संज्ञानात्मक विसंगति | 16 Sep 2022
मेन्स के लिये:संज्ञानात्मक विसंगति अवधारणा, नैतिकता और मानव इंटरफेस |
संज्ञानात्मक विसंगति:
- परिचय:
- संज्ञानात्मक विसंगति की परिभाषा है बेचैनी की वह भावना जो किसी के विश्वास, दृष्टिकोण, मूल्यों और उसके कार्यों के बीच आपसी तनाव के कारण पैदा होती है।
- संज्ञानात्मक विसंगति की धारणा 1950 के दशक में अमेरिकी संज्ञानात्मक लियोन फेस्टिंगर द्वारा विकसित की गई थी।
- फेस्टिंगर को विश्वास था कि लोगों को उनके विश्वासों, दृष्टिकोणों और व्यवहारों के सामंजस्य एवं संबद्धता को बढ़ावा देने के लिये प्रेरित किया गया था। ऐसे में जब लोगों में यह भावना विकसित हो जाती है कि उनके मानसिक सामंजस्य में खराबी आ गई है, तो वे अपनी संज्ञानात्मक विसंगति को समाप्त करने का प्रयास करने लगेंगे।
- परीक्षण:
- फेस्टिंगर ने एक प्रयोग किया जिसमें लोगों को एक नीरस, दोहराव वाला (पेंचों को मोड़ने) काम करना था।
- उन्हें किसी से झूठ बोलने के लिये पैसा दिया गया और फिर उस व्यक्ति को यह समझाने का प्रयास करना था कि कार्य दिलचस्प था।
- फेस्टिंगर ने दो समूह बनाए, एक समूह के सदस्यों को छोटी राशि का भुगतान किया गया और दूसरे समूह को एक बड़ी राशि का भुगतान किया गया। फेस्टिंगर ने पाया कि जिन लोगों को अधिक पैसा दिया गया था उन्होंने कम संज्ञानात्मक विसंगति का अनुभव किया।
- संज्ञानात्मक विसंगति सिद्धांत:
- यह न केवल किसी के विश्वासों और कार्यों के बीच तनाव से उत्पन्न होने वाली असुविधा की भावनाओं को समझाने का प्रयास करता है बल्कि यह भी विश्लेषण करता है कि लोग इस तनाव को कैसे हल करते हैं।
संज्ञानात्मक विसंगति का कारण:
- बाध्यकारी अनुपालन व्यवहार:
- बाध्यकारी अनुपालन एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति को ऐसा कार्य करने के लिये मजबूर किया जाता है जो उसके विश्वासों के विपरीत है।
- चूँकि कार्य पहले ही हो चुका है और व्यवहार को बदला नहीं जा सकता है, विसंगति को कम करने का तरीका यही है कि व्यक्ति अपने द्वारा किये गए कार्यों का पुनर्मूल्यांकन करे।
- निर्णयन:
- निर्णय अक्सर विसंगति पैदा कर सकते हैं क्योंकि निर्णयों में एक विकल्प को दूसरे पर चुनना शामिल होता है, जिसका अर्थ है एक विकल्प के नुकसान को स्वीकार करना।
- उदाहरण:
- किसी व्यक्ति को एक बड़े शहर में नौकरी का ऑफर मिलता है, लेकिन नौकरी के प्रस्ताव को अस्वीकार करने का मतलब है दोस्तों व परिवार के पास रहना।
- दोनों विकल्पों के अपने-अपने लाभ और हानि हैं: अगर वह व्यक्ति नौकरी को स्वीकार कर लेता है तो अपने प्रियजनों से दूर हो जाएगा और यदि नौकरी ठुकरा देता है तो शहर में उपलब्ध अवसरों से चूक जाएगा।
- उदाहरण:
- निर्णय अक्सर विसंगति पैदा कर सकते हैं क्योंकि निर्णयों में एक विकल्प को दूसरे पर चुनना शामिल होता है, जिसका अर्थ है एक विकल्प के नुकसान को स्वीकार करना।
- प्रयास:
- अधिकांश लोग बड़े लक्ष्यों को ज़्यादा महत्त्व देते हैं जिसे प्राप्त करने के लिये अत्यधिक प्रयासों की आवश्यकता होती है।
- लेकिन संज्ञानात्मक विसंगति तब भी हो सकती है जब कोई व्यक्ति कुछ हासिल करने के लिये बहुत प्रयास करता है और बाद में वही नकारात्मक या अवांछनीय हो जाता है।
संज्ञानात्मक विसंगति को कैसे हल किया जा सकता है?
- परिचय:
- ऐसे कई तरीके थे जिनसे व्यक्तियों या समूहों ने अपनी परिस्थितियों के अनुकूल संज्ञानात्मक विसंगति का समाधान किया।
- व्यक्ति अपने विचारों को बदल सकता है, अपने विचार और व्यवहार को सुमेलित कर सकता है, अपने व्यवहार को सही ठहराने के लिये एक विचार जोड़ सकता है अथवा विचारों एवं व्यवहार के बीच विसंगति को कम सकता है।
- उदाहरण:
- X एक 25 वर्षीय स्नातक (बेरोज़गार) है जिसने हाल ही में एक राजनीतिक दल का समर्थन करना शुरू किया है।
- वह उस राजनीतिक दल का अनुकरण करता है क्योंकि वह सत्ता में आने पर देश में युवाओं के लिये बेहतर रोज़गार के अवसर और विकास प्रदान करने के उनके वादों में विश्वास करता है।
- उसकी पार्टी चुनाव जीत जाती है। सत्ता में उस पार्टी के पाँच साल पूरे होने के बावजूद रोज़गार के क्षेत्र में कुछ ख़ास बदलाव नहीं आया है और X अभी भी बेरोज़गार है। चूँकि अगला चुनाव आने वाला है, उस राजनीतिक पार्टी के सदस्य फिर उसकी मदद मांगते हैं। ऐसी स्थिति में X क्या करेगा?
- X उस स्थिति के विषय में अपनी राय बदल सकता है:
- वह अपने पड़ोसियों A और B, जो कि ग्रेजुएट हैं, की ओर देखता है। उन्होंने अपनी गली में ही चाय और समोसे की दुकान खोली है।
- व्यावहारिक अर्थों में न सही, लेकिन X ने निष्कर्ष निकाला कि उसकी पार्टी के सत्ता में आने के बाद नौकरियों का सृजन हुआ है। ऐसे में इस स्थिति के विषय में उसकी राय बदलती है और उसके विश्वास की विसंगति में कमी आती है। इस प्रकार बदले हुए नज़रिये के साथ वह फिर से उसी राजनीतिक पार्टी को वोट देगा।
- उस स्थिति के प्रति X अपना व्यवहार बदल सकता है:
- वह समझता है और स्वीकार करता है कि जिस राजनीतिक दल का उसने समर्थन किया था, उसके वादे झूठे थे और अब उन पर भरोसा नहीं करने का फैसला लेता है।
- X एक और तरह से सोच सकता है:
- वह अपनी सरकार की गतिविधियों का विश्लेषण करता है और निष्कर्ष निकालता है कि भले ही सरकार नौकरियाँ प्रदान करने में विफल रही लेकिन पिछले पाँच वर्षों में उसकी पार्टी के नेतृत्व में, सर्वोच्च न्यायालय, पुलों, सड़कों आदि के निर्माण के रूप में विभिन्न अवसंरचनात्मक विकास हुए हैं।
- अपने राजनीतिक दल के समर्थन को तर्कसंगत बनाने के लिये वह एक अन्य तरीके से सोचता है और ऐसा करते हुए अपने विचारों एवं व्यवहार के बीच संज्ञानात्मक विसंगति को हल करता है। वह अभी भी उसी पार्टी को इस उम्मीद के साथ वोट देगा कि पार्टी अपने वादे को पूरा करेगी तथा अगले कार्यकाल में अपने नागरिकों को रोज़गार प्रदान करेगी।
- X विसंगति को कम कर सकता है:
- वह अपनी पार्टी के सत्ता में आने के बाद अपने देश की स्थिति की तुलना आर्थिक रूप से गरीब पड़ोसी देशों के साथ करता है।
- वह पाता है कि उसके देश में शिक्षित युवाओं में से केवल 40% ही कार्यरत हैं, जबकि पड़ोसी देशों में यह हिस्सा 30% से भी कम है।
- इस प्रकार अपने राजनीतिक दल के शासन में दोषों को कम करने(दोष निकालने की प्रवृत्ति से बचने) से उसके विचारों और व्यवहार के बीच विसंगति के कारण उत्पन्न तनाव कम होता है।
- इस प्रकार वह उसी राजनीतिक दल को वोट देना जारी रखेगा क्योंकि अब उसने उस पार्टी का समर्थन करने को उचित ठहराया है।
- X उस स्थिति के विषय में अपनी राय बदल सकता है:
सिविल सेवक को संज्ञानात्मक विसंगति का अनुभव:
- एक IPS अधिकारी जो अहिंसा में विश्वास करता है या किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता, उसे जब लाठीचार्ज का फैसला लेना पड़ता है या भीड़ को नियंत्रित करने के लिये पैलेट गन का इस्तेमाल करना पड़ता है तो वह संज्ञानात्मक विसंगति का अनुभव करता है।
- नैतिक आचरण का सख्त अनुपालन सार्वजनिक और निजी जीवन दोनों में कुछ उद्देश्यों को पूरा करने में समस्याएँ उत्पन्न करता है, जिसके कारण व्यक्ति के भीतर निराशा उत्पन्न होती है। कई बार ईमानदार होना भी लोकसेवकों को शक्तिशाली निहित स्वार्थों के खिलाफ खड़ा कर देता है, जिससे उसके एवं उसके परिवार का जीवन खतरे में पड़ जाता है तथा उसके दिमाग में विसंगति उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है।
- विकास बनाम पर्यावरण: किसी लोकसेवक को उस समय विसंगति का सामना करना पड़ सकता है, जब उसे किसी भी विकास परियोजना के लिये जनजातीय आबादी के विस्थापन पर निर्णय लेना होता है।
निष्कर्ष:
- एक लोकसेवक को सदैव संवैधानिक नैतिक मूल्यों तथा सेवाओं की आचार-संहिता का पालन करना चाहिये और संज्ञानात्मक विसंगति के किसी भी मामले में सार्वजनिक सेवा के नैतिक ढाँचे के तहत कार्य करना चाहिये।
- जब भी इस तरह की स्थिति उत्पन्न होती है, तो भावनात्मक बुद्धिमत्ता लोकसेवकों के लिये एक उपचारात्मक उपाय हो सकती है।