कारावास में अप्राकृतिक मृत्य के लिये मुआवज़ा | 18 Sep 2017
चर्चा में क्यों ?
सर्वोच्च न्यायालय ने सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायधीशों को निर्देश दिया है कि वे वर्ष 2012 के बाद से देश की जेलों में अप्राकृतिक कारणों से मरने वाले कैदियों एवं बाल कैदियों के परिजनों की पहचान करने के लिये स्वप्रेरणा से (suo moto) याचिका पंजीकृत करें और राज्य सरकारों को उन्हें समुचित मुआवज़ा देने का आदेश दें।
प्रमुख बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि कैद में अप्राकृतिक कारणों से मरने वाले कैदी भी कैद के दौरान अपराध या लापरवाही का शिकार होते हैं। अतः केंद्र और राज्य सरकारों को समझना चाहिये कि वे भी मानव है और उनके भी कुछ अधिकार होते हैं और आम नागरिक की तरह उनको या उनके बदले में उनके परिजनों को भी मुआवज़ा पाने का अधिकार है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस निर्णय को उन पीड़ितों की आवाज़ मान कर दिया है जिनकी कारावासों में मौत हो जाती है और कोई उनकी सुध तक नहीं लेता है।
- अदालत ने आगे यह भी कहा कि कल्याणकारी राज्य में किसी व्यक्ति का मानवाधिकार उसकी हैसियत (वह अपराधी है या नहीं) पर निर्भर नहीं करता है।
- कोर्ट द्वारा मुआवज़ा भुगतान की तिथि को वर्ष 2012 रखने का कारण यह है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के पास उसी वर्ष से आँकड़े उपलब्ध हैं।
- गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने देश की 1382 जेलों की दुर्दशा की ओर सर्वोच्च न्यायालय का ध्यान आकर्षित करते हुए कैद एवं बाल देखभाल गृहों में रहने वाले कैदियों एवं बाल कैदियों की अप्राकृतिक मृत्यु के बारे में सर्वोच्च न्यायालय को लिखा था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने बताया कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों में से किसी ने भी कभी भी यह जानने का प्रयास नहीं किया कि अब तक इस तरह से कितने बच्चों की मौत हुई है। अतः उसने अब सभी संबंधित पक्षों द्वारा इस बारे में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता बताया है।
कैदियों के मानवाधिकार
- कैदियों को अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।
- उन्हें संविधान के अनुच्छेद14 के तहत विधि के समक्ष समता, अनुच्छेद 19(क) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, अनुच्छेद 21 के तहत प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण प्राप्त है।
- कैदियों को जेल में चिकित्सा सुविधा पाने का अधिकार है।
- विचाराधीन कैदियों को चुनाव के समय अपना मत देने अधिकार है।
- जेल में उनके किये गए कार्य के लिये न्यूनतम मज़दूरी पाने का भी अधिकार है।
- मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुसार किसी भी व्यक्ति से गुलामी नहीं करवाई जा सकती है।
- कैदी को अधिकार है कि वह पसंद के कानूनी सलाहकार से भेंट कर सके।
- अभियुक्त को नि:शुल्क कानूनी सहायता पाने का अधिकार है।
- उन्हें अपने मित्रों एवं परिजनों से पत्र व्यवहार का, मिलने, अपने वकील या उसके एजेंट से सलाह का अधिकार एवं अपने विकास के लिये शिक्षा पाने का अधिकार है।
- इस तरह कैदियों के मानवाधिकार व मूल अधिकार जेल में भी बने रहते हैं परंतु उन्हें जेल मैन्युअल के नियमों का पालन करना होता है।
कुछ अन्य तथ्य
- हिरासत में हुई मौतों को लेकर मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी किये गए निर्देशों का पुलिस और राज्य सरकारों ने समुचित पालन नहीं किया है।
- एक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय यह कह चुका है कि 'आपराधिक कृत्य करने वाले पुलिसकर्मियों को दूसरे लोगों के मुकाबले और भी कड़ी सजा दी जानी चाहिये क्योंकि उनका कर्त्तव्य लोगों की सुरक्षा करना है न कि खुद ही कानून तोड़ना है।
- पुलिस की मानसिकता की निंदा करते हुए अदालत कई बार कह चुका है कि इस लोकतांत्रिक देश के कानून में थर्ड डिग्री जैसे गैर-कानूनी तरीकों के इस्तेमाल के लिये कोई जगह नहीं है।
- संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा कैदियों को यातनाएँ दिये जाने के विरोध में बहुत से प्रस्ताव पारित किये जाने के बाद भी आज भी दुनिया में कई जगह यातना देने के क्रूर तरीकों का प्रयोग किया जाता है।
आगे की राह
- अतः सर्वोच्च न्यायालय ने बाल देखभाल गृहों में अप्राकृतिक कारणों से मरने वाले बच्चों के बारे एक सारणी तैयार करने संबंधी प्रक्रिया पूरी करने के लिये केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को 31 दिसंबर तक का समय दिया है।