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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारतीय वैज्ञानिकों की एक और महत्त्वपूर्ण नई खोज

  • 21 Aug 2017
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

भारत में पीने के पानी को शुद्ध करने हेतु प्राचीन समय से ही तांबे के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता रहा है । वैज्ञानिकों द्वारा तांबे के बर्तनों के जीवाणु रहित (antibacterial) होने के तर्क के संबंध में लंबे से अनुसंधान किया जा रहा था । मार्च 2012 में 'जर्नल ऑफ हेल्थ, पापुलेशन एंड न्यूट्रीशन' (Journal of Health, Population and Nutrition) में प्रकाशित एक लेख में वैज्ञानिकों द्वारा इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत किये गए हैं कि 16 घंटे तक तांबे के एक पात्र में संचित किये गए जल से रोगजनक जीवाणु, जैसे - ई-कोलाई तथा हैज़ा उत्पन्न करने वाले जीवाणु स्वतः ही नष्ट हो जाते हैं । इस बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा पीने के पानी को शुद्ध करने हेतु तांबे की छड़ों का इस्तेमाल करते हुए एक वाटर फिल्टर झिल्ली (water-filter membrane) का विकास किया है । भारतीय वैज्ञानिकों की यह खोज ‘Nanoscale’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुई है ।

खोज से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • वैज्ञानिकों द्वारा पीने के पानी से जीवाणुओं को नष्ट करने तथा बायोफौलिंग (कवक एवं अन्य शैवालों से फैलने वाले दूषण) को नियंत्रित करने हेतु पोलीविनीलीडेंस फ्लोराइड वाटर फिल्टर झिल्ली [Polyvinylidene fluoride (PVDF) water-filter] का प्रयोग किया गया है ।

  • ऐसा करने के लिये उन्होंने सबसे पहले पॉलिमर (styrene maleic anhydride or SMA) के साथ पी.वी.डी.एफ. झिल्ली को मिश्रित किया ।

  • हालाँकि, इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि तांबा एक उत्कृष्ट जीवाणुरोधी एजेंट होता है, तथापि डब्लू.एच.ओ. के मानकों के अनुसार, पानी में तांबे की मात्रा 1.3 पी.पी.एम. से अधिक होने की स्थिति में यह विषाक्त भी हो सकता है ।

  • इस बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा जैव-संगत पॉलिमर [biocompatible polymer (polyphosphoester or PPE)] लेपित तांबा ऑक्साइड का इस्तेमाल किया गया है ताकि पानी में तांबे के आयनों को नियंत्रित किया जा सके ।

  • पॉलिमर के साथ लेपित तांबा ऑक्साइड की झरझरी जेलनुमा संरचना (porous gel-like structure) को झिल्ली पर परत चढ़ाने के लिये इस्तेमाल किया गया । ध्यातव्य है कि तांबे पर परत चढ़ाने के लिये पॉलिमर का इस्तेमाल तांबे को दूषण-विरोधी तत्त्व के रूप में प्रस्तुत करता है ।

  • झिल्ली पर लेपित एस.एम.ए. पॉलिमर, जो पानी के संपर्क में आते ही आंशिक रूप से हाइड्रोलाइज़्ड हो जाते है, डिस्क आकार की संरचनाओं का निर्माण करने के लिये जीवाणुओं की बाहरी झिल्ली के साथ संपर्क करते हैं ।

जीवाणुओं पर प्रभाव

  • इस प्रकार जीवाणुओं से निकलने वाला यह एंज़ाइम तांबा ऑक्साइड पर लगी पॉलिमर कोटिंग को साफ करता है जिसके परिणामस्वरूप पानी में झिल्ली से तांबा आयनों का नियंत्रित मात्रा में ही निस्तारण हो पाता है ।

  • जीवाणुओं की अनुपस्थिति से तीन दिनों में मात्र 0.035 पी.पी.एम. और 30 दिनों में मात्र 0.13 पी.पी.एम. तांबा आयन ही पानी में निस्तारित हो पाते है ।

  • लेकिन जब पानी में जीवाणुओं की एकाग्रता (प्रति मिलीग्राम पानी में जीवाणुओं की 10,000 समूह बनाने वाली इकाइयाँ) बहुत अधिक बढ़ जाती है तो पानी में तांबा आयनों की मात्रा प्रति चार घंटे में 1.6 पी.पी.एम के स्तर पर आ जाती है, जो कि डब्ल्यू.एच.ओ. तय सीमा से बहुत अधिक है । 

  • विदित हो कि पानी में 1.6 पी.पी.एम. तांबा आयन की उपस्थिति पानी को विषैला बना देती है ।

  • इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों द्वारा तांबे की छड़ों पर पॉलिमर का लेपन किया गया है, इससे न केवल इसके क्षरण की दर धीमी हो जाती है बल्कि इसे पूरी तरह से समाप्त होने में भी तकरीबन एक साल का समय लग जाता हैं । स्पष्ट रूप से ऐसा करने से पानी में तांबे के आयनों की मात्रा तय सीमा से अधिक नहीं होती है और पानी भी शुद्ध हो जाता है ।

चांदी के स्थान पर तांबे का उपयोग

  • इस अध्ययन की सबसे विशेष बात यह है की इसमें जल के शुद्धिकरण हेतु चांदी की बजाय तांबा ऑक्साइड का उपयोग किया गया है । इसका कारण यह है कि चांदी की तुलना में तांबा अधिक सस्ता होता है ।

  • लेकिन इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तांबा ऑक्साइड में चांदी के विपरीत विभिन्न प्रकार के कार्यात्मक समूहों और पॉलिमर का इस्तेमाल करने के लिये पर्याप्त अवसर उपस्थित होते हैं, जो इसकी उपयोगिता में उल्लेखनीय रूप से इज़ाफा करते है।

निष्कर्ष

हालाँकि, इस संबंध में अभी और अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है, ताकि जन सामान्य द्वारा इसके प्रयोग को सुलभ बनाया जा सके । संभवतः यह भविष्य में कम खर्च में पानी के शुद्धिकरण का एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।

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