शासन व्यवस्था
सीजेआई ही ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’
- 07 Jul 2018
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चर्चा में क्यों?
देश के मुख्य न्यायाधीश के ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ के अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट में केसों के आवंटन के खिलाफ पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण द्वारा दाखिल याचिका का सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए निपटारा कर दिया कि चीफ जस्टिस ही ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ हैं। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस ए.के. सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने यह फैसला सुनाया|
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- बेंच ने कहा कि सीजेआई की भूमिका समकक्षों के बीच प्रमुख की होती है और उन पर मामलों को आवंटित (रोस्टर) करने का विशिष्ट दायित्व होता है। एक प्रशासक के रूप में वह उनके नेता और प्रवक्ता हैं।
- बेंच ने कहा कि संविधान मुख्य न्यायाधीश के मुद्दे पर चुप है लेकिन परपंरा और बाद के फैसलों में सभी द्वारा माना गया है कि चीफ जस्टिस बराबरी में सबसे पहले हैं। याचिकाकर्त्ता की यह बात स्वीकार नहीं की जा सकती कि मामलों के आवंटन में चीफ जस्टिस का मतलब कॉलेजियम है।
- बेंच ने अशोक पांडे मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया है कि चीफ जस्टिस एक संस्थान के रूप में हैं। पिछले आठ महीने में न्यायालय ने तीसरी बार इस बात की पुष्टि की है कि मुख्य न्यायाधीश ही ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ होता है।
- उन्होंने कहा कि सीजेआई ही केसों का बँटवारा करें, यह सबसे बेहतर विकल्प है क्योंकि अगर केसों के बँटवारे को कॉलेजियम तय करेगा तो कई जज कहेंगे कि यह केस उन्हें दिया जाए और इससे हितों का टकराव होगा। यह मांग अव्यावहारिक है तथा इसे माना नहीं जा सकता।
- खंडपीठ ने ‘कैम्पेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबलिटी एंड रिफॉर्म्स’ तथा अशोक पांडे से संबंधित मामले के फैसले को उचित ठहराते हुए कहा कि जब मुकदमों के आवंटन की बात हो तो ‘भारत के मुख्य न्यायाधीश’ को पाँच वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम के तौर पर व्याख्यायित नहीं किया जा सकता।
- गौरतलब है कि याचिकाकर्त्ता ने मुकदमों के आवंटन में सीजेआई पर मनमानी करने का आरोप लगाते हुए इसमें कॉलेजियम के चार अन्य सदस्यों की सहमति को ज़रूरी बनाने का अनुरोध किया था। याचिकाकर्त्ता ने सीजेआई के मुकदमों के आवंटन के अधिकार पर भी सवाल खड़े किये थे।
पृष्ठभूमि
विदित हो कि जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस गोगोई, जस्टिस एम.बी. लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने 12 जनवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सर्वोच्च न्यायालय में मामलों के आवंटन संबंधी गड़बड़ी का आरोप लगाया था। इसके बाद एक फरवरी को पहली बार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोस्टर जारी किया गया। उन्होंने यह भी कहा था कि ‘चयनात्मक तरीके से’ मामलों का आवंटन हो रहा है, साथ ही उन्होंने कुछ न्यायिक आदेशों पर भी सवाल उठाए थे|