2050 तक भारतीय जीडीपी के 2.8% क्षति हेतु उत्तरदायी होगा जलवायु परिवर्तन | 29 Jun 2018
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान और मानसूनी बारिश के बदलते प्रतिमान की कीमत भारत को जीडीपी में 2.8 प्रतिशत की कमी के रूप में चुकानी होगी। इसके कारण 2050 तक देश की लगभग आधी आबादी प्रभावित हो सकती है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक प्रभावित मध्य भारत के 10 ज़िलों (महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के कुछ ज़िले) होंगे, जिन्हें रिपोर्ट में गंभीर "हॉटस्पॉट" के रूप में पहचाना गया है।
- अतीत के अध्ययनों से अनुमान लगाया गया है कि बाढ़ और सूखे के साथ-साथ समुद्री जल स्तर की वृद्धि जैसे चरम मौसमी घटनाओं का इन क्षेत्रों में प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। पहली बार इस क्षेत्र के मौसम में क्रमिक परिवर्तनों के अवांछित परिणामों को सारणीबद्ध (tabulated) किया गया है।
- रिपोर्ट के अनुसार, उन स्थानों को हॉटस्पॉट के रूप में परिभाषित किया जाता है जहाँ औसत तापमान और वर्षा में परिवर्तन जीवन स्तर को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
- जिन स्थानों पर जीवन स्तर का नुकसान 8 प्रतिशत से अधिक है, उन्हें गंभीर हॉटस्पॉट के रूप में और 4 से 8 प्रतिशत के बीच की स्थिति को “औसत दर्जे” (moderate) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
गंभीर हॉटस्पॉट
- विश्व बैंक के मुताबिक, हॉटस्पॉट न केवल ऐसे स्थान हैं जहाँ उच्च तापमान पाया जाता है बल्कि ये जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये स्थानीय आबादी की सामाजिक-आर्थिक क्षमता को भी प्रतिबिंबित करते हैं।
- इन गंभीर हॉटस्पॉट में 148 मिलियन भारतीय रहते हैं और उनमें से अधिकांश के जीवन स्तर को कार्बन-गहन परिदृश्य में लगभग 12 प्रतिशत का होता है।
- जबकि 441 मिलियन भारतीय “औसत दर्जे” के हॉटस्पॉट में निवास करते हैं जहाँ जीवन स्तर में औसत परिवर्तन 5.6 प्रतिशत होता है।
- रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के 10 ज़िलों में से 7 गंभीर हॉटस्पॉट की श्रेणी में हैं। अन्य हॉटस्पॉट क्षेत्र छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में हैं।
- इन गंभीर हॉटस्पॉट में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में हानि राष्ट्रीय औसत 2.8 प्रतिशत के मुकाबले 9.8 प्रतिशत से अधिक हो सकती है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में कुल 1,178 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है।
- रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि नीतिगत हस्तक्षेप से काफी सुधार हो सकता है। निवासियों की शैक्षिक स्थिति में वृद्धि, जल संकट की कमी और गैर-कृषि क्षेत्र में सुधार कर उल्लेखनीय बदलाव लाया जा सकता है।