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भारतीय इतिहास

कोणार्क सूर्य मंदिर का संरक्षण: उड़ीसा

  • 30 Dec 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई), कोणार्क सूर्य मंदिर, राजा नरसिंहदेव प्रथम, कलिंग वास्तुकला, यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल

मेन्स के लिये:

कोणार्क सूर्य मंदिर, कलिंग वास्तुकला, गंगा साम्राज्य, भारतीय संस्कृति - कला रूपों के मुख्य पहलू, प्राचीन से आधुनिक काल तक की वास्तुकला।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खुलासा किया है कि वह कोणार्क सूर्य मंदिर के अंदरूनी हिस्सों से रेत को सुरक्षित रूप से हटाने के लिये एक प्रारंभिक रोडमैप पर कार्य कर रहा है।

  • मंदिर की स्थिरता के लिये सूर्य मंदिर के जगमोहन (असेंबली हॉल) में एक सदी पहले अंग्रेज़ों द्वारा रेत भरी गई थी।

Konark_Sun_Temple

प्रमुख बिंदु

  • संरक्षण प्रक्रिया:
    • वर्ष 1903 में ब्रिटिश प्रशासन ने तेरहवीं शताब्दी के विश्व धरोहर स्थल के स्थायित्व को बनाए रखने के लिये हॉल को रेत से भर दिया था और इसे सील कर दिया था।
      • उन्होंने जगमोहन के ऊपर के हिस्से में छेद कर दिया था और उसके जरिये रेत डाल दी थी।
    • एक अध्ययन के बाद रेत को हटाने की आवश्यकता महसूस की गई थी, जिसमें रेत के रहने से संभावित नुकसान की चेतावनी दी गई थी, इसके परिणामस्वरूप रेत की परत और संरचना के बीच 17 फीट का अंतर आ गया था।
    • बालू हटाने की प्रक्रिया को अंजाम देने के लिये रुड़की में केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) द्वारा एएसआई की सहायता की गई, जिसने वर्ष 2013 और 2018 के बीच मंदिर की संरचनात्मक स्थिरता पर एक वैज्ञानिक अध्ययन किया।
  • कोणार्क सूर्य मंदिर:
    • कोणार्क सूर्य मंदिर पूर्वी ओडिशा के पवित्र शहर पुरी के पास स्थित है।
    • इसका निर्माण राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा 13वीं शताब्दी (1238-1264 ई.) में किया गया था। यह गंग वंश के वैभव, स्थापत्य, मज़बूती और स्थिरता के साथ-साथ ऐतिहासिक परिवेश का प्रतिनिधित्व करता है।
      • पूर्वी गंग राजवंश को रूधि गंग या प्राच्य गंग के नाम से भी जाना जाता है।
      • मध्यकालीन युग में यह विशाल भारतीय शाही राजवंश था जिसने कलिंग से 5वीं शताब्दी की शुरुआत से 15वीं शताब्दी की शुरुआत तक शासन किया था।
      • पूर्वी गंग राजवंश बनने की शुरुआत तब हुई जब इंद्रवर्मा प्रथम ने विष्णुकुंडिन राजा को हराया।
    • मंदिर को एक विशाल रथ के आकार में बनाया गया है।
    • यह सूर्य भगवान को समर्पित है।
    • कोणार्क मंदिर न केवल अपनी स्थापत्य की भव्यता के लिये बल्कि मूर्तिकला कार्य की गहनता और प्रवीणता के लिये भी जाना जाता है।
      • यह कलिंग वास्तुकला की उपलब्धि का सर्वोच्च बिंदु है जो अनुग्रह, खुशी और जीवन की लय को दर्शाता है।
    • इसे वर्ष 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था।
    • कोणार्क सूर्य मंदिर के दोनों ओर 12 पहियों की दो पंक्तियाँ हैं। कुछ लोगों का मत है कि 24 पहिये दिन के 24 घंटों के प्रतीक हैं, जबकि अन्य का कहना है कि 12-12 अश्वों की दो कतारें वर्ष के 12 माह की प्रतीक हैं।
    • सात घोड़ों को सप्ताह के सातों दिनों का प्रतीक माना जाता है।
    • समुद्री यात्रा करने वाले लोग एक समय में इसे 'ब्लैक पगोडा' कहते थे, क्योंकि ऐसा माना जाता था कि यह जहाज़ों को किनारे की ओर आकर्षित करता है और उनको नष्ट कर देता है।
    • कोणार्क ‘सूर्य पंथ’ के प्रसार के इतिहास की अमूल्य कड़ी है, जिसका उदय 8वीं शताब्दी के दौरान कश्मीर में हुआ, अंततः पूर्वी भारत के तटों पर पहुँच गया।
  • ओडिशा में अन्य महत्त्वपूर्ण स्मारक:
    • जगन्नाथ मंदिर
    • तारा तारिणी मंदिर
    • उदयगिरि और खंडगिरि गुफाएँ
    • लिंगराज मंदिर

कलिंग स्थापत्य कला:

  • परिचय:
    • भारतीय मंदिरों को मोटे तौर पर नागर, वेसर, द्रविड़ और गडग शैली की वास्तुकला में विभाजित किया गया है।
    • हालाँकि ओडिशा की मंदिर वास्तुकला मंदिर वास्तुकला की कलिंग शैली नामक उसके अद्वितीय प्रतिनिधित्व के लिये पूरी तरह से एक अलग श्रेणी से मेल खाती है।
    • यह शैली मोटे तौर पर नागर शैली के अंतर्गत आती है।
  • स्थापत्य:
    • कलिंग वास्तुकला में मूल रूप से एक मंदिर दो भागों में बना होता है, एक मीनार और एक हॉल। टावर को देउला और हॉल को जगमोहन कहा जाता है।
    • देउला और जगमोहन दोनों की दीवारों को भव्य रूप से स्थापत्य रूपांकनों और आकृतियों की प्रचुरता के साथ तराशा गया है।
    • सबसे अधिक दोहराया जाने वाला रूप घोड़े की नाल का आकार है, जो प्राचीन काल से आया है, चैत्य-गृहों की बड़ी खिड़कियों से शुरू होता है।
    • यह देउल है जो कलिंग में तीन अलग-अलग प्रकार के मंदिर बनाता है
    • स्थापत्य:
      • रेखा देउला।
      • पिधा देउला।
      • खाखरा देउला।
    • पहले दो विष्णु, सूर्य और शिव मंदिरों से जुड़े हैं जबकि तीसरा मुख्य रूप से चामुंडा और दुर्गा मंदिरों से जुड़ा है।
    • रेखा देउला और खाखरा देउला में गर्भगृह है, जबकि पिधा देउला बाहरी नृत्य और प्रसाद हॉल का निर्माण करता है।

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स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस

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