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जलवायु परिवर्तन : क्षतिग्रस्त चट्टानें और तितलीफ़िश के सह-संबंध में आ रहा है बदल

  • 28 Mar 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?
यदि व्यक्ति के सामने किसी पक्ष का चयन करने हेतु सीमित विकल्प दिये जाएँ, तो वह उस कार्य में बहुत कम कमियाँ निकालता है या उसे उसके वास्तविक स्वरूप में ही स्वीकार कर लेता है। ऐसा ही एक उदाहरण हमें लक्षद्वीप की मेलोन तितलीफिश (melon butterfly fish) के संदर्भ में नज़र आता है।

मुद्दा क्या है?

  • प्रक्षालित प्रवाल भित्तियों (bleached coral reefs) जहाँ न्यूनतम खाद्य संसाधन पाए जाते हैं, में पाई जाने वाली ये मछलियाँ जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री चट्टानों (reefs) जो होने वाले नुकसान के अनुकूल होने के लिये अपने आहार और खाने के स्वरूप में परिवर्तन करती रहती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन से प्रेरित महासागरीय गर्मी प्रवाल विरंजन (bleaching) का कारण बन सकती है, जो प्रवाल खंड (coral patch) पर दबाव देती है और उन्हें मृत्यु की तरफ उन्मुख करती है।
  • भारतीय प्रवाल प्रणाली में विरंजन कोई नई बात नहीं है। वर्ष 2010 की विरंजन घटना ने लक्षद्वीप द्वीप समूह की कई समुद्री चट्टानों में प्रवाल खंडों को खत्म कर दिया था, जोकि प्रवाल को भोजन के रूप में प्रयोग करने वाली विशेष प्रकार की मछलियों, जैसे- मेलोन तितलीफिश के लिये विनाशकारी साबित हो सकता है। 

वैज्ञानिकों द्वारा किया गया अध्ययन

  • बेंगलुरू के प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन (NCF) और नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (NCBS) के वैज्ञानिकों द्वारा गौण गतिविधियों वाली तीन चट्टानों (reefs), कद्मत के द्वीप (केवल 7% प्रवाल क्षेत्र, यहाँ प्रवाल मृत्यु अधिकतम होती है, इसलिये यहाँ संसाधन भी कम मात्रा में पाए जाते हैं), लक्षद्वीप में बित्रा और कावारत्ती (कद्मत से चार गुना अधिक प्रवाल वाला एवं सबसे कम प्रवाल मृत्यु वाला क्षेत्र) में जीवित प्रवाल क्षेत्रों तथा तितलीफिश की संख्या के संबंध में एक अध्ययन किया गया।
  • इस अध्ययन के दौरान आश्चर्यजनक रूप से, यह जानकारी प्राप्त हुई कि चट्टानों में प्रवाल क्षेत्रों की संख्या में बड़े अंतर के बावजूद,  मेलोन तितलीफ़िश की संख्या तीनों क्षेत्रों में एक-समान ही पाई गईं।
  • इस संबंध में वैज्ञानिकों द्वारा जारी एक अंतर्जलीय (under water) वीडियो में मछलियों के व्यवहार को दर्शाया गया है।
  • वीडियो फुटेज में मेलोन तितलीफिश (melon butterfly fish) की 58 प्रजातियों द्वारा खाए गए प्रवालों की प्रजातियों, मछली द्वारा भोजन करने में लगे समय और भोजन प्राप्त करने के लिये जीवित प्रवाल खंडों तक उनकी यात्रा में लगे समय को दर्ज़ किया गया।
  • कम संसाधनों वाली चट्टानों में, मछलियों द्वारा जिन प्रवाल प्रजातियों का उपभोग किया गया, उन्हें कावारत्ती जैसे संसाधन समृद्ध चट्टानों में स्पष्ट रूप से छोड़ दिया गया। 
  • मछलियों ने संसाधन विहीन क्षेत्रों में यात्रा पर अधिक तथा भोजन की तलाश में कम समय बिताया, जिससे उनके लिये खाद्य प्रबंधन काफी मुश्किल और प्रभावशाली ढंग से महँगा साबित हुआ।
  • यह अध्ययन एथोलॉजी (Ethology) नामक एक पत्रिका में प्रकाशित हुआ।  

प्रवाल भित्तियाँ क्या हैं?

  • प्रवाल भित्तियाँ या मूंगे की चट्टानें (Coral reefs) समुद्र के भीतर स्थित प्रवाल जीवों द्वारा छोड़े गए कैल्शियम कार्बोनेट से बनी होती हैं। प्रवाल कठोर संरचना वाले चूना प्रधान जीव (सिलेन्ट्रेटा पोलिप्स) होते हैं। इन प्रवालों की कठोर सतह के अंदर सहजीवी संबंध से रंगीन शैवाल जूजैंथिली (Zooxanthellae) पाए जाते हैं। 
  • प्रवाल भित्तियों को विश्व के सागरीय जैव विविधता का उष्णस्थल (Hotspot) माना जाता है तथा इन्हें समुद्रीय वर्षावन भी कहा जाता है।

प्रवालों के निर्माण के लिये निम्नलिखित परिस्थितियाँ सहायक होती हैं-

  • प्रवाल मुख्य रूप से उष्णकटिबंधों में पाए जाते हैं, क्योंकि इनके जीवित रहने के लिये 20°C - 21°C तापक्रम की आवश्यकता होती है।
  • प्रवाल कम गहराई पर पाए जाते हैं, क्योंकि अधिक गहराई पर सूर्य के प्रकाश व ऑक्सीजन की कमी होती है।
  • प्रवालों के विकास के लिये स्वच्छ एवं अवसादरहित जल आवश्यक है, क्योंकि अवसादों के कारण प्रवालों का मुख बंद हो जाता है और वे मर जाते हैं।
  • प्रवाल भितियों का निर्माण कोरल पॉलिप्स नामक जीवों के कैल्शियम कार्बोनेट से निर्मित अस्थि-पंजरों के अलावा, कार्बोनेट तलछट से भी होता है जो इन जीवों के ऊपर हज़ारों वर्षों से जमा हो रही है।

जलवायु परिवर्तन से क्या प्रभाव पड़ता है?

  • महासागर में कार्बन डाइऑक्साइड के विलयन से महासागरों की अम्लीयता बढ़ जाती है, जिससे प्रवालों की मृत्यु हो जाती है।
  • प्रवाल खनन, अपरदन आदि को रोकने हेतु बनाए गए रोधिका, स्पीडबोट के द्वारा होने वाले गाद निक्षेपण के कारण भी प्रवालों की मौत हो जाती है।
  • द्वीप निर्माण करने वाले प्रवाल 64° F या 18° C से नीचे के तापमान को सहन नहीं कर पाते हैं। कई प्रवाल 23° से 29° C तक और कुछ अल्पावधि के लिये 40°C तक के तापमान को सहन कर पाते हैं लेकिन, इससे अधिक तापमान प्रवाल द्वीपों के लिये खतरनाक साबित होता है।
  • वहीं औद्योगिक संकुलों से निकलने वाला जल भी इनके अस्तित्व के लिये संकट का कारक होता है।
  • इसके अतिरिक्त, आए दिन होने वाली तेल रिसाव की घटनाएँ, बढ़ता मत्स्यन एवं पर्यटन आदि के कारण भी प्रवाल द्वीप बहुत गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
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