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जैव विविधता और पर्यावरण

सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में स्वच्छ, स्वस्थ पर्यावरण

  • 01 Aug 2022
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मानवाधिकार, संयुक्त राष्ट्र, UNGA, मानवाधिकारों की घोषणा, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय समूहों और संधियों का महत्त्व, मानव अधिकारों के रूप में पर्यावरण, संयुक्त राष्ट्र की भूमिकाएँ

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में स्वच्छ, स्वस्थ पर्यावरण तक पहुँच की घोषणा करता है।

  • भारत ने प्रस्ताव के लिये मतदान किया और बताया कि संकल्प बाध्यकारी दायित्व का निर्माण नहीं करते हैं।
  • केवल अभिसमयों और संधियों के माध्यम से ही राज्य पक्ष ऐसे अधिकारों के लिये दायित्वों का निर्वहन करते हैं।

भारतीय संविधान में स्वच्छ पर्यावरण का प्रावधान:

  • जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उपयोग भारत में विविध प्रकार से किया गया है। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ प्रजाति के रूप में जीवित रहने का अधिकार, जीवन की गुणवत्ता, सम्मान के साथ जीने का अधिकार और आजीविका का अधिकार शामिल है।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है: 'कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।'

संकल्प के बारे में:

  • परिचय:
    • ग्रह पर प्रत्येक व्यक्ति को स्वच्छ, स्वस्थ वातावरण में रहने का अधिकार है।
    • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण भविष्य में मानवता के सामने सबसे गंभीर खतरे हैं।
    • यह दर्शाता है कि सदस्य राज्य जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता के नुकसान और प्रदूषण जैसे ट्रिपल प्लेनेट संकट के खिलाफ सामूहिक लड़ाई में एकजुट हो सकते हैं।
    • भारत सहित संयुक्त राष्ट्र के 160 से अधिक सदस्य देशों द्वारा अपनाई गई घोषणा कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।
      • लेकिन यह देशों को राष्ट्रीय संविधानों और क्षेत्रीय संधियों में स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को शामिल करने के लिये प्रोत्साहित करेगा।
    • रूस और ईरान ने मतदान से परहेज किया।
  • लाभ:
    • यह पर्यावरणीय अन्याय और संरक्षण अंतराल को कम करने में मदद करेगा।
    • यह लोगों को सशक्त बना सकता है, विशेष रूप से कमज़ोर परिस्थितियों में उन लोगों को जिनमें पर्यावरणीय मानवाधिकार रक्षक, बच्चे, युवा, महिलाएँ और स्थानिक लोग शामिल हैं।
    • यह अधिकार (स्वच्छ, स्वस्थ पर्यावरण तक पहुँच) मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948 में शामिल नहीं था।

मानवाधिकार:

  • परिचय:
    • मानवाधिकारों का आशय ऐसे अधिकारों से है जो जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त होते हैं।
    • मानवाधिकारों में शामिल हैं:
      • जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी तथा यातना से मुक्ति, विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम व शिक्षा का अधिकार आदि।
      • बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक मानव इन अधिकारों का उपभोग कर सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून:
    • अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून व्यक्तियों या समूहों के मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने तथा उनकी रक्षा करने हेतु कुछ तरीकों से कार्य करने या कुछ कृत्यों से परहेज करने के लिये सरकारों के दायित्वों को निर्धारित करता है।
    • मानव अधिकारों का निकाय:
      • मानवाधिकार कानून के व्यापक निकाय में एक सार्वभौमिक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षित संहिता होती है, जिसमें सभी इच्छुक राष्ट्र इसकी सदस्यता ले सकते हैं।
        • संयुक्त राष्ट्र ने नागरिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों सहित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत अधिकारों की एक विस्तृत शृंखला को परिभाषित किया है।
        • इसने इन अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने तथा राज्यों को उनकी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में सहायता के लिये तंत्र भी स्थापित किया है।
        • कानून के इस निकाय की नींव संयुक्त राष्ट्र का चार्टर और मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा है, जिसे वर्ष 1945 एवं 1948 में महासभा द्वारा अपनाया गया था।

जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता और प्रदूषण:

  • जलवायु परिवर्तन:
    • जलवायु परिवर्तन से तात्पर्य तापमान और मौसम के प्रतिरूप में आए दीर्घकालिक बदलाव से है।
      • ये बदलाव प्राकृतिक हो सकते हैं जैसे सौर चक्र में बदलाव के माध्यम से जलवायु परिवर्तन।
      • लेकिन 1800 के दशक से मानव गतिविधियाँ जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारक रही हैं, जिसमें मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाने की प्रक्रिया शामिल है।
    • जीवाश्म ईंधन को जलाने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है जो पृथ्वी के चारों ओर एक कंबल की तरह काम करता है, जो सूरज से आने वाली गर्मी को रोककर पृथ्वी के तापमान को बढ़ाता है।
      • जलवायु परिवर्तन का कारण बनने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के उदाहरणों में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन शामिल हैं।
        • ये कार चलाने के लिये गैसोलीन या किसी इमारत को गर्म करने के लिये कोयले के उपयोग से उत्पन्न होते हैं।
          • भूमि और जंगलों को साफ करने से कार्बन डाइऑक्साइड भी निकल सकता है।
      • अपशिष्ट के लिये लैंडफिल मीथेन उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत है।
      • ऊर्जा, उद्योग, परिवहन, भवन, कृषि और भूमि उपयोग मुख्य उत्सर्जक हैं।
  • जैवविविधता:
    • जैवविविधता का आशय सभी प्रकार के जीवन से है जिसमें एक क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के जानवरों, पौधों, कवक और यहाँ तक कि बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं जो हमारी प्राकृतिक दुनिया का निर्माण करते हैं।
    • इनमें से प्रत्येक प्रजाति और जीव संतुलन बनाए रखने एवं जीवन का समर्थन करने के लिये एक जटिल वेब की तरह पारिस्थितिक तंत्र में एक साथ काम करते हैं।
    • जैवविविधता प्रकृति में हर उस चीज़ का समर्थन करती है जो हमें जीवित रहने के लिये चाहिये, जैसे- भोजन, स्वच्छ जल, दवा और आश्रय।
  • प्रदूषण:
    • प्रदूषण पर्यावरण में हानिकारक पदार्थों की शुरुआत है।
      • इन हानिकारक पदार्थों को प्रदूषक कहा जाता है।
        • ज्वालामुखी की राख जैसे प्रदूषक प्राकृतिक हो सकते हैं।
        • वे मानव गतिविधि जैसे कारखानों द्वारा उत्पादित अपशिष्ट या अपवाह द्वारा भी निर्मित हो सकते हैं।
      • प्रदूषक- हवा, जल और ज़मीन की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाते हैं।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)

प्रश्न. मौलिक अधिकारों के अलावा भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा भाग मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) के सिद्धांतों और प्रावधानों को दर्शाता है या प्रतिबिंबित करता है? (2020)

  1. प्रस्तावना
  2. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत
  3. मौलिक कर्तव्य

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा घोषित मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) प्रत्येक मनुष्य की समानता और गरिमा को स्थापित करती है तथा सभी लोगों को उनके समस्त अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं का निर्वहन करने में सक्षम बनाने हेतु प्रत्येक सरकार के मुख्य कर्तव्य को निर्धारित करती है।
  • प्रस्तावना: प्रस्तावना का उद्देश्य जैसे- न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक), समानता और स्वतंत्रता भी UDHR के सिद्धांतों को दर्शाते हैं।
  • राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत (DPSP): अनुच्छेद 36 से अनुच्छेद 51 के तहत प्रदान किये गए DPSP ऐसे सिद्धांत हैं जिनका उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक न्याय प्रदान करना तथा कल्याणकारी राज्य की दिशा निर्धारित करना है। ये DPSP राज्य पर दायित्व के रूप में कार्य करते हैं जो मानवाधिकारों के अनुरूप हैं। कुछ डीपीएसपी जो मानव अधिकारों के साथ तालमेल बिठाते हैं, वे इस प्रकार हैं:
    • अनुच्छेद 38: कल्याणकारी राज्य को बढ़ावा देना।
    • अनुच्छेद 39: असमानताओं को कम करना।
    • अनुच्छेद 39A: मुफ्त कानूनी सहायता।
    • अनुच्छेद 41: बेरोज़गार, बीमार, विकलांग और वृद्ध व्यक्तियों जैसे समाज के कमज़ोर वर्गों का समर्थन करना।
    • अनुच्छेद 43: निर्वाह मज़दूरी सुनिश्चित करना।
  • मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51A): ये मूल कर्तव्य भारत के सभी नागरिकों के नागरिक और नैतिक दायित्व हैं। वर्तमान में 11 मौलिक कर्तव्य हैं, जो संविधान के भाग IV A में वर्णित हैं। अनुच्छेद 51A (K) माता-पिता या अभिभावक द्वारा 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चे को शिक्षा के अवसर प्रदान करने की बात करता है। यह पहलू मानव गरिमा सुनिश्चित करने से संबंधित है। अतः विकल्प (d) सही है।

प्रश्न. यद्धपि  मानवाधिकार अयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों का  सुझाव दीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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