विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
कोरोनल मास इजेक्शन
- 10 Sep 2021
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:कोरोनल मास इजेक्शन, सूर्य की संरचना मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण नहीं |
चर्चा में क्यों?
भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों के साथ सूर्य के वायुमंडल (Solar Corona) से विस्फोट के चुंबकीय क्षेत्र को मापा है, जो सूर्य के आंतरिक भाग की एक दुर्लभ झलक प्रस्तुत करता है।
- कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal Mass Ejection- CME) सूर्य की सतह पर सबसे बड़े विस्फोटों में से एक है जिसमें अंतरिक्ष में कई मिलियन मील प्रति घंटे की गति से एक अरब टन पदार्थ हो सकता है।
प्रमुख बिंदु:
- अनुसंधान के संदर्भ में:
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (Indian Institute of Astrophysics- IIA) के वैज्ञानिकों ने पहली बार विस्फोटित प्लाज़्मा से जुड़े कमज़ोर थर्मल रेडियो उत्सर्जन का अध्ययन किया, जो चुंबकीय क्षेत्र और विस्फोट की अन्य भौतिक स्थितियों को मापता है।
- IIA, कर्नाटक के गौरीबिदनूर में स्थित विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) का एक स्वायत्त संस्थान है।
- टीम ने 1 मई, 2016 को हुए कोरोनल मास इजेक्शन (CME) से प्रवाहित प्लाज़्मा का अध्ययन किया।
- प्लाज़्मा को पदार्थ की चौथी अवस्था के रूप में भी जाना जाता है। उच्च तापमान पर इलेक्ट्रॉन परमाणु के नाभिक से अलग हो जाते हैं और प्लाज़्मा या पदार्थ की आयनित अवस्था बन जाते हैं।
- कुछ अंतरिक्ष-आधारित दूरबीनों के साथ-साथ IIA के रेडियो दूरबीनों की मदद से उत्सर्जन का पता लगाया गया, जो सूर्य को अत्यधिक पराबैंगनी और सफेद प्रकाश में देखते थे।
- वे इस उत्सर्जन के ध्रुवीकरण को मापने में भी सक्षम थे, जो उस दिशा का संकेत है जिसमें तरंगों के विद्युत और चुंबकीय घटक दोलन करते हैं।
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (Indian Institute of Astrophysics- IIA) के वैज्ञानिकों ने पहली बार विस्फोटित प्लाज़्मा से जुड़े कमज़ोर थर्मल रेडियो उत्सर्जन का अध्ययन किया, जो चुंबकीय क्षेत्र और विस्फोट की अन्य भौतिक स्थितियों को मापता है।
- ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ के विषय में:
- सूर्य एक अत्यंत सक्रिय निकाय है, जहाँ कई हिंसक और विनाशकारी घटनाओं के ज़रिये भारी मात्रा में गैस और प्लाज़्मा बाहर निकालता है।
- इसी प्रकार के विस्फोटों का एक वर्ग ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (CMEs) कहा जाता है।
- ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ सौरमंडल में होने वाले सबसे शक्तिशाली विस्फोट हैं।
- ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ के अंतर्निहित कारणों को अभी भी बेहतर तरीके से समझा नहीं जा सका है। हालाँकि खगोलविद इस बात से सहमत हैं कि सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र इसमें एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
- यद्यपि ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ सूर्य पर कहीं भी हो सकता है, किंतु सूर्य की ‘दृश्यमान सतह’ (जिसे फोटोस्फीयर कहा जाता है) के केंद्र के पास उत्पन्न ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ अध्ययन की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि इनका प्रभाव पृथ्वी पर प्रत्यक्ष देखने को मिलता है।
- इसका अध्ययन वैज्ञानिकों को अंतरिक्ष मौसम को समझने में मदद करता है।
- जब एक मज़बूत ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ पृथ्वी के करीब होता है, तो यह पृथ्वी के आसपास मौजूद उपग्रहों में इलेक्ट्रॉनिक्स को नुकसान पहुँचा सकता है और पृथ्वी पर रेडियो संचार नेटवर्क को बाधित कर सकता है।
- जब प्लाज़्मा बादल हमारे ग्रह से टकराता है, तो एक भू-चुंबकीय तूफान आता है।
- भू-चुंबकीय तूफान पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर (पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा नियंत्रित अंतरिक्ष) की एक बड़ी गड़बड़ी है जो तब होती है जब सौर हवा से पृथ्वी के आसपास के अंतरिक्ष वातावरण में ऊर्जा का एक बहुत ही कुशल आदान-प्रदान होता है।
- वे पृथ्वी पर आकाश से तीव्र प्रकाश उत्पन्न कर सकते हैं, जिसे औरोरा (Auroras) कहा जाता है।
- कुछ ऊर्जा और छोटे कण पृथ्वी के वायुमंडल में उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों पर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की यात्रा करते हैं।
- वहाँ कण वातावरण में गैसों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं जिसके परिणामस्वरूप आकाश में प्रकाश का सुंदर प्रदर्शन होता है।
- पृथ्वी के उत्तरी वातावरण में औरोरा को उरोरा बोरेलिस या उत्तरी रोशनी कहा जाता है। इसके दक्षिणी समकक्ष को औरोरा ऑस्ट्रेलिया या दक्षिणी रोशनी कहा जाता है।
- सूर्य एक अत्यंत सक्रिय निकाय है, जहाँ कई हिंसक और विनाशकारी घटनाओं के ज़रिये भारी मात्रा में गैस और प्लाज़्मा बाहर निकालता है।
सूर्य की संरचना
- सूर्य का कोर- ऊर्जा थर्मोन्यूक्लियर प्रतिक्रियाओं के माध्यम से उत्पन्न होती है जो सूर्य के कोर के भीतर अत्यधिक तापमान का निर्माण करती है।
- विकिरण क्षेत्र (Radiative Zone) - ऊर्जा धीरे-धीरे बाहर की ओर जाती है, सूर्य की इस परत के माध्यम से विकिरण करने में 1,70,000 से अधिक वर्ष लगते हैं।
- संवहन क्षेत्र (Convection Zone)- गर्म और ठंडी गैस की संवहन धाराओं के माध्यम से ऊर्जा सतह की ओर बढ़ती रहती है।
- क्रोमोस्फीयर (Chromosphere)- सूर्य की यह अपेक्षाकृत पतली परत चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा निर्मित है जो विद्युत आवेशित सौर प्लाज़्मा को नियंत्रित करती है। कभी-कभी बड़े प्लाज़्मा लक्षण, जो विशिष्ठ होते हैं, बहुत ही कमज़ोर और गर्म कोरोना में निर्मित होते हैं और कभी-कभी सूर्य से दूर सामग्री को बाहर निकालते हैं।
- कोरोना (Corona)- कोरोना (या सौर वातावरण) के भीतर आयनित तत्त्व एक्स-रे और अत्यधिक पराबैंगनी तरंगदैर्ध्य में चमकते हैं। अंतरिक्ष उपकरण इन उच्च ऊर्जाओं पर सूर्य के कोरोना की छवि बना सकते हैं क्योंकि इन तरंगदैर्ध्य में फोटोस्फीयर (सौर वातावरण की सबसे निचली परत) काफी मंद होता है।
- कोरोनल स्ट्रीमर (Coronal Streamer)- कोरोना के बाहर प्रवाहित प्लाज़्मा को चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा कोरोनल स्ट्रीमर नामक पतले रूपों में आकार दिया जाता है, जो अंतरिक्ष में लाखों मील तक फैला होता है।
- सौर कलंक या सनस्पॉट ऐसे क्षेत्र होते हैं जो सूर्य की सतह पर काले दिखाई देते हैं। ये सूर्य की सतह के अन्य भागों की तुलना में ठंडे होते हैं, इसलिये काले दिखाई देते हैं।