भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीय इस्पात उद्योग
- 25 Feb 2020
- 7 min read
प्रीलिम्स के लियेभारतीय इस्पात उद्योग से संबंधित आँकड़े मेन्स के लियेइस्पात उद्योग का महत्त्व और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इस्पात मंत्रालय के लिये संसद सदस्यों की सलाहकार समिति की बैठक का आयोजन किया गया। ‘इस्पात क्लस्टर विकास’ (Steel Cluster Development) विषय पर आयोजित इस बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और इस्पात मंत्री धर्मेंद्र प्रधान द्वारा की गई।
प्रमुख बिंदु
- इस अवसर पर केंद्रीय इस्पात मंत्री ने कहा कि इस्पात भारत के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, क्योंकि यह बुनियादी ढाँचा, निर्माण और ऑटोमोबाइल जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिये एक आवश्यक इनपुट है।
- नवीन आँकड़ों के अनुसार, भारतीय इस्पात क्षमता में 142 मिलियन टन प्रतिवर्ष (Million Tonnes Per Annum-MTPA) तक की वृद्धि हुई है, इसके साथ ही भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश बन गया है।
- वर्ष 2024-25 तक कुल इस्पात की खपत लगभग 160 MTPA होने की उम्मीद है, साथ ही भारत सरकार इस्पात के घरेलू उत्पादन और खपत को भी प्रोत्साहित कर रही है।
- बैठक के दौरान सभी भागीदारों ने इस्पात उद्योग और विशेष रूप से क्लस्टर नीति के संदर्भ अपने सुझाव प्रस्तुत किये।
इस्पात उद्योग का महत्त्व
- किसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिये एक जीवंत घरेलू इस्पात उद्योग का होने आवश्यक है क्योंकि यह निर्माण, बुनियादी ढाँचे, मोटर वाहन, पूंजीगत वस्तुओं, रक्षा, रेल आदि जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिये एक महत्त्वपूर्ण इनपुट होता है।
- इस्पात को इसकी पुनर्चक्रण प्रकृति (Recyclable Nature) के कारण पर्यावरणीय रूप से स्थायी आर्थिक विकास के लिये भी एक महत्त्वपूर्ण चालक माना जाता है।
- आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन में इस्पात उद्योग की महत्त्वपूर्ण भूमिका के कारण भी इसका महत्त्व काफी अधिक बढ़ जाता है।
- इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत का स्तर किसी भी देश में सामाजिक-आर्थिक विकास और लोगों के जीवन स्तर के एक महत्त्वपूर्ण सूचकांक के रूप में माना जाता है।
भारतीय इस्पात क्षेत्र
- इस्पात उद्योग भारत में औद्योगिक विकास का एक मुख्य आधार रहा है। स्वतंत्रता के समय 1 MTPA की क्षमता के साथ शुरुआत करने वाला भारतीय इस्पात उद्योग आज 142 MTPA की क्षमता पर पहुँच गया है।
- आँकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर वर्ष 2018 में कुल कच्चे इस्पात का उत्पादन 1789 MTPA पहुँच गया था, जिसमें वर्ष 2017 के मुकाबले 4.94 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी। ज्ञात हो कि वर्ष 2018 में चीन दुनिया का सबसे बड़ा कच्चा इस्पात उत्पादक (923 MTPA) था।
- इसके अलावा चीन और अमेरिका के पश्चात् भारत विश्व में तीसरा सबसे बड़ा इस्पात उपभोक्ता है।
- सरकार ने इस्पात उद्योग को बढ़ावा देने के लिये कई कदम उठाए हैं जिसमें राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 और स्वचालित मार्ग के तहत इस्पात उद्योग में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दे दी गई है।
इस्पात उद्योग का विकास
- वर्ष 1991 के पश्चात् भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए आर्थिक सुधारों ने सामान्य रूप से औद्योगिक विकास और विशेष रूप से इस्पात उद्योग में नए आयाम शामिल किये।
- इन सुधारों के तहत क्षमता निर्माण हेतु लाइसेंस की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया था। कुछ स्थानीय प्रतिबंधों को छोड़कर इस्पात उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित उद्योगों की सूची से हटा दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय इस्पात उद्योग में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ने लगी और उद्योग तीव्र गति से विकास करने लगा।
- इसके पश्चात् सरकार ने उद्योग में विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये स्वचालित मार्ग से 100 प्रतिशत विदेशी इक्विटी निवेश की स्वीकृति प्रदान कर दी।
इस्पात उद्योग की चुनौतियाँ
- इस्पात उद्योग एक पूंजी प्रधान उद्योग है। अनुमानतः 1 टन स्टील बनाने की क्षमता स्थापित करने के लिये लगभग 7,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता होती है। आमतौर पर इस प्रकार का वित्तपोषण उधार ली गई राशि के माध्यम से किया जाता है। किंतु भारत में चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों की अपेक्षा वित्त की लागत काफी अधिक है जो कि इस उद्योग के विकास में एक बड़ी बाधा के रूप में सामने आया है।
- अधिकांश भारतीय इस्पात निर्माताओं के लिये लाॅजिस्टिक्स आवश्यकताओं का प्रबंधन करना काफी कठिन, चुनौतीपूर्ण और महँगा होता है।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ लगातार केंद्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करती जा रही हैं, हालाँकि भारत के भविष्य के लिये यह एक अच्छी खबर है, किंतु ये चिंताएँ कई उद्योगों के विकास में बाधा उत्पन्न कर रही हैं, जिनमें इस्पात उद्योग भी शामिल है।
आगे की राह
- आर्थिक विकास में इस्पात उद्योग की भूमिका को देखते हुए इस्पात उद्योग का अनवरत विकास भारतीय दृष्टिकोण से अच्छी खबर है।
- हालाँकि इस उद्योग के विकास में अभी भी कई बाधाएँ मौजूद हैं, जिन्हें जल्द-से-जल्द संबोधित कर उद्योग का विकास सुनिश्चित किया जाना अति आवश्यक है। किंतु इसके परिणामस्वरूप होने वाली पर्यावरणीय क्षति को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिये।