उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018 | 21 Dec 2018
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण (Public distribution) मंत्रालय’ द्वारा प्रस्तावित ‘उपभोक्ता संरक्षण विधेयक’ लोकसभा में पारित हो गया। गौरतलब है कि यह विधेयक 1986 के अधिनियम की जगह लेगा।
विधेयक की मुख्य विशेषताएँ
- पारित किये गए विधेयक में उपभोक्ता (Consumer) शब्द को परिभाषित किया गया है। विधेयक के अनुसार, उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो अपने इस्तेमाल के लिये कोई वस्तु खरीदता है या सेवा प्राप्त करता है। इसमें वह व्यक्ति शामिल नहीं है जो दोबारा बेचने के लिये किसी वस्तु को हासिल करता है या व्यावसायिक उद्देश्य के लिये किसी वस्तु या सेवा को प्राप्त करता है।
उपभोक्ताओं के अधिकार
- विधेयक में उपभोक्ताओं के अधिकारों की बात की गई है, जो इस प्रकार हैं-
- ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करना, जो जीवन और संपत्ति के लिये जोखिमपरक है।
- वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और मूल्य की जानकारी प्राप्त होना।
- प्रतिस्पर्द्धात्मक मूल्यों पर वस्तु और सेवा उपलब्ध होने का आश्वासन प्राप्त होना
- अनुचित या प्रतिबंध व्यापार की स्थिति में मुआवज़े की मांग करना।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी (Central Consumer Protection Authority)
- केंद्र सरकार उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण करने और उन्हें लागू करने के लिये केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी (Central Consumer Protection Authority-CCPA) का गठन करेगी। यह अथॉरिटी उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अनुचित व्यापार और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित मामलों को विनियमित करेगी।
- लोकसभा में पारित हो चुके इस विधेयक में भ्रामक विज्ञापनों के लिये जुर्माने का भी प्रावधान है।
- ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (Consumer Disputes Redressal Commissions-CDRCs) के गठन का भी प्रावधान है।
उत्पाद की ज़िम्मेदारी
- उत्पाद की ज़िम्मेदारी विनिर्माण करने वाले या सेवा प्रदाता या विक्रेता की होगी। यह उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि किसी खराब वस्तु या खराब सेवा के कारण होने वाले नुकसान या चोट के लिये उपभोक्ता को मुआवजा दे।
- मुआवजे का दावा करने के लिये उपभोक्ता को विधेयक में स्पष्ट खराबी या गड़बड़ी से जुडी कम-से-कम एक शर्त को साबित करना होगा।