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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कॉम्पैक्ट सॉलिड स्टेट सेंसर

  • 17 Apr 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये

धातु जल प्रदूषण, कॉम्पैक्ट सॉलिड स्टेट सेंसर 

मेन्स के लिये

जल प्रदूषण के नियंत्रण में तकनीकी का प्रयोग, जल में विषाक्त धातुओं की उपस्थिति के दुष्प्रभाव  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के कुछ शोधकर्त्ताओं नें जल में उपस्थित भारी धातु आयनों (Heavy Metal Ions) की पहचान के लिये एक ‘कॉम्पैक्ट सॉलिड स्टेट सेंसर’ (Compact Solid-State Sensor) के विकास में सफलता प्राप्त की है।  

मुख्य बिंदु:

  • कर्नाटक के बंगलुरू में स्थित ‘नैनो एवं मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र’ (Centre for Nano and Soft Matter Sciences- CeNS) में शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने  एक ‘कॉम्पैक्ट सॉलिड स्टेट सेंसर’ के विकास में सफलता प्राप्त की है, जिससे जल में उपस्थित भारी धातु आयनों जैसे- लेड (Lead) आयन (Pb2+) की पहचान की जा सकती है। 
  • अध्ययन के दौरान देखा गया कि इस सेंसर के माध्यम से बहुत ही आसानी से जल में उपस्थित भारी धातु आयनों की पहचान की जा सकती है, हालाँकि शोधकर्त्ताओं की टीम इस सेंसर की चयनात्मकता (Selectivity) में और अधिक सुधार का प्रयास कर रही है।

‘नैनो एवं मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र’

(Centre for Nano and Soft Matter Sciences- CeNS): 

  • ‘नैनो एवं मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र’ भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) के तहत एक स्वायत्त शोध संस्थान है। 
  • यह संस्थान कर्नाटक की राजधानी बंगलुरू में स्थित है। 
  • इसकी स्थापना वर्ष 1991 में प्रख्यात तरल क्रिस्टल वैज्ञानिक ‘प्रो. एस. चंद्रशेखर’ के द्वारा कर्नाटक में ‘सेंटर फॉर लिक्विड क्रिस्टल रिसर्च’ (Centre for Liquid Crystal Research) नामक वैज्ञानिक संस्था के रूप में की गई थी।  
  • वर्ष 2014 में इसके कार्य क्षेत्र में वृद्धि की गई तथा इसका नाम बदलकर ‘नैनो एवं मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र’ कर दिया गया था।   
  • इस संस्थान के शोध क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की धातु, सेमीकंडक्टर नैनोस्ट्रक्चर (semiconductor nanostructures), तरल क्रिस्टल, जैल, झिल्लियाँ (Membranes) और हाइब्रिड मैटेरियल (Hybrid Material) आदि प्रमुख हैं।  

कॉम्पैक्ट सॉलिड स्टेट सेंसर:

  • इस सेंसर में लगी झिल्ली (Film) को एक ग्लास सबस्ट्रेट (Substrate) पर बने मैंगनीज़ डोप्ड ज़िंक सल्फाइड क्वांटम डॉट्स (Manganese Doped Zinc Sulfide Quantum Dots) और रिड्यूस्ड ग्राफीन ऑक्साइड (Reduced Graphene Oxide- RGO) के कंपोज़िट पदार्थ के माध्यम से तैयार किया गया है।
  • ये क्वांटम डॉट्स जल में घुलनशील हैं और उच्च फोटोल्युमिनिसेंस (~30%) क्वांटम दक्षता होने के कारण यह ल्युमिनिसेंस आधारित सेंसिंग के लिये सबसे उपयुक्त हैं।
  • जैसे ही भारी धातु आयनों (पारा, सीसा, कैडमियम आदि) से युक्त जल सेंसर में लगी कंपोज़िट फिल्म के संपर्क में आते हैं, फिल्म से होने वाला उत्सर्जन कुछ ही सेकेंड में बुझ जाता है जिससे जल में भारी धातु आयनों की उपस्थिति की पुष्टि होती है।   

लाभ: 

  • इस सेंसर में प्रयुक्त क्वांटम डॉट्स को हाथ में पकड़ी जा सकने वाली छोटी अल्ट्रावायलेट लाइट (254nm) के माध्यम से भी उत्तेजित/सक्रिय किया जा सकता है, जिसके कारण सुदूर क्षेत्रों में भी आसानी से इसका प्रयोग किया जा सकता है।
  • यह सेंसर जल में उपस्थित भारी धातु आयनों के सूक्ष्मतम कणों {0.4 पार्ट्स प्रति बिलियन (Parts Per Billion- ppb) तक } की पहचान करने में सक्षम है।
  • जल में उपस्थित भारी आयनों की उपस्थिति से होने वाले स्वास्थ्य नुकसान को देखते हुए लंबे समय से कुशल और आसानी से प्रयोग किये जा सकने वाले परीक्षण उपकरण की आवश्यकता बनी हुई थी ऐसे में इस उपकरण की सहायता से दूरस्थ क्षेत्रों में जल प्रदूषण की पहचान कर इसके निवारण के लिये आवश्यक कदम उठाए जा सकेंगे।   

जल में भारी धातु आयनों की उपस्थिति के नुकसान: 

  • जल में एक निश्चित मात्रा से अधिक भारी धातु आयनों की उपस्थिति के स्वास्थ्य पर कई हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं, क्योंकि ये बड़ी आसानी से शरीर में जमा हो जाते हैं और इन्हें किसी रासायनिक या जैविक प्रक्रिया से निकालना बहुत कठिन होता है। 
  • मानव शरीर में अधिक भारी धातु आयनों की उपस्थिति मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकती है, साथ ही इसके कारण रक्त की संरचना में परिवर्तन, फेफड़े, गुर्दे, यकृत और अन्य महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान हो सकता है। 
  • लंबे समय तक कुछ विशेष भारी धातुओं या उनके यौगिकों के संपर्क में रहने से कैंसर जैसी बीमारियाँ भी हो सकती है।    
  • साथ ही प्राकृतिक जल स्रोतों जैसे- नदियों, झीलों में अधिक भारी धातु आयनों की उपस्थिति वन्य जीवों और प्रजातीय विविधता को क्षति हो सकती है।    

भारी धातु आयन प्रदूषण के मुख्य स्रोत: 

  • अगस्त 2019 में ‘केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय’ (Ministry of Jal Shakti) द्वारा जारी ‘स्टेटस ऑफ ट्रेस एंड टाॅक्सिक मेटल्स इन इंडियन रिवर्स’ (Status of Trace and Toxic Metals in Indian Rivers) के अनुसार, भारतीय नदियों में धातु प्रदूषण के कुछ प्रमुख स्रोत खनन,चरम शोधन, उर्वरक, कागज, बैटरी, विद्युत लेपन आदि से जुड़ी औद्योगिक इकाइयाँ हैं। 
  • औद्योगिक केंद्रों से होने वाला उत्सर्जन, नदियों या प्राकृतिक जल स्रोतों में औद्योगिक केंद्रों से छोड़ा जाने वाला हानिकारक दूषित जल और अपशिष्ट पदार्थ प्रदूषण में वृद्धि का एक बड़ा कारण हैं।
  • इसके अतिरिक्त घरों से निकलने वाला गंदा पानी, कृषि उर्वरकों से होने वाला प्रदूषण, कचरे के बड़े ढेर से होने वाला रिसाव और वाहनों से होने वाला उत्सर्जन भी बड़ी मात्रा में प्रदूषण में वृद्धि करता है।      

आगे की राह:

  • औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाले अपशिष्ट को नदियों में छोड़ने से पहले उनका रासायनिक और जैविक परिशोधन किया जाना चाहिये।
  • जल प्रदूषण से संबंधित कुशल और कड़े कानूनों तथा नियमों को लागू कर उनके अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये। 
  • औद्योगिक केंद्रों और कृषि से होने वाले प्रदूषण तथा नदियों में हानिकारक प्रदूषण स्तर की नियमित निगरानी की जानी चाहिये।

स्रोत: पीआईबी

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