शासन व्यवस्था
सामुदायिक कैंटीन 2.0
- 24 Jul 2020
- 7 min read
प्रीलिम्स के लिये:‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, ‘वन नेशन, वन राशन’, सामुदायिक कैंटीन मेन्स के लिये:वर्तमान संदर्भ (COVID- 19) में सामुदायिक कैंटीन का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ (Pradhan Mantri Garib Kalyan Ann Yojana) को और तीन महीने के लिये विस्तारित करने की घोषणा की गई। इसके अलावा प्रवासी श्रमिकों के लिये सब्सिडी युक्त अनाज तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये ‘वन नेशन, वन राशन’ (One Nation, One Ration- ONOR) योजना के कार्यान्वयन पर भी प्रकाश डाला गया है।
प्रमुख बिंदु:
- COVID- 19 महामारी के दौर में मार्च माह में सरकार द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के रूप में प्रधानमंत्री ‘गरीब कल्याण अन्न योजना’ की घोषणा की गई थी।
- ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ के माध्यम से सरकार पूरे देश में लगभग 800 मिलियन लाभार्थियों को हर माह 5 किलोग्राम अनाज और 1 किलो चना प्रदान कर रही है।
- महामारी के चलते लॉकडाउन अवधि के दौरान जो लाखों लोग/प्रवासी अपने पैतृक गाँवों में वापस चले गए हैं उनके पास पर्याप्त मात्रा में भोजन का अभाव बना हुआ है।
- मौजूदा समस्या के समाधान के तौर पर समाज के कमज़ोर वर्ग के लोगों के लिये पोषण एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये सामुदायिक कैंटीन (Community Canteens) एक सस्ता एवं बेहतर विकल्प है।
सामुदायिक कैंटीन:
- सामुदायिक कैंटीन/रसोई बहुत सस्ती कीमत पर लोगों को पौष्टिक भोजन प्रदान करती हैं।
- इनमें खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पोषण सुरक्षा के मानकों को भी ध्यान में रखा जाता है। ये सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
भारत में सामुदायिक कैंटीन की स्थिति:
- देश के लगभग 10 से अधिक राज्यों में सामुदायिक कैंटीन चलाई जा रही हैं।
- कुछ उल्लेखनीय उदाहरणों में तमिलनाडु की अम्मा कैंटीन और कर्नाटक की इंदिरा कैंटीन शामिल हैं।
- राजस्थान में जून 2020 में महामारी के संकट की स्थिति में तमिलनाडु की अम्मा रसोई की तर्ज पर ‘इंदिरा रसोई योजना’ की शुरुआत की गई।
- इस योजना के माध्यम से गरीबों और ज़रूरतमंदों को रियायती दरों पर दिन में दो बार पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।
- वर्ष 2016 में राजस्थान सरकार द्वारा ’अन्नपूर्णा रसोई योजना’ की शुरुआत की गई थी जिसमें 5 रुपए में नाश्ता एवं 8 रुपए में दोपहर का भोजन देने का प्रावधान किया गया था।
- मध्य प्रदेश की दीनदयाल कैंटीन भी सामुदायिक कैंटीन का ही उदाहरण हैं।
सामुदायिक कैंटीन का महत्त्व:
- इनके माध्यम से समाज़ के गरीब एवं कमज़ोर वर्ग के लिये सुरक्षित, पौष्टिक और सस्ती दरों पर भोजन की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सकता है।
- सामुदायिक कैंटीन रोज़गार के नए अवसर सृजित करने में सहायक हो सकती हैं। क्योंकि इन कैंटीनों के माध्यम से एक दिन में लगभग 90 मिलियन लोगों को भोजन परोसने के लिये लोगों की ज़रुरत होती है।
- यह खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करने में भी सहायक सिद्ध हो रही है।
वर्तमान स्थिति:
- सामान्यत इन कैंटीनों में 5-10 रुपए प्रति प्लेट की दर से सस्ता खाना मिलता है।
- प्रारंभिक विश्लेषण से पता चलता है कि इस तरह की कैंटीन में पौष्टिक भोजन की कीमत 15-20 रुपए प्रति प्लेट के हिसाब से स्वत धारणीय (Self-Sustainable) हो सकती है जो सड़क किनारे स्थित उन ढाबे द्वारा लिये जाने वाले भोजन शुल्क से काफी कम हैं।
- एक विश्लेषण के अनुसार, 26,500 करोड़ के शुरुआती सामाजिक निवेश के साथ 60,000 कैंटीन तथा 8,200 रसोईघरों के माध्यम से 30 मिलियन शहरी गरीब श्रमिकों को (मुख्य रूप से प्रवासियों को) एक दिन में तीन पौष्टिक भोजन दिये जा सकते हैं।
- यदि सभी शहरी प्रवासी श्रमिक ‘वन नेशन, वन राशन’ योजना की बजाय सामुदायिक कैंटीनों पर भरोसा करे तो निवेशक इनमें किये गए अपने निवेश को छह वर्ष से भी कम की समयावधि में वापस प्राप्त कर सकते हैं।
- यह ‘वन नेशन, वन राशन’ योजना के संभावित खाद्य सब्सिडी परिव्यय को कम करने में भी सहायक है, जिससे लगभग 4,500 करोड़ की वार्षिक बचत होने की संभावना है।
आगे की राह:
वर्तमान समय में अधिकांश कैंटीन सुचारु रूप से कार्य करने के लिये निरंतर सरकारी सहायता पर निर्भर है। केंद्र सरकार को सामुदायिक कैंटीन के सुचारु क्रियान्वयन हेतु प्रारंभिक पूंजी सहायता का विस्तार करना चाहिये तथा राज्य स्तर पर सेवा प्रदाताओं के रूप में इन कैंटीनों का नेतृत्व निजी संस्थाओं के सहयोग से शहरी स्थानीय निकायों या नगर निगमों द्वारा किया जाना चाहिये।