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कोलंबो प्रोसेस (Colombo Process) : काठमांडू डिक्लेरेशन (Kathmandu Declaration)

  • 21 Nov 2018
  • 3 min read

हाल ही में नेपाल की राजधानी काठमांडू में कोलंबो कंसल्टेशन के वरिष्ठ अधिकारियों की पाँचवीं बैठक और छठा मंत्रिस्तरीय कंसल्टेशन (Consultation) आयोजित हुआ। इस कंसल्टेशन की थीम ‘Safe, Regular and Managed Migration: A Win-Win for All’ रखी गई थी। इस कंसल्टेशन में 27 बिंदुओं वाले काठमांडू घोषणापत्र को सर्वसम्मति से मंज़ूर किया गया।  

  • सदस्य देश सदस्य प्रवासी श्रमिकों के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने और सतत् विकास लक्ष्यों के प्रवास-संबंधी तत्त्वों का कार्यान्वयन करने पर सहमत हुए। साथ ही महिला प्रवासी श्रमिकों के लिये समानता को बढ़ावा देने और प्रवासी श्रमिकों को वाणिज्य दूत (Consular) से सहयोग दिये जाने पर भी रजामंदी हुई।
  • कोलंबो कंसल्टेशन के सभी 12 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने इसमें हिस्सा लिया। इनमें नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, कंबोडिया, चीन, भारत, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, फिलीपींस, श्रीलंका, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं।

कोलंबो प्रोसेस क्या है?

  • कोलंबो प्रोसेस की स्थापना 2003 में हुई थी। कोलंबो प्रोसेस एक क्षेत्रीय सलाहकारी प्रक्रिया (Regional Advisory Process) है।
  • यह एशियाई देशों के लिये विदेशी रोज़गार और संविदात्मक (Contractual) श्रम का प्रबंधन करने वाला एक प्लेटफॉर्म है।
  • कोलंबो प्रोसेस का मूल उद्देश्य प्रवासी श्रमिक भेजने वाले एशियाई देशों द्वारा अपने अनुभव साझा करना है ताकि उनकी समस्याओं को समझा जा सके। साथ ही विदेश जाने वाले श्रमिकों के सामने आने वाले मुद्दों पर उन देशों के साथ संवाद बढ़ाना भी इसके उद्देश्यों में शामिल है, जिन देशों में प्रवासी श्रमिक जाते हैं।

  • अनुमानों के मुताबिक, हर साल 2.5 मिलियन से अधिक एशियाई श्रमिक अनुबंध के तहत विदेशों में काम करने के लिये अपना देश छोड़ देते हैं। इनमें से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया से प्रवासी श्रमिकों (Migrant workers) का एक बड़ा हिस्सा विभिन्न प्रकार के कार्य करने के लिये खाड़ी देशों में जाता है।
  • इनके अलावा व्यापार और निर्माण क्षेत्रों में भी बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक काम करने खाड़ी देशों में जाते हैं। साथ ही प्रवासी श्रमिक उत्तर अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों में भी काम करने जाते हैं। जिस प्रकार एशियाई प्रवासी श्रमिकों की मौजूदगी विश्व के हर कोने में देखी जा रही है, उसी प्रकार उनका प्रभाव भी बढ़ता जा रहा है।

स्रोत : द हिंदू

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