खाद्यान्नों हेतु अनिवार्य जूट पैकेजिंग | 20 Dec 2018
संदर्भ
हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने जूट की बोरियों में अनिवार्य पैकेजिंग संबंधी मानकों का दायरा बढ़ाने को मंज़ूरी दे दी।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने जूट पैकेजिंग सामग्री (JPM) अधिनियम, 1987 के तहत अनिवार्य पैकेजिंग मानकों का दायरा बढ़ाने हेतु मंज़ूरी निम्नलिखित रूप में दी है-
- CCEA ने यह मंज़ूरी दी है कि 100 प्रतिशत खाद्यान्नों और 20 प्रतिशत चीनी की पैकिंग अनिवार्य रूप से जूट (पटसन) की विविध प्रकार की बोरियों में ही करनी होगी। विभिन्न प्रकार की जूट की बोरियों में चीनी की पैकिंग करने के निर्णय से जूट उद्योग के विविधीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
- आरंभ में खाद्यान्न की पैकिंग के लिये जूट की बोरियों के 10 प्रतिशत ऑर्डर रिवर्स नीलामी के ज़रिये ‘जेम पोर्टल’ पर दिये जाएंगे, जिससे धीरे-धीरे कीमतों में सुधार का दौर शुरू हो जाएगा।
क्या होगा प्रभाव?
- इस निर्णय से जूट उद्योग के विकास को बढ़ावा मिलेगा, कच्चे जूट की गुणवत्ता एवं उत्पादकता बढ़ेगी, जूट क्षेत्र का विविधीकरण होगा और इसके साथ ही जूट उत्पाद की मांग बढ़ेगी जो आगे भी निरंतर जारी रहेगी।
- लगभग 3.7 लाख मज़दूर और कृषि क्षेत्र से जुड़े लाखों परिवार अपनी आजीविका के लिये जूट क्षेत्रों पर ही निर्भर हैं, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम सराहनीय है।
- जूट उद्योग मुख्य रूप से सरकारी क्षेत्र पर ही निर्भर रहता है क्योंकि सरकारी क्षेत्र से ही खाद्यान्नों की पैकिंग के लिये प्रत्येक वर्ष 6500 करोड़ रुपए से भी ज़्यादा मूल्य की जूट बोरियों की खरीद की जाती है।
- इससे जूट उद्योग की मांग निरंतर बनी रहती है और साथ ही इस क्षेत्र पर निर्भर मज़दूरों एवं किसानों की आजीविका भी चलती रहती है।
- CCEA द्वारा लिये गए इस निर्णय से देश के पूर्वी एवं पूर्वोत्तर क्षेत्रों, विशेषकर पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा में रहने वाले किसान एवं मज़दूर लाभान्वित होंगे।
जूट क्षेत्र को आवश्यक सहयोग देने हेतु सरकार द्वारा किये गए अन्य उपाय:
- भारत सरकार ‘जूट आईकेयर’ के ज़रिये कच्चे जूट की उत्पादकता एवं गुणवत्ता बढ़ाने के उद्देश्य से लगभग एक लाख जूट किसानों को आवश्यक सहयोग देती रही है।
- कृषि विज्ञान से जुड़ी उन्नत प्रथाओं अथवा तौर-तरीकों का प्रचार-प्रसार किया जाता रहा है, जिनमें सीड ड्रिल का इस्तेमाल कर कतारबद्ध बुवाई करना, पहिए वाले फावड़े एवं खूँटे वाले निराई उपकरणों का उपयोग कर खरपतवार का समुचित प्रबंधन करना, उन्नत प्रमाणित बीजों का वितरण करना और सूक्ष्म जीवाणुओं की सहायता से फसल को गलाने की व्यवस्था करना शामिल हैं।
- जूट क्षेत्र में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से दिसंबर, 2016 में ‘जूट स्मार्ट’ के नाम से एक ई-सरकारी पहल का शुभारंभ किया गया था।
- इसके अलावा, भारतीय पटसन निगम MSP और वाणिज्यिक परिचालनों के तहत जूट की खरीद के लिये जूट किसानों को 100 प्रतिशत धनराशि ऑनलाइन हस्तांतरित कर रहा है।