जैव विविधता और पर्यावरण
2018 के दौरान भारत की जलवायु
- 17 Jan 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) ने 2018 के दौरान भारत की जलवायु के संदर्भ में एक वक्तव्य जारी किया है। इस वक्तव्य में जलवायु से संबंधित विभिन्न आँकड़ों को जारी किया गया है जिसमें तामपान, वर्षा तथा मौसम द्वारा उत्पन्न की गई मुश्किल स्थितियों जैसे पहलुओं की तरफ ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की गई है।
वक्तव्य में शामिल पहलू
- तापमान की स्थिति
- वर्षा की स्थिति
- उच्च प्रभाव डालने वाली मौसमी घटनाएँ
तापमान की स्थिति
- 2018 के दौरान भारत में औसत तापमान सामान्य से काफी अधिक था।
- 2018 में भारतीय भूमि सतह का वार्षिक औसत तापमान 1981-2010 के औसत से 0.41 डिग्री सेंटीग्रेड अधिक था। अतः वर्ष 1901 के बाद दर्ज़ किये गए आँकड़ों के मुताबिक, 2018 छठा सबसे गर्म वर्ष था।
- अब तक पाँच सबसे गर्म वर्ष 2016 (0.72 ℃), 2009 (0.56 ℃), 2017 (0.55 ℃), 2010 (0.54 ℃), 2015 (0.42 ℃) रहे हैं।
- गौर करने वाली बात यह है कि 15 में से 11 सबसे गर्म वर्ष हाल के पंद्रह वर्षों (2004-2018) के दौरान थे।
- विश्व मौसम संगठन (World Meteorological Organization-WMD) के अनुसार, लंबे समय चल रही ग्लोबल वार्मिंग की प्रवृत्ति 2018 में भी जारी रही।
वर्षा की स्थिति
- देश में 2018 की वार्षिक औसत वर्षा 1951-2000 के दीर्घ अवधि की औसत (Long Period Average-LPA) का 85% थी।
- प्रमुख वर्षा ऋतु यानी दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून-सितंबर) के दौरान पूरे देश में वर्षा की स्थिति सामान्य (Long Period Average-LPA का 90.6%) रही।
- मध्य भारत में दीर्घ अवधि औसत (Long Period Average-LPA) वर्षा के मुकाबले 93% वर्षा हुई, जबकि पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में यह आँकड़ा 76% रहा।
- 2018 में उत्तर-पूर्व मानसून (अक्तूबर-दिसंबर) के दौरान वर्षा सामान्य से काफी कम (Long Period Average-LPA का 56%) हुई।
उच्च प्रभाव डालने वाली मौसमी घटनाएँ
- उत्तरी हिंद महासागर के ऊपर बनने वाले चक्रवाती तूफानों (तितली, फैथई, गज) के अलावा, देश ने उच्च प्रभाव डालने वाली मौसमी घटनाओं का सामना किया।
- इनमें अत्यधिक भारी वर्षा, ग्रीष्म और शीत लहरें, बर्फबारी, गरज, धूल भरी आंधी, बिजली, बाढ़ जैसी भयावह घटनाएँ शामिल रहीं।
- प्री-मानसून, मानसूनी मौसम के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों (अर्थात् उत्तरी/उत्तर-पूर्वी, मध्य और प्रायद्वीपीय भागों) में बाढ़ और भारी बारिश से संबंधित घटनाओं की वज़ह से 800 से अधिक लोगों को जान गँवानी पड़ी।
- इन मौतों में से अकेले केरल में बाढ़ की वज़ह से 223 मौतें (8-23 अगस्त के बीच) हुईं।
ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम
- हालिया वर्षों के दौरान जलवायु में प्रतिबिंबित यह भयावहता ग्लोबल वार्मिंग का ही परिणाम है। भारतीय मुख्य भूमि के तापमान में वृद्धि वैश्विक तापमान वृद्धि के समान ही है।
- तापमान बढ़ने के साथ-साथ ऐसी मौसमी घटनाएँ और भी विकराल रूप धारण करती जाएंगी।