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जैव विविधता और पर्यावरण

वनाग्नि संबंधी चिंता: समग्र विश्लेषण

  • 27 May 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये

वनाग्नि से संबंधित आँकड़े

मेन्स के लिये

वनाग्नि के कारण और उसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के बीच उत्तराखंड बीते कुछ दिनों से जंगलों में लगी भीषण आग का सामना कर रहा है, जिसके कारण उत्तराखंड सरकार के लिये परिस्थितियाँ काफी चुनौतीपूर्ण हो गई हैं।

प्रमुख बिंदु

  • नवीनतम आँकड़े दर्शाते हैं कि वर्ष 2020 की शुरुआत से अब तक उत्तराखंड में वनाग्नि की कुल 46 घटनाएँ दर्ज की जा चुकी हैं, जिसके परिणामस्वरूप राज्य की तकरीबन 51.34 हेक्टेयर वन भूमि प्रभावित हुई है। 
  • राज्य में वनाग्नि की अधिकांश (तकरीबन 21) घटनाएँ केवल कुमाऊँ क्षेत्र में दर्ज की गईं, जिसके कारण यह क्षेत्र वनाग्नि के कारण सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है।
  • वहीं गढ़वाल क्षेत्र में वनाग्नि की 16 घटनाएँ हुईं और राज्य के आरक्षित वन क्षेत्र (Reserve Forest Area) में वनाग्नि की कुल 9 घटनाएँ दर्ज की गईं।
  • अनुमान के अनुसार, इस वर्ष वनाग्नि की घटनाओं के कारण राज्य के वन विभाग को तकरीबन 1.32 लाख रुपए के नुकसान का सामना करना पड़ा।
  • वहीं इस वर्ष राज्य में अब तक वनाग्नि के कारण 2 लोगों की मृत्यु भी हो गई।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) की रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड के जंगलों में जून 2018 से नवंबर 2019 के मध्य वनाग्नि की कुल 16 हजार घटनाएँ देखी गईं। 

वनाग्नि एक वैश्विक चिंता के रूप में 

  • बीते वर्ष सितंबर माह में शुरू हुई ऑस्ट्रेलिया की भीषण वनाग्नि ने देश में काफी बड़े पैमाने पर विनाश किया था, जिसके कारण लगभग 10 लाख हेक्टेयर भूमि का नुकसान हो गया था।
  • ब्राज़ील स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (National Institute for Space Research-INPE) के आँकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019 में ब्राज़ील के अमेज़न वनों (Amazon Forests) ने कुल 74,155 बार आग का सामना किया था। साथ ही यह भी सामने आया था कि अमेज़न वन में आग लगने की घटना वर्ष 2019 में वर्ष 2018 से 85 प्रतिशत तक बढ़ गई थी। 
  • दुनिया भर में वनाग्नि की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं और भारत भी इन घटनाओं से खुद को बचा नहीं पाया है। भारत में भी प्रतिवर्ष देश के अलग-अलग हिस्सों में कई वनाग्नि की घटनाएँ देखने को मिलती हैं। 

वनाग्नि के कारण

  • भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में वनाग्नि के अलग-अलग कारण होते हैं, जिसमें प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ मानवीय कारण भी शामिल हैं।
  • आकाशीय बिजली (Lightning) वनाग्नि के प्राकृतिक कारणों में सबसे प्रमुख है, जिसके कारण पेड़ों में आग लगती है और धीरे-धीरे आग पूरे जंगल में फैल जाती है। इसके अतिरिक्त उच्च वायुमंडलीय तापमान और कम आर्द्रता वनाग्नि के लिये अनुकूल परिस्थिति प्रदान करती हैं।
  • वहीं विश्व भर में देखे जानी वाली वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ मानव निर्मित होती हैं। वनाग्नि के मानव निर्मित कारकों में कृषि हेतु नए खेत तैयार करने के लिये वन क्षेत्र की सफाई, वन क्षेत्र के निकट जलती हुई सिगरेट या कोई अन्य ज्वलनशील वस्तु छोड़ देना आदि शामिल हैं।
    • ब्राज़ील के अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र के अनुसार, अमेज़न वर्षा वनों में दर्ज की जाने वाली 99 प्रतिशत आग की घटनाएँ मानवीय हस्तक्षेप के कारण या आकस्मिक रूप से या किसी विशेष उद्देश्य से होती हैं।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) की रिपोर्ट भी दर्शाती है कि भारत में भी वनाग्नि की तकरीबन 95 प्रतिशत घटनाएँ मानवीय कारणों से प्रेरित होती हैं।
  • उच्च तापमान, हवा की गति और दिशा तथा मिट्टी एवं वातावरण में नमी आदि कारक वनाग्नि को और अधिक भीषण रूप धारण करने में मदद करते हैं।

वनाग्नि के प्रभाव

  • जंगलों में लगने वाली आग के कारण उस क्षेत्र विशिष्ट की प्राकृतिक संपदा और संसाधन को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
  • वनाग्नि के कारण जानवरों के रहने का स्थान नष्ट हो जाता है, जिसके कारण नए स्थान की खोज में वे शहरों की ओर जाते हैं और शहरों की संपत्ति को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • अमेज़न जैसे बड़े जंगलों में वनाग्नि के कारण जैव विविधता और पौधों तथा जानवरों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • जंगलों में लगने वाली आग न केवल जंगलों को तबाह करती है, बल्कि इसके कारण मानवीय जीवन और मानवीय संपत्ति को भी काफी नुकसान होता है।
  • वनाग्नि के प्रभावस्वरूप वनों की मिट्टी में मौजूद पोषक तत्त्वों में भारी कमी देखने को मिलती है, जिन्हें वापस प्राप्त करने में काफी लंबा समय लगता है।
  • चूँकि वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ काफी व्यापक पैमाने पर होती हैं, इसलिये इनके कारण आस-पास के तापमान में काफी वृद्धि होती है।

वनाग्नि का सकारात्मक पक्ष

  • विश्लेषकों का मत है कि वनाग्नि जंगलों में पाई जाने वाली कई प्रजातियों निष्क्रिय बीजों को पुनर्जीवित करने में मदद करती है। 
  • कई अध्ययनों में सामने आया है कि वनाग्नि के कारण जंगलों में पाई जाने वाली अधिकांश आक्रामक प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं। उदाहरण के लिये कुछ समय पूर्व कर्नाटक में आदिवासी समुदायों ने प्रचलित ‘कूड़े में लगाई जाने वाली आग’ की परंपरा का बहिष्कार कर दिया था, जिसके कारण क्षेत्र विशिष्ट में लैंटाना (Lantana) प्रजाति की वनस्पति इतनी ज़्यादा बढ़ गई कि उसने वहाँ के स्थानिक पौधों का अतिक्रमण कर लिया था।

निष्कर्ष

समय के साथ वनाग्नि से संबंधित घटनाएँ वैश्विक स्तर पर एक गंभीर चिंता का रूप धारण करती जा रही हैं, भारत में भी लगातार बढ़ रही वनाग्नि की घटनाओं ने नीति निर्माताओं को पर्यावरण संरक्षण, आपदा प्रबंधन और वन्य जीवों तथा वन्य संपदा के संरक्षण की दिशा में विमर्श करने हेतु विवश किया है। आवश्यक है कि देश में वनाग्नि प्रबंधन के लिये विभिन्न नवीन विचारों की खोज की जाए, इस संबंध में वनाग्नि प्रबंधन को लेकर विभिन्न देशों द्वारा अपनाए जा रहे मॉडल की समीक्षा की जा सकती है और उन्हें भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित किया जा सकता है।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

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