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हिट-एंड-रन कानून से संबंधित चिंताएँ

  • 10 Jan 2024
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय दंड संहिता, 1860, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

मेन्स के लिये:

भारतीय न्याय संहिता 2023, आपराधिक न्याय प्रणाली से संबंधित सरकारी पहल, नीतियों की रूपरेखा और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल तथा पंजाब जैसे राज्यों में ट्रांसपोर्टरों तथा वाणिज्यिक ड्राइवरों के हालिया विरोध प्रदर्शन ने भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की विवादास्पद धारा 106 (2) पर प्रकाश डाला है।

  • यह धारा जो हिट-एंड-रन की घटनाओं के लिये गंभीर दंड का प्रावधान करती है, वाहनचालकों के बीच असंतोष का केंद्र बिंदु बन गई है।
  • सरकार द्वारा यह आश्वासन दिया गया कि वह हिट-एंड-रन के विरुद्ध विवादास्पद कानून क्रियान्वित करने से पूर्व हितधारकों से परामर्श करेगी जिससे पूरे देश के ट्रक ड्राइवरों ने हड़ताल समाप्त कर दी है।

हिट-एंड-रन कानून क्या है?

  • उपबंध:
    • हिट-एंड-रन उपबंध भारतीय न्याय संहिता (BNS) का हिस्सा है जिसका उद्देश्य औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता, 1860 को प्रतिस्थापित करना है।
      • BNS, 2023 की धारा 106 (2) में दुर्घटना स्थल से भागने तथा किसी पुलिस अधिकारी अथवा मजिस्ट्रेट को घटना की रिपोर्ट करने में विफल रहने पर 10 वर्ष तक की कारावास तथा ज़ुर्माने का प्रावधान है।
      • हालाँकि यदि ड्राइवर दुर्घटना के तुरंत बाद घटना की रिपोर्ट करता है तो उन पर धारा 106(2) के स्थान पर धारा 106(1) के तहत आरोप सिद्ध किया जाएगा। धारा 106(1) में गैर-इरादतन हत्या की श्रेणी में नहीं आने वाली मौत (लापरवाही के कारण होने वाली मौत) के लिये पाँच वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है
  • आवश्यकता:
    • यह नया कानून भारत में सड़क दुर्घटनाओं से संबंधित चिंताजनक आँकड़ों की पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया है।
      • वर्ष 2022 में भारत में 1.68 लाख से अधिक सड़क दुर्घटना मौतें दर्ज की गईं अर्थात् प्रतिदिन औसतन 462 मौतें हुई।
      • भारत में सड़क दुर्घटनाओं में 12% की वृद्धि तथा मृत्यु दर में 9.4% की वृद्धि देखी गई जबकि वैश्विक सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों में 5% की कमी आई।
        • भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण प्रति घंटे औसतन 19 मौतें होती हैं जिसके अनुसार लगभग प्रत्येक साढ़े तीन मिनट में एक मौत होती है।
      • आधे से अधिक सड़क पर मौतें राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर हुईं, जो कुल सड़क नेटवर्क का 5% से भी कम है।
      • भारत, दुनिया के केवल 1% वाहनों के साथ, दुर्घटना-संबंधी मौतों में लगभग 10% का योगदान देता है और सड़क दुर्घटनाओं के कारण अपने सकल घरेलू उत्पाद का 5-7% वार्षिक आर्थिक नुकसान झेलता है।
  • विधि के अंतर्निहित सिद्धांत:
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने वर्ष 2022 में 47,806 हिट एंड रन की घटनाएँ दर्ज कीं, जिसके परिणामस्वरूप 50,815 लोगों की मौत हो गई।
      • पुलिस या मज़िस्ट्रेट को सड़क दुर्घटनाओं की रिपोर्ट करना अपराधियों का कानूनी कर्त्तव्य है और इस कर्त्तव्य की चूक को आपराधिक बनाने के प्रावधान हैं।
    • हिट-एंड-रन कानून की धारा 106 (2) का अंतर्निहित तेज़ गति और लापरवाही से गाड़ी चलाने को रोकना तथा उन लोगों को दंडित करना है जो पीड़ितों की सूचना दिये बिना या उनकी मदद किये बिना घटनास्थल से भाग जाते हैं।
    • यह कानून अपराधी पर पीड़ित के प्रति नैतिक ज़िम्मेदारी लागू करने की विधायी मंशा को दर्शाता है।
      • मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 134 जैसे मौजूदा कानूनों के साथ समानताएँ दर्शाते हुए, दुर्घटनाओं के बाद ड्राइवरों से त्वरित और ज़िम्मेदार प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये सरकार की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला गया है।
        • मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 134 के तहत वाहन के चालक को घायल व्यक्ति के लिये चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करने के लिये सभी उचित कदम उठाने की आवश्यकता होती है, जब तक कि भीड़ के गुस्से या उसके नियंत्रण से परे किसी अन्य कारण से यह संभव न हो।

प्रदर्शनकारियों की चिंताएँ क्या हैं?

  • BNS, 2023 की धारा 106 (2):
    • ट्रांसपोर्टर और वाणिज्यिक चालक BNS, 2023 की धारा 106 (2) को वापस लेने या संशोधन की मांग कर रहे हैं।
    • प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि 10 साल की कैद और 7 लाख रुपए ज़ुर्माने सहित निर्धारित दोनों दंड अत्यधिक गंभीर हैं।
    • व्यापक रूप से प्रसारित यह विचार कि BNS की धारा 106 (2) दुर्घटना स्थल से भागने और पुलिस अधिकारी/मजिस्ट्रेट को घटना की रिपोर्ट करने में विफल रहने पर 10 साल तक की कैद तथा 7 लाख रुपए के ज़ुर्माने का प्रावधान करती है, पूरी तरह से गलत है।
      • हालाँकि इस धारा में अधिकतम 10 साल की सज़ा और ज़ुर्माने की चर्चा है, लेकिन BNS में 7 लाख रुपए के ज़ुर्माने के बारे में कोई वास्तविक उल्लेख नहीं है।

नोट:

  • मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 की धारा 161 के तहत हिट एंड रन में पीड़ित की मृत्यु होने पर 2,00,000 रुपए के मुआवज़े का प्रावधान किया गया है। 
    • मृत्यु पर मुआवज़ा 2 लाख रुपए और गंभीर चोट पर 50,000 रुपए है। BNS की धारा 106 (2) के विपरीत, इस मामले में मुआवज़ा ड्राइवरों से वसूल नहीं किया जा सकता है।
  • चुनौतीपूर्ण स्थितियाँ:
    • उनका तर्क है कि ज़ुर्माना अत्यधिक है और ड्राइवरों की चुनौतीपूर्ण कार्य स्थितियों, जैसे लंबे समय तक ड्राइविंग तथा कठिन सड़कों पर विचार करने में विफल रहता है।
    • ट्रांसपोर्टरों का यह भी तर्क है कि दुर्घटनाएँ ड्राइवर के नियंत्रण से परे कारकों के कारण हो सकती हैं, जैसे– कोहरे के कारण खराब दृश्यता और दुर्घटना स्थलों पर सहायता के लिये रुकने पर ड्राइवरों के खिलाफ भीड़ की हिंसा का डर
      • दुर्घटनाओं के बाद हिंसा का डर ड्राइवरों के लिये निर्णय लेने की प्रक्रिया को और जटिल बना देता है।
  • अनुचित दोष माना गया:
    • ड्राइवरों का तर्क है कि वास्तविक परिस्थितियों के बावजूद, दुर्घटनाओं के लिये अक्सर उन्हें गलत तरीके से दोषी ठहराया जाता है।
    • कानून का दंडात्मक दृष्टिकोण अनुचित धारणा को बढ़ा सकता है और परिवहन उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
  • अधिकारियों द्वारा संभावित दुरुपयोग:
    • उन्हें चिंता है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है और कठोर दंड से समग्र रूप से परिवहन उद्योग को नुकसान हो सकता है।
  • अनुचित व्यवहार और सीमित वर्गीकरण:
    • वर्तमान कानून ट्रक चालकों और व्यक्तिगत वाहन चालकों पर लगाए गए दंड की निष्पक्षता के बारे में चिंता पैदा करता है।
      • उदाहरण के लिये जल्दबाज़ी या लापरवाही से काम करने की स्थिति में डॉक्टरों के लिये BNS की धारा 106 (1) के तहत एक अपवाद बनाया गया है, जहाँ ज़ुर्माने के साथ दो वर्ष तक की सज़ा होगी।
    • यह सीमित वर्गीकरण समस्याग्रस्त है और समानता के सिद्धांतों के विरुद्ध है, क्योंकि अन्य क्षेत्रों में काम करने वाले विभिन्न प्रकार के लोगों के दायित्व को भी नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
  •    विभेदीकरण का अभाव:
    • धारा 106(2) में तेज़ गति और लापरवाही से गाड़ी चलाने के बीच अंतर का अभाव है, जो दायित्व के विभिन्न स्तरों के साथ दो अलग-अलग प्रकार के अपराध हैं।
      • उनका यह भी तर्क है कि इस अनुभाग में लापरवाह कृत्यों में योगदान देने वाले कारकों पर विचार नहीं किया गया है, जैसे कि यात्रियों का व्यवहार, सड़क की स्थिति, सड़क पर रोशनी की व्यवस्था और अन्य समान कारक, जो चालक की ज़िम्मेदारी को प्रभावित कर सकते हैं।
    • सभी स्थितियों में एक खंड लागू करने से विभिन्न परिस्थितियों में ड्राइवरों पर अनुचित पूर्वाग्रह हो सकता है।

आगे की राह 

  • चिंताओं को दूर करने और विविध दृष्टिकोण जुटाने के लिये हितधारकों, विशेष रूप से ड्राइवरों व परिवहन संघों के साथ व्यापक परामर्श शुरू किया जाना चाहिये।
    • आपातकालीन अनुक्रिया के लिये एक स्पष्ट और मानकीकृत प्रोटोकॉल स्थापित की जानी चाहिये, जिसमें संभावित हिंसा के लिये ड्राइवरों को उजागर किये बिना शीघ्र रिपोर्टिंग के महत्त्व पर ज़ोर दिया जाए।
  • BNS की धारा 106 (2) के तहत मौजूदा हिट-एंड-रन कानून दुर्घटनाओं के विभिन्न प्रकारों और परिणामों के बीच अंतर/विभेद नहीं करता है।
    • कानून को देनदारियों के आधार पर विभिन्न पैमानों में वर्गीकृत किया जाना चाहिये, जैसे– मृत्यु, गंभीर चोट, साधारण चोट या छोटी चोटें तथा इसके लिये दंड अपराध के अनुरूप होनी चाहिये।
  • कानून को रिपोर्टिंग प्रक्रिया और ड्राइवरों के लिये अपनी बेगुनाही या अपराध को कम करने वाले कारकों को साबित करने के लिये आवश्यक सबूतों को भी स्पष्ट करना चाहिये।
  • सड़क दुर्घटनाओं में मामूली चोट आने को आपराधिक कृत्यों के बराबर नहीं माना जाना चाहिये बल्कि सामुदायिक सेवा, ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करना या अनिवार्य ड्राइविंग दोबारा परीक्षण जैसे वैकल्पिक उपाय लागू करने चाहिये।
  • दुर्घटनाओं को कम करने और हिट-एंड-रन घटनाओं की संभावना को कम करने के लिये बेहतर सड़क बुनियादी ढाँचे, दृश्यता उपायों तथा सुरक्षा सुविधाओं में निवेश किया जाना चाहिये।
  • प्रभावी हिट-एंड-रन कानून के साथ अन्य देशों के सफल मॉडल और सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन कर उन्हें भारतीय संदर्भ में अपनाने की आवश्यकता है।

विधिक अंतर्दृष्टि:    https://www.drishtijudiciary.com/hin/editorial/Hit-and-Run-Law

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