भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2020 | 17 Feb 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ द्वारा जारी ‘भ्रष्टाचार बोध सूचकांक’ (CPI) में भारत छह पायदान खिसककर 180 देशों में 86वें स्थान पर आ गया है।
- वर्ष 2019 में भारत 180 देशों में 80वें स्थान पर था।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल
- ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1993 में बर्लिन (जर्मनी) में की गई थी।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य नागरिक उपायों के माध्यम से वैश्विक भ्रष्टाचार का मुकाबला करना और भ्रष्टाचार के कारण उत्पन्न होने वाली आपराधिक गतिविधियों को रोकने हेतु कार्रवाई करना है।
- इसके प्रकाशनों में वैश्विक भ्रष्टाचार बैरोमीटर और भ्रष्टाचार बोध सूचकांक शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु
परिचय
- सूचकांक के तहत कुल 180 देशों को उनकी सार्वजनिक व्यवस्था में मौजूद भ्रष्टाचार के कथित स्तर पर विशेषज्ञों और कारोबारियों द्वारा दी गई राय के अनुसार रैंक दी जाती है।
- इस सूचकांक में 0 से 100 तक के स्तर का पैटर्न उपयोग किया जाता है, जहाँ 0 का अर्थ सबसे कम भ्रष्टाचार और 100 का अर्थ सर्वाधिक भ्रष्ट से है।
- भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2020 विश्व भर में भ्रष्टाचार की स्थिति की एक गंभीर छवि प्रस्तुत करता है। सूचकांक के मुताबिक, विश्व के अधिकांश देशों ने बीते एक दशक में भ्रष्टाचार से निपटने की दिशा में कोई प्रगति नहीं की है, वहीं दो-तिहाई से अधिक देशों का स्कोर 50 से नीचे है और सभी देशों का औसत स्कोर 43 है।
- इसके अलावा भ्रष्टाचार न केवल कोरोना वायरस के विरुद्ध वैश्विक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया को प्रभावित करता है, बल्कि यह लोकतंत्र पर भी निरंतर संकट उत्पन्न करता है।
शीर्ष प्रदर्शन
- भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2020 के तहत शीर्ष देशों में डेनमार्क (स्कोर: 88) और न्यूज़ीलैंड (स्कोर: 88) हैं, जिनके बाद फिनलैंड, सिंगापुर, स्वीडन और स्विट्ज़रलैंड का स्थान है, जिसमें सभी ने 85 स्कोर प्राप्त किया है।
खराब प्रदर्शन
- सूचकांक में 180 देशों की सूची में दक्षिण सूडान (12) और सोमालिया (12) को निम्न स्थान प्राप्त हुआ है, इसके बाद सीरिया (14), यमन (15) और वेनेज़ुएला (15) का स्थान है।
क्षेत्र विशिष्ट
- सबसे अधिक स्कोर करने वाले क्षेत्रों में पश्चिमी यूरोप और यूरोपीय संघ शामिल हैं, जिनका औसत स्कोर 66 है।
- सबसे कम स्कोर करने वाले क्षेत्रों में उप-सहारा अफ्रीका (32) तथा पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया (36) शामिल हैं।
भारत संबंधी आँकड़े
- वर्ष 2020 के सूचकांक में भारत का कुल स्कोर 40 है, जबकि वर्ष 2019 में यह 41 था।
- भारत ने भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों में काफी कम प्रगति हासिल की है, यद्यपि सरकार द्वारा इस दिशा में कई प्रतिबद्धताएँ प्रकट की गई हैं, किंतु उन प्रतिबद्धताओं का कोई विशिष्ट प्रभाव देखने को नहीं मिला है।
भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य और कोरोना वायरस
- भ्रष्टाचार, सार्वजनिक व्यय को आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं से दूर कर देता है। वे देश जहाँ भ्रष्टाचार का स्तर काफी अधिक होता है, वहाँ न तो आर्थिक विकास पर ध्यान दिया जाता है और न ही स्वास्थ्य पर पर्याप्त खर्च किया जाता है।
- भ्रष्टाचार का उच्च स्तर, निम्न सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल कवरेज और शिशु तथा मातृत्त्व मृत्यु दर, कैंसर, मधुमेह, श्वसन और हृदय संबंधी रोगों से होने वाली मौतों की उच्च दर से जुड़ा हुआ है।
- भ्रष्टाचार, संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने की दिशा में उपस्थित बड़ी बाधाओं में से एक है तथा कोरोना वायरस महामारी ने उन लक्ष्यों को प्राप्त करना और भी कठिन बना दिया है।
- कोरोना वायरस केवल एक स्वास्थ्य या आर्थिक संकट नहीं है, बल्कि यह एक भ्रष्टाचार संकट भी है, जिसमें निष्पक्ष और न्यायसंगत वैश्विक प्रतिक्रिया के अभाव के कारण अनगिनत लोगों ने अपना जीवन गँवा दिया है।
- महामारी ने प्रणाली में मौजूद कमज़ोर निरीक्षण और अपर्याप्त पारदर्शिता जैसी कमियों को उजागर किया है। उन देशों में जहाँ भ्रष्टाचार का स्तर काफी अधिक है, COVID-19 महामारी के प्रबंधन में लोकतांत्रिक नियम-कानूनों का काफी उल्लंघन हुआ है।
- सरकारों द्वारा संसदों को निलंबित करने, सार्वजनिक जवाबदेही तंत्र को समाप्त करने और असंतुष्टों के विरुद्ध हिंसा भड़काने के लिये महामारी का उपयोग किया जा रहा है।
सिफारिशें
- निरीक्षण संस्थानों को मज़बूत किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उपलब्ध संसाधन लोगों तक पहुँच सकें। भ्रष्टाचार-रोधी प्राधिकरणों और निरीक्षण संस्थानों के पास अपने उत्तरदायित्त्वों को पूरा करने के लिये पर्याप्त धन, संसाधन और स्वतंत्रता होनी चाहिये।
- अनुचित प्रथाओं पर रोक लगाने, हितों के टकराव क्षेत्रों की पहचान करने और उचित मूल्य निर्धारित करने के लिये पारदर्शी करार प्रणाली सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- लोकतंत्र की रक्षा के लिये आवश्यक है कि सरकारों को जवाबदेह बनाने में नागरिक समूहों और मीडिया को सक्षम बनाया जाए।
- प्रासंगिक डेटा का प्रकाशन किया जाना चाहिये और सूचना तक पहुँच की गारंटी दी जानी चाहिये, ताकि जनता को आसान, सुलभ और समय पर सार्थक जानकारी मिलती रहे।