वेतन संहिता विधेयक, 2019 | 01 Aug 2019
चर्चा में क्यों?
पुराने एवं अप्रचलित श्रम कानूनों को विश्वसनीय तथा भरोसेमंद कानूनों में बदलने के लिये वेतन विधेयक, 2019 लोकसभा ने पारित कर दिया।
प्रमुख बिंदु
- वर्तमान में 17 श्रम कानून 50 से वर्ष से अधिक पुराने हैं तथा इनमें से कुछ तो स्वतंत्रता से पहले के दौर के हैं।
- वेतन विधेयक में शामिल किये गए चार अधिनियमों में से वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 स्वतंत्रता से पहले का है तथा न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 भी 71 साल पुराना है। इसके अलावा बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 भी इसमें शामिल किया जा रहा है।
- वेतन विधेयक को 10 अगस्त, 2017 को लोकसभा में पेश किया गया था और वहाँ से इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था, जिसने 18 दिसंबर, 2018 को अपनी सिफारिशें दे दी थीं।
- स्थायी समिति की 24 सिफारिशों में 17 को सरकार ने स्वीकार कर लिया था।
- संहिता सभी कर्मचारियों और कामगारों के लिये वेतन के समयबद्ध भुगतान के साथ ही न्यूनतम वेतन सुनिश्चित करती है।
- कृषि मज़दूर, पेंटर, रेस्टोरैंट और ढाबों पर काम करने वाले, चौकीदार आदि असंगठित क्षेत्र के कामगार जो अभी तक न्यूनतम वेतन की सीमा से बाहर थे, उन्हें न्यूनतम वेतन कानून बनने के बाद कानूनी सुरक्षा हासिल होगी।
- विधेयक में सुनिश्चित किया गया है कि मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को अगले महीने की 7 तारीख तक वेतन मिल जाना चाहिये, वहीं जो लोग साप्ताहिक आधार पर काम करते हैं उन्हें सप्ताह के आखिरी दिन और दैनिक कामगारों को उसी दिन पारिश्रमिक मिलना चाहिये।
संहिता की मुख्य विशेषताएँ
- वेतन संहिता सभी कर्मचारियों के लिये क्षेत्र और वेतन सीमा पर ध्यान दिये बिना न्यूनतम वेतन और वेतन के समय पर भुगतान को सार्वभौमिक बनाती है।
- वर्तमान में न्यूनतम वेतन अधिनियम और वेतन का भुगतान अधिनियम दोनों को एक विशेष वेतन सीमा से कम और अनुसूचित रोज़गारों में नियोजित कामगारों पर ही लागू करने के प्रावधान हैं।
- इस विधेयक से हर कामगार के लिये भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित होगा और मौजूदा लगभग 40 से 100 प्रतिशत कार्यबल को न्यूनतम मज़दूरी के विधायी संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
- इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि हर कामगार को न्यूनतम वेतन मिले, जिससे कामगार की क्रय शक्ति बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।
- न्यूनतम जीवन यापन की स्थितियों के आधार पर वेतन मिलने से देश में गुणवत्तापूर्ण जीवन स्तर को बढ़ावा मिलेगा और लगभग 50 करोड़ कामगार इससे लाभान्वित होंगे।
- इस विधेयक में राज्यों द्वारा कामगारों को वेतन का भुगतान डिजिटल तरीकों से करने की परिकल्पना की गई है।
- विभिन्न श्रम कानूनों में वेतन की 12 परिभाषाएं हैं, जिन्हें लागू करने में कठिनाइयों के अलावा मुकदमेबाजी को भी बढ़ावा मिलता है।
- परिभाषा को सरल बनाया गया है, जिससे मुकदमेबाजी कम होने और नियोक्ता के लिये इसका अनुपालन सरलता करने की उम्मीद है।
- इससे प्रतिष्ठान भी लाभान्वित होंगे, क्योंकि रजिस्टरों की संख्या, रिटर्न और फॉर्म आदि न केवल इलेक्ट्रॉनिक रूप से भरे जा सकेंगे और उनका रख-रखाव किया जा सकेगा, बल्कि यह भी कल्पना की गई है कि कानूनों के माध्यम से एक से अधिक नमूना (Specimen) निर्धारित नहीं किया जाएगा।
- वर्तमान में अधिकांश राज्यों मेंअलग-अलग न्यूनतम वेतन हैं। वेतन संहिता के माध्यम से न्यूनतम वेतन निर्धारण की प्रणाली को सरल और युक्तिसंगत बनाया गया है।
- ज़गार के विभिन्न प्रकारों को अलग करके न्यूनतम वेतन के निर्धारण के लिये एक ही मानदंड बनाया गया है।
- न्यूनतम वेतन निर्धारण मुख्य रूप से स्थान और कौशल पर आधारित होगा।
- इससे देश में मौजूद 2000 न्यूनतम वेतन दरों में कटौती होगी और न्यूनतम वेतन की दरों की संख्या कम होगी।
- निरीक्षण प्रक्रिया में अनेक परिवर्तन किये गए हैं। इनमें वेब आधारित रेंडम कम्प्यूटरीकृत निरीक्षण योजना, अधिकार क्षेत्र मुक्त निरीक्षण, निरीक्षण के लिये इलेक्ट्रॉनिक रूप से जानकारी मांगना और जुर्मानों का संयोजन आदि शामिल हैं।
- सभी परिवर्तनों से पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ श्रम कानूनों को लागू करने में सहायता मिलेगी।
- ऐसे अनेक उदाहरण हैं कि कम समयावधि के कारण कामगारों के दावों को आगे नहीं बढ़ाया जा सका। अब सीमा अवधि को बढ़ाकर तीन वर्ष किया गया है और न्यूनतम वेतन, बोनस, समान वेतन आदि के दावे दाखिल करने को एक समान बनाया गया है। फिलहाल दावों की अवधि 6 महीने से 2 वर्ष के बीच है।
- इसलिये यह कहा जा सकता है कि न्यूनतम वेतन के वैधानिक संरक्षण करने को सुनिश्चित करने तथा देश के 50 करोड़ कामगारों को समय पर वेतन भुगतान होने के लिये यह एक ऐतिहासिक कदम है। यह कदम जीवन सरल बनाने और व्यापार को ज्यादा आसान बनाने के लिये भी वेतन संहिता के माध्यम से उठाया गया है।