परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्त्व अधिनियम 2010 | 28 Apr 2023

प्रिलिम्स के लिये:

पूरक मुआवज़े पर अभिसमय (Convention on Supplementary Compensation- CSC), परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्त्व अधिनियम, 2010, न्यूक्लियर पावर कारपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCIL)

मेन्स के लिये:

असैनिक परमाणु दायित्त्व कानून: प्रावधान और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में महाराष्ट्र के जैतापुर में छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टर बनाने की योजना, जो कि विश्व की सबसे बड़ी विचाराधीन परमाणु ऊर्जा उत्पादन साइट है, भारत के परमाणु दायित्त्व कानून से संबंधित मुद्दों के कारण एक दशक से अधिक समय से विलंबित है।

असैन्य परमाणु दायित्त्व पर कानून:

  • परिचय:
    • असैन्य परमाणु दायित्त्व पर कानून यह सुनिश्चित करता है कि परमाणु घटना या आपदा के कारण पीड़ितों को हुई क्षति के लिये मुआवज़ा उपलब्ध कराया जाए और यह भी निर्धारित करता है कि उस क्षति के लिये कौन उत्तरदायी होगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन:
    • परमाणु क्षति हेतु IAEA नागरिक दायित्त्व पर कई अंतर्राष्ट्रीय कानूनी उपकरणों के लिये डिपॉज़िटरी के रूप में कार्य करता है। इनमें परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्त्व पर वियना अभिसमय और परमाणु क्षति के लिये पूरक मुआवज़े पर अभिसमय शामिल हैं।
    • न्यूनतम राष्ट्रीय मुआवज़ा राशि सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वर्ष 1997 में पूरक मुआवज़ा पर व्यापक अभिसमय (CSC) को अपनाया गया था।
      • भारत ने वर्ष 2016 में CSC की पुष्टि की है।
  • परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्त्व अधिनियम, 2010 (India’s Civil Liability for Nuclear Damage Act- CLNDA):
    • उद्देश्य:
      • भारत ने वर्ष 2010 में परमाणु दुर्घटना के पीड़ितों हेतु एक त्वरित मुआवज़ा तंत्र स्थापित करने के लिये CLNDA को अधिनियमित किया था।
    • संचालकों पर देयता:
      • CLNDA के अनुसार, परमाणु संयंत्र के संचालक सख्त और बिना किसी गलती के दायित्त्व के अधीन हैं, जिसका अर्थ है कि वह किसी भी लापरवाही एवं नुकसान हेतु उत्तरदायी हैं।
      • यह निर्दिष्ट करता है कि दुर्घटना के कारण हुए नुकसान के मामले में संचालकों को 1,500 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान करना होगा।
        • इसके लिये संचालकों को बीमा या अन्य वित्तीय सुरक्षा के माध्यम से देयता को कवर करने की भी आवश्यकता होती है।
    • सरकार की भूमिका:
      • CLNDA अपेक्षा करता है कि यदि नुकसान का दावा 1,500 करोड़ रुपए से अधिक है तो सरकार हस्तक्षेप करेगी।
      • इसने सरकारी देयता राशि को रुपए में 300 मिलियन विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights- SDR) के बराबर तक सीमित कर दिया है।
    • आपूर्तिकर्त्ता देयता उपबंध: यह ध्यान देने की बात है कि वर्ष 1984 में भोपाल गैस त्रासदी हेतु दोषपूर्ण पुर्जे काफी हद तक ज़िम्मेदार थे, सरकार ने CLNDA में संचालकों की देयता के अलावा आपूर्तिकर्त्ता देयता को शामिल करने के लिये CSC के प्रावधानों से परे जाकर देयता सुनिश्चित की है।
      • इस प्रावधान के तहत यदि कोई परमाणु घटना दोषपूर्ण उपकरण अथवा सामग्री, खराब सेवाओं या आपूर्तिकर्त्ता कर्मचारियों के आचरण के परिणामस्वरूप होती है, तो परमाणु संयंत्र का संचालक आपूर्तिकर्त्ता से संपर्क कर उचित मदद की मांग कर सकता है।

नोट:

  • CSC के अनुसार, "केवल" दो परिस्थितियों में किसी राष्ट्र का राष्ट्रीय कानून एक आपूर्तिकर्त्ता को उत्तरदायी ठहराने के लिये संचालक को "मदद का अधिकार" प्रदान कर सकता है:
  • अगर यह अनुबंध में विशेष रूप से वर्णित है।
  • अगर परमाणु घटना "नुकसान पहुँचाने के इरादे से किये गए किसी कार्य अथवा चूक के परिणामस्वरूप होती है"।

परमाणु सौदों में आपूर्तिकर्त्ता दायित्त्व खंड:

  • विदेशी और घरेलू आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये बाधक: यह देखते हुए कि भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके पास आपूर्तिकर्त्ताओं से नुकसान की मांग की अनुमति देने वाला कानून है, परमाणु उपकरणों के घरेलू और विदेशी दोनों निर्माता भारत के साथ परमाणु समझौते को लागू करने के लिये अनिच्छुक रहे हैं।
  • आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये अधिक जोखिमपूर्ण: आपूर्तिकर्त्ताओं ने CLNDA के तहत संभावित रूप से असीमित देयता के संपर्क में आने के बारे में चिंता जताई है क्योंकि मुआवज़े की राशि कानून के तहत तय नहीं है क्योंकि यह ऑपरेटर के लिये तय की गई है।
  • चूँकि मुआवज़े की राशि आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये कानून द्वारा उस प्रकार निर्धारित नहीं है जैसा कि संचालकों के लिये निर्धारित है, आपूर्तिकर्त्ताओं ने CLNDA के तहत संभावित रूप से असीमित दायित्त्वों को लेकर चिंता व्यक्त की है।
    • इसके अतिरिक्त उन्होंने इस अस्पष्टता को भी उजागर किया है कि क्षति के मामले में मुआवज़े हेतु कितनी राशि को पृथक रखना है।
  • स्पष्टता की कमी में अन्य कानून शामिल हैं: 'परमाणु क्षति' के प्रकारों पर एक व्यापक परिभाषा के अभाव में अधिनियम संभावित रूप से अन्य नागरिक कानूनों के माध्यम से ऑपरेटर और आपूर्तिकर्त्ताओं के खिलाफ नागरिक देयता के दावों को लाने की अनुमति देता है।
  • आपराधिक देयता को आकर्षित करता है: अधिनियम किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के अतिरिक्त किसी अन्य कानून के तहत ऑपरेटर के खिलाफ कार्यवाही करने से नहीं रोकता है। यह जहाँ भी लागू हो, ऑपरेटर और आपूर्तिकर्त्ता के खिलाफ आपराधिक देयता का अनुसरण करने की अनुमति देता है।

CLNDA के साथ अन्य समस्याएँ :

  • मुआवज़े पर मौद्रिक सीमा: अधिनियम एक निश्चित मौद्रिक सीमा तक देयता तय करता है (ऑपरेटरों के लिये 1,500 करोड़ रुपए और सरकार के लिये विशेष आहरण अधिकार के तहत 300 मिलियन रुपए)। इस तरह की सीमा के साथ सबसे बड़ी समस्या ऐसी स्थितियों में पैदा होती है जब नुकसान सीमा से अधिक हो जाता है।
    • अधिनियम स्पष्ट रूप से सीमा से अधिक नुकसान की लागत के संबंध में कोई प्रावधान प्रदान नहीं करता है।
  • करदाताओं पर बोझ: भारत में ये संयंत्र सरकार के स्वामित्त्व वाले हैं और NPCIL के माध्यम से संचालित होते हैं। अंततः ऐसी आपदाओं की क्षतिपूर्ति आम करदाताओं द्वारा वहन की जाएगी।
  • अतिरिक्त लागतों की उपेक्षा: चेरनोबिल जैसी विगत घटनाओं से ज्ञात हुआ है कि परमाणु घटना के लिये दोषी पक्ष को परमाणु अपशिष्ट की सफाई एवं सुरक्षित निपटान जैसी अतिरिक्त लागतें वहन करनी चाहिये, जो महँगी हैं तथा इसमें अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
    • हालाँकि अधिनियम इन अतिरिक्त लागतों के लिये कोई प्रावधान नहीं करता है।
  • कोई विदेशी अधिकार क्षेत्र नहीं: भारत कई विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं से आपूर्ति करता है जो भारतीय कानून के अनुसार विदेशी संस्थाएँ हैं। भारतीय मुआवज़े की मांग के लिये विदेशी न्यायालय में नहीं जा सकते।

आगे की राह

  • विदेशी आपूर्तिकर्त्ता से मुआवज़ा मांगे जाने की स्थिति में विदेशी न्यायालयों तक पहुँच प्राप्त करने के लिये अतिरिक्त प्रादेशिक क्षेत्राधिकार के प्रावधान किये जाने चाहिये। अंतर्राष्ट्रीय समझौते या एक मज़बूत विवाद समाधान तंत्र बनाया जा सकता है।
  • आपूर्तिकर्त्ताओं को विश्वास में लेने हेतु उनकी देनदारी की सीमा भी सुनिश्चित होनी चाहिये तथा बीमा राशि की भी अधिकतम सीमा निश्चित होनी चाहिये।
  • अस्पष्टता के समाधान हेतु कानून में संशोधन किया जाना चाहिये और आपराधिक दायित्त्व के प्रावधानों को आसान बनाया जाना चाहिये या आपराधिक कार्यवाही के दायरे को स्पष्ट किया जाना चाहिये।
  • वैकल्पिक वित्तपोषण तंत्र का अन्वेषण किया जाना चाहिये, जैसे कि बीमा या एक समर्पित निधि जो यह सुनिश्चित करे कि आर्थिक भार पूरी तरह से करदाताओं पर नहीं है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में समय-समय पर परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं।
  2. विखंडनीय सामग्री पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी का एक अंग है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: d


प्रश्न. भारत में क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई.ए.ई.ए सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं, जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का।
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का।
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा।
(d) कुछ सरकारी स्वामित्त्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्त्व वाले।

उत्तर: b


मेन्स:

प्रश्न. बढ़ती ऊर्जा की आवश्यकताओं को देखते हुए क्या भारत को अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करते रहना चाहिये? परमाणु ऊर्जा से जुड़े तथ्यों और आशंकाओं पर चर्चा कीजिये। (2018)

प्रश्न. भारत में परमाणु विज्ञान और प्रौद्योगिकी की वृद्धि एवं विकास का विवरण दीजिये। भारत में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर कार्यक्रम के क्या लाभ हैं? (2017)

स्रोत: द हिंदू