अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अन्य पिछड़ा वर्ग उप-श्रेणी जाँच आयोग
- 24 Aug 2017
- 6 min read
चर्चा में क्यों ?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अन्य पिछड़े वर्गों (Other Backward Classes-OBCs) के उप-श्रेणीकरण (sub-categorisation) के मुद्दे पर संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत एक आयेाग के गठन के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है। जानकारों के अनुसार सरकार के इस फैसले का व्यापक राजनीतिक असर होगा। वे इस आयोग के गठन को मंडल आयोग का दूसरा भाग भी मान रहे हैं।
अन्य पिछड़ा वर्ग उप-श्रेणी जाँच आयोग
- इस नये आयोग को अन्य पिछड़े वर्गों के उप-श्रेणी की जाँच आयोग के रूप में जाना जाएगा।
- आयोग को 12 सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है।
आयोग का कार्य :
- केंद्रीय अन्य पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल जातियों/समुदायों के बीच आरक्षण के लाभ के असमान वितरण की मात्रा की जाँच करना।
- पिछड़े वर्गों के भीतर उप-श्रेणीकरण हेतु क्रियाविधि, मानदंड मानकों एवं पैरा-मीटरों का वैज्ञानिक तरीके से आकलन करना; तथा
- अन्य पिछड़े वर्गों की केंद्रीय सूची में संबंधित जातियों/समुदायों/उप-जातियों/पर्यायों की पहचान करने और उन्हें उनकी संबंधित उप-श्रेणी में श्रेणीबद्ध करने की कवायद आरंभ करना है।
क्रीमी-लेयर की उच्चतम सीमा
- कैबिनेट ने अन्य पिछड़े वर्गों के लिये क्रीमी-लेयर की उच्चतम सीमा 8 लाख रुपए प्रति वर्ष कर दी है। फिलहाल केंद्र सरकार की नौकरियों के लिये यह सीमा 6 लाख रुपए प्रति वर्ष है।
अन्य पिछड़े वर्गों के अंदर उप-वर्गीकरण
- सरकार का कहना है कि ओबीसी के अंदर उप-वर्गीकरण बनाने से अधिक से अधिक ज़रूरतमंद जातियों को आरक्षण का फायदा मिल सकेगा।
- हालाँकि देश के अंदर आरक्षण व्यवस्था पर पुनर्विचार का सरकार का कोई इरादा नहीं है और अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण से भी सरकार ने इनकार किया है।
- उल्लेखनीय है कि वर्तमान में देश के नौ राज्यों- बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पुदुचेरी, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु में पिछड़ी जातियों के उप-वर्गीकरण की व्यवस्था है।
- देश की संपूर्ण जनसँख्या में अन्य पिछड़े वर्गों की संख्या 41% से 52% है।
राजनीतिक निहितार्थ
- जानकारों के अनुसार सरकार के इस फैसले का व्यापक राजनीतिक असर होगा। वे इसे मंडल आयोग का दूसरा भाग भी बता रहे हैं। इसे उत्तर प्रदेश के फार्मूले पर आगे चलने का संदेश भी माना जा रहा है।
- उल्लेखनीय है कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा से निपटने के लिये सामाजिक इंजीनियरिंग की थी और गैर-यादव समेत सभी पिछड़ी जातियों को एकजुट करने में पूरी ताकत लगाई थी। इसमें पार्टी को भरपूर सफलता भी मिली थी।
- इस सफलता से उत्साहित होकर भाजपा उत्तर प्रदेश के बाद अब बिहार में बड़ा राजनीतिक लाभ उठाने के प्रयास में है।
- उत्तर प्रदेश के अलावा देश के अधिकतर बड़े राज्यों में पिछड़ी जातियों की संख्या सबसे अधिक है। ऐसे में भाजपा उत्तर प्रदेश के फार्मूले को अब देश के सभी राज्यों और 2019 के आम चुनाव में आजमाना चाहती है।
दूसरी जातियों को मिलेगा मौका
- मोदी सरकार का दावा है कि ओबीसी में अलग श्रेणी बनाने का लाभ सभी जातियों को मिलेगा। हर जाति को नौकरियों में हिस्सा मिलेगा।
- मंडल आयोग की सिफरिशें लागू होने से ओबीसी को सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण मिलता है, लेकिन पिछले दिनों एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें कहा गया कि केंद्रीय कर्मचारियों में मात्र 12 फीसदी ओबीसी हैं। इनमें भी अधिकांश लाभ इनकी मज़बूत जातियों को ही मिला है।
- अतः अब सरकार ओबीसी को 3 श्रेणियों में बाँटेगी। तीनों के बीच 27 फीसदी के आरक्षण को उनके प्रतिनिधित्व के हिसाब से बाँटा जाएगा।
चुनौतियाँ
- यह सब कुछ इतना आसान भी नहीं लगता। सरकार की ओर से इस प्रक्रिया के शुरू करने के बाद इन अलग-अलग श्रेणियों में शामिल हर जाति अधिक से अधिक आरक्षण का लाभ लेने का दावा पेश करेगी। ऐसे में सबको संतुष्ट करना सरकार के सामने फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती होगी।