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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चीन का पहला वाणिज्यिक रॉकेट

  • 29 Jul 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन की एक प्रमुख स्टार्टअप कंपनी आई स्पेस (iSpace) ने चीन का पहला वाणिज्यिक रॉकेट लॉन्च किया जो उपग्रह को कक्षा में ले जाने में सक्षम है।

प्रमुख बिंदु

  • चीन का यह कदम अंतरिक्ष के निजी उपयोग के संदर्भ में बेहद महत्त्वपूर्ण हो सकता है। 
  • उल्लेखनीय है कि  iSpace ने 6 जुलाई, 2019 को हाइपरबोला-1 (Hyperbola-1) के सफल प्रक्षेपण की घोषणा की थी। हाइपरबोला-1 को दो उपग्रहों और पेलोड के साथ जियुकान सैटेलाइट लॉन्च सेंटर (Jiuquan Satellite Launch Centre) से एक पूर्व निर्धारित कक्षा में भेजा गया। 
  • इससे पहले वर्ष 2018 चीन की रॉकेट निर्माता कंपनियों लैंडस्पेस (LandSpace) और वनस्पेस (OneSpace) ने इस तरह के प्रयास किये थे, लेकिन ये दोनों ही रॉकेट पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करने में असफल रहे।

हाइपरबोला-1 मिशन

(Hyperbola-1 Mission)

  • iSpace के अनुसार, हाइपरबोला-1 रॉकेट की ऊँचाई लगभग 68 फीट (20.8 मीटर) तथा अधिकतम व्यास लगभग 4.6 फीट (1.4 मीटर) है।
  • हाइपरबोला-1 का टेकऑफ वज़न लगभग 68 हज़ार पाउंड (31 मीट्रिक टन) है।
  • iSpace  के अनुसार, यह रॉकेट 573 पाउंड नीतभार/पेलोड द्रव्यमान को 310 मील की ऊँचाई पर सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा (Sun-Synchronous Polar Orbit) तक पहुँचाने में सक्षम है।
  • हाइपरबोला-1 के साथ CAS-7B क्यूबसैट (माइक्रोसेटेलाइट) भेजा गया है। यह एक Amateur Radio Mission है जिसे बीजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Beijing Institute of Technology) द्वारा विकसित किया गया है।
  • हाइपरबोला-1 के साथ एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी स्पेस इंजीनियरिंग डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड (Aerospace Science and Technology Space Engineering Development Co. Ltd) का एक उपग्रह भी भेजा गया है।

माइक्रोसैटेलाइट (Microsatellite) क्या है?

  • माइक्रोसैटेलाइट आकार में सामान्यतः जूते के डिब्बे जैसा होता है। यह पारंपरिक रूप से बड़े उपग्रहों का छोटा संस्करण है।
  • ये मौसम प्रणाली, फसलों और आपदा स्थलों आदि की निगरानी में कंपनी या संगठन की मदद करते हैं। 
  • इनका उपयोग अनुसंधान उद्देश्यों की पूर्ति के लिये भी किया जा सकता है। 
  • अधिकांश कंपनियाँ माइक्रोसैटेलाइट्स का चयन इसलिये कर रही हैं क्योंकि इनकी निर्माण लगत कम होती है और इन्हें अंतरिक्ष में भेजना अपेक्षाकृत आसान होता है। 
  • वर्तमान में माइक्रोसैटेलाइट्स के मामले में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का प्रभुत्त्व है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

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