रमिकों के विदेश से आगमन ने दक्षिण एशियाई देशों में COVID- 19 महामारी के प्रसार में योगदान दिया है। उदाहरण के लिये श्रीलंका में 15 मार्च तक COVID- 19 के 18 रोगियों में 11 (61%) इटली से आने वाले श्रीलंकाई श्रमिक थे।

आगे की राह:

  • इस प्रकार, COVID- 19 महामारी को, विशेष रूप से दक्षिण विश्व के देशों में वैश्वीकरण की बुराई के रूप में देखा जा सकता है। सामाजिक दूरी अब तक इतनी कारगर नहीं रही क्योंकि श्रमिक तथा उनके परिवार अक्सर दो अलग-अलग राज्यों में रह रहे होते हैं, तथा दोनों स्थानों पर इन परिवारों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 
  • हमें एक सैन्य शैली लॉकडाउन तथा सामाजिक दूरी से परे सोचने तथा दक्षिण विश्व में महामारी से निपटने में वैश्वीकरण से उत्पन्न समस्याओं के समाधान की आवश्यकता है। 

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2