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तटीय आपदा प्रबंधन

  • 26 Feb 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

तटीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण और लोचशीलता पर राष्ट्रीय सम्मेलन

मेन्स के लिये:

तटीय आपदा प्रबंधन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘तटीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण और लोचशीलता पर राष्ट्रीय सम्मेलन: 2020’ (National Conference on Coastal Disaster Risk Reduction and Resilience: 2020- CDRR&R) का आयोजन नई दिल्ली में किया गया।

मुख्य बिंदु:

  • इस सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (National Institute of Disaster Management- NIDM) द्वारा नई दिल्ली में किया गया।
  • इस सम्मेलन में केंद्रीय और राज्य संगठनों/विभागों के 175 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
  • सम्मेलन का उद्घाटन ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (National Disaster Management Authority- NDMA) के अध्यक्ष द्वारा किया गया।

सम्मेलन का उद्देश्य:

  • तटीय आपदा जोखिमों के बारे में बेहतर समझ विकसित करने के लिये मानव क्षमता को बढ़ाना ताकि आपदा जोखिम को कम करने में मदद मिल सके तथा आपदा से निपटने में लोचशीलता (Resilience) बढ़ सके।
  • इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये आपदा प्रबंधन पर ‘प्रधानमंत्री का 10-सूत्री एजेंडा’ (Prime Minister’s 10-point Agenda) और ‘आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंदाई फ्रेमवर्क’ (Sendai Framework for Disaster Risk Reduction) को लागू करना है।

आपदा प्रबंधन पर प्रधानमंत्री का 10-सूत्री एजेंडा:

  • नवंबर 2016 में नई दिल्ली में आपदा जोखिम को कम करने के विषय पर आधारित ‘एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन’ में प्रधानमंत्री ने सेंदाई फ्रेमवर्क के 10 सूत्री एजेंडे को लागू करने की रूपरेखा पेश की, जिसके तहत आपदा प्रबंधन में महिला-बलों की संख्या में बढ़ोतरी और आपदा से निपटने एवं इसे रोकने के लिये देशों के बीच सहयोग बढ़ाने पर बल दिया गया।

चर्चा के मुख्य विषय:

  • आपदा पर राष्ट्रीय और स्थानीय रणनीतियों से संबंधित सूचना के प्रसार को बढ़ाना ताकि तटीय आपदा जोखिम को कम करने में सहयोग तथा लोचशीलता में वृद्धि हो सके और इस उद्देश्य की प्राप्ति की दिशा में विभिन्न संस्थानों, शोधकर्त्ताओं एवं विशेषज्ञों के साथ जुड़कर सूचना अंतराल को कम करने हेतु रोडमैप विकसित करना।
  • तटीय आपदा प्रबंधन में नैतिक दृष्टिकोण अपनाकर आपदा प्रबंधन में आने वाली चुनौतियों और संभावनाओं की पहचान करना।
  • देश की समग्र अर्थव्यवस्था के विकास पर तटीय आपदाओं के प्रभाव का विश्लेषण करना।
  • सम्मेलन में पहचाने गए विभिन्न अंतराल के क्षेत्रों में अनुसंधान और प्रशिक्षण का कार्य करना।

प्रमुख तटीय आपदाएँ:

चक्रवात:

Cyclone

  • भारतीय उपमहाद्वीप विश्व में चक्रवात से बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। भारत की 8041 किलोमीटर की लंबी तटरेखा उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से प्रभावित है।
  • इनमें से अधिकांश चक्रवात बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होते हैं और भारत के पूर्वी तट को प्रभावित करते हैं। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न चक्रवातों का अनुपात लगभग 1 : 4 है।
  • अधिकांश उष्णकटिबंधीय चक्रवात मई-जून और अक्तूबर-नवंबर के महीनों में उत्पन्न होते हैं।

सूनामी:

  • भारतीय तटीय भाग सूनामी के प्रति सुभेद्य है। वर्ष 2004 में सूनामी के समय अंडमान में आए भूकंप की तीव्रता 9.3 थी, जो मुख्य रूप से आंतरिक प्लेटों में थ्रस्ट (Thrust) के कारण सागर-नितल (Seafloor) के ऊर्ध्वाधर विस्थापन से उत्पन्न हुआ था।

Tsunami

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • वर्तमान में भारतीय राष्ट्रीय सागरीय सूचना सेवा केंद्र (Indian National Center for Ocean Information Services- INCOIS), हैदराबाद ऐसी महासागरीय आपदाओं के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning System- EWS) प्रदान करने का कार्य कर रहा है।
  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD), भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है, यह मौसम विज्ञान प्रेक्षण, मौसम पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान का कार्यभार संभालने वाली सर्वप्रमुख एजेंसी है।

आगे की राह:

  • राष्ट्रीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक स्तर पर आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों को कुशल प्रबंधन के तहत मज़बूत बनाने तथा आपदा प्रतिक्रिया, पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण के लिये आवश्यक तैयारी व राष्ट्रीय समन्वय में सुधार करने पर बल दिया जाना चाहिये।

स्रोत: पीआईबी

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