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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

शस्त्र व्यापार संधि में शामिल होगा चीन

  • 24 Jun 2020
  • 10 min read

प्रीलिम्स के लिये

शस्त्र व्यापार संधि, संधि में शामिल देश

मेन्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता में शस्त्र व्यापार संधि की भूमिका, संधि को लेकर भारत का पक्ष

चर्चा में क्यों?

विश्व में शांति और स्थिरता के प्रयासों के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए चीन ने संयुक्त राष्ट्र (UN) की शस्त्र व्यापार संधि (Arms Trade Treaty-ATT) में शामिल होने की घोषणा की है। 

प्रमुख बिंदु

  • हाल ही में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेतृत्त्व ने संयुक्त राष्ट्र की शस्त्र व्यापार संधि में शामिल होने के विषय में निर्णय लेने हेतु मतदान किया।
  • चीन के विदेश मंत्रालय के अनुसार, संधि में शामिल होना ‘बहुपक्षवाद (Multilateralism) का समर्थन करने हेतु चीन का एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • उल्लेखनीय है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अप्रैल, 2019 में संयुक्त राष्ट्र की इस संधि से बाहर निकलने की घोषणा की थी। 
    • ध्यातव्य है कि संयुक्त राष्ट्र की शस्त्र व्यापार संधि भी उन कई अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों में से एक है, जिन्हें पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में पूरा किया गया और अब जिन्हें राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा वापस लिया जा रहा है, इसमें जलवायु परिवर्तन से संबंधित पेरिस समझौता और ईरान परमाणु समझौता आदि शामिल हैं।

क्यों लिया था अमेरिका ने यह निर्णय?

  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अनुसार, यह संधि अमेरिका के आतंरिक कानून में दखल देती है। इसके अलावा यह संधि दूसरे संशोधन विधेयक में मिले अधिकारों का भी हनन करती है।
  • दरअसल, अमेरिका में द्वितीय संशोधन विधेयक के तहत प्रत्येक नागरिक को हथियार रखने का अधिकार मिला हुआ है।
  • राष्ट्रीय राइफल एसोसिएशन लंबे समय से इस संधि का विरोध कर रहा था। यह अमेरिका स्थित बंदूक के अधिकार की वकालत करने वाला एक नागरिक संगठन है, जिसके तकरीबन 5 मिलियन से भी अधिक सदस्य हैं ।
  • कई जानकार मानते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति राष्ट्रीय राइफल एसोसिएशन को नाराज़ नहीं करना चाहते थे, क्योंकि यह उनके राजनीतिक हित में नहीं था।

शस्त्र व्यापार संधि- पृष्ठभूमि 

  • 24 दिसंबर, 2014 को शस्त्र व्यापार संधि (Arms Trade Treaty-ATT) के लागू होने से पूर्व विश्व में हथियारों के व्यापार को विनियमित करने के लिये कोई भी अंतर्राष्ट्रीय कानून नहीं था, इस कमी को महसूस करते हुए कई वर्षों तक विभिन्न नागरिक संगठनों ने वैश्विक कार्रवाई का आह्वान किया।
  • वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्वीकार किया कि पारंपरिक हथियारों के हस्तांतरण हेतु एक सामान्य अंतर्राष्ट्रीय मानक की अनुपस्थिति दुनिया भर में सशस्त्र संघर्ष, लोगों के विस्थापन, अपराध और आतंकवाद को बढ़ावा देने में योगदान देती है।
    • इसके कारण वैश्विक स्तर पर शांति, सामंजस्य, सुरक्षा, स्थिरता और सतत्  सामाजिक एवं आर्थिक विकास के प्रयास कमज़ोर होते हैं।
  • इन्ही तथ्यों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने हथियारों के हस्तांतरण हेतु एक सामान्य अंतर्राष्ट्रीय मानक की स्थापना करने वाली एक संधि की व्यवहार्यता की जाँच करने के लिये एक प्रक्रिया शुरू कर दी।
  • विभिन्न सम्मेलनों और बैठकों के बाद इस प्रकार की संधि को अंतिम रूप दिया गया और अंततः संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अप्रैल, 2013 को इसे अपना लिया गया तथा यह संधि 24 दिसंबर 2014 से लागू हो गई।
  • ध्यातव्य है कि अब तक कुल 130 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसमें से 103 देशों ने अपने क्षेत्राधिकार में इसे लागू भी कर दिया है।

शस्त्र व्यापार संधि- प्रमुख प्रावधान

  • शस्त्र व्यापार संधि (ATT) एक बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो पारंपरिक हथियारों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने के लिये प्रतिबद्ध है।
  • इस संधि का उद्देश्य संघर्ष वाले क्षेत्रों में हथियारों के प्रवाह पर नियंत्रण लगाना, मानवाधिकारों की रक्षा करना और घातक हथियारों को समुद्री डाकुओं, गिरोहों तथा अपराधियों के हाथों में पहुँचने से रोकना है।
  • इस संधि के तहत छोटे हथियारों से लेकर युद्ध टैंक, लड़ाकू विमानों और युद्धपोतों के व्यापार के लिये नियम बनाने का भी प्रावधान है।
  • इस संधि के तहत सदस्य देशों पर प्रतिबंध है कि वह ऐसे देशों को हथियार न दें जो नरसंहार, मानवता के प्रति अपराध या आतंकवाद में शामिल होते हैं।
  • ध्यातव्य है कि यह संधि घरेलू हथियारों के व्यापार या सदस्य देशों में शस्त्र रखने के अधिकारों में कोई हस्तक्षेप नहीं करती है। साथ ही यह संप्रभु देशों को प्राप्त आत्मरक्षा के वैधानिक अधिकारों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करती है।

शस्त्र व्यापार संधि और चीन 

  • चीन के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि चीन विश्व में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिये निरंतर प्रयास करेगा।
  • चीन के विदेश मंत्रालय के अनुसार, चीन ने सदैव सैन्य उत्पादों के निर्यात को सख्ती से नियंत्रित किया है। चीन इस प्रकार के सैन्य उत्पादों का निर्यात केवल संप्रभु राष्ट्रों को भी करता है न कि गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं को।
  • उल्लेखनीय है कि संधि में शामिल होने की घोषणा से पूर्व भी चीन का मानना था कि पारंपरिक हथियारों के कारोबार को नियंत्रित करने की दिशा में इस संधि की सकारात्मक भूमिका है।
  • स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute) द्वारा इसी वर्ष जनवरी माह में किये गए एक अध्ययन से ज्ञात हुआ था कि चीन अमेरिका के पश्चात् विश्व का दूसरा सबसे बड़ा हथियार उत्पादक है।

शस्त्र व्यापार संधि पर भारत का पक्ष

  • वर्ष 2014 में संधि के अस्तित्त्व में आते ही भारत ने अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया था, भारत का मत है कि इस तरह की संधि का उद्देश्य हथियारों के गलत प्रयोग और तस्करी को रोकना होना चाहिये। ATT का लाभ पूरी दुनिया को तब होगा जब आतंकवादियों के हाथों में घातक हथियार न पहुँच पाएँ।
  • वर्ष 2013 में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय हथियार संधि के प्रस्ताव को कमज़ोर और एकतरफा बताया था और संधि में शामिल नहीं हुआ था। भारत का मानना था कि संधि के प्रस्ताव में संतुलन नहीं है। संधि के अंतर्गत हथियार निर्यात करने वाले देशों और आयात करने वाले देशों की नैतिक ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त भारत का मानना था कि संधि के मसौदे में आतंकवादियों और नॉन-स्टेट एक्टर्स पर नियंत्रण हेतु कोई सख्त नियम नहीं है। साथ ही ऐसे लोगों के हाथ में घातक हथियार न पहुँचे इसके लिये कोई विशेष प्रतिबंध नहीं किया गया है।
  • हालाँकि इसके बावजूद भारत ATT वार्ता में एक सक्रिय भागीदार रहा है और भारत ने लगातार इस बात पर ज़ोर दिया है कि ATT निर्यात और आयात करने वाले राष्ट्रों के बीच दायित्त्वों का संतुलन सुनिश्चित करे।

आगे की राह

  • गरीबी, अभाव और असमानता की स्थिति का सामना करने वाले अत्यधिक संवेदनशील वर्ग को अकसर स्टेट और नॉन-स्टेट एक्टर्स द्वारा हथियारों के प्रयोग के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ता है, दोनों के बीच के संघर्ष में अक्सर आम आदमी और वंचित वर्ग को ही पीड़ा होती है।
  • हथियारों के हस्तांतरण पर अपर्याप्त नियंत्रण से उनकी उपलब्धता और दुरुपयोग को बढ़ावा मिलाता है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति और स्थिरता कायम रखने के प्रयास कमज़ोर होते हैं।

स्रोत: द हिंदू

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