अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चीन-ईरान सामरिक सहयोग समझौता
- 02 Apr 2021
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन और ईरान ने 25 वर्षों के ‘रणनीतिक सहयोग समझौते’ (Strategic Cooperation Pact) पर हस्ताक्षर किये हैं। इस समझौते में ‘राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक घटक’ (Political, Economic and Strategic Components) शामिल हैं।
- यह समझौता ऐसे समय में हुआ है, जब ईरान को परमाणु समझौते से हटने के बाद अमेरिका द्वारा लागू किये गए प्रतिबंधों के चलते भारी दबाव का सामना करना पड़ रहा है और चीन द्वारा ऐसी स्थिति में ईरान का समर्थन किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
समझौते के बारे में:
- यह ईरान और चीन के मध्य संबंधों को बेहतर करेगा तथा परिवहन, बंदरगाहों, ऊर्जा, उद्योग और सेवाओं के क्षेत्र में दोनों देशों के मध्य पारस्परिक निवेश हेतु एक खाका तैयार करेगा।
- यह चीन के ट्रिलियन-डॉलर की बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative- BRI) के एक हिस्से का निर्माण करता है, जो बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं को ऋण देने और विदेशों में प्रभाव बढ़ाने की योजना है।
मध्य-पूर्व में चीन की बढ़ती भूमिका:
- ईरान अपने सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार के रूप में चीन पर निर्भर है।
- चीनी विदेश मंत्री ने पश्चिम एशियाई देशों की अपनी हालिया यात्रा के दौरान मध्य-पूर्व में सुरक्षा और स्थिरता स्थापित करने हेतु पांँच-सूत्री पहल का प्रस्ताव रखा है, जिसमें "पारस्परिक सम्मान, समानता और न्याय बनाए रखना, एक दूसरे के क्षेत्रों का अधिग्रहण न करने, संयुक्त रूप से सामूहिक सुरक्षा को बढ़ावा देना और विकास सहयोग में तेज़ी लाना शामिल है।
- इससे पहले चीन और रूस द्वारा संयुक्त रूप से अमेरिका से बिना किसी शर्त के ईरान को संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA) में शामिल करने और उस पर लगे एकतरफा प्रतिबंधों को हटाने का आह्वान किया गया था।
- इस संदर्भ में देशों की सुरक्षा चिंताओं के समाधान हेतु सहमति बनाने के लिये एक क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद मंच स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया।
भारत की चिंताएँ:
- सैन्य भागीदारी: चीन ईरान के साथ सुरक्षा और सैन्य साझेदारी में भी सहयोग कर रहा है।
- चीन द्वारा आतंकवाद, नशीली दवाओं और मानव तस्करी तथा सीमा पार अपराधों से लड़ने हेतु संयुक्त प्रशिक्षण और अभ्यास, संयुक्त अनुसंधान और हथियारों का विकास एवं खुफिया जानकारी साझा करने का आह्वान किया गया है।
- ईरानी बंदरगाहों के विकास में बड़े पैमाने पर चीनी निवेश के कारण ईरान के साथ चीन का संबंध स्थायी सैन्य पहुंँच समझौते (Permanent Military Access Arrangements) में परिवर्तित हो सकता है।
- चाबहार बंदरगाह के आसपास सामरिक परिदृश्य: ईरान में बढ़ती चीन की उपस्थिति के साथ भारत चाबहार बंदरगाह परियोजना के आसपास अपने रणनीतिक दांँव के बारे में चिंतित है जिसका विकास भारत के सहयोग से किया जा रहा है।
- यह बंदरगाह पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के करीब है, जिसे चीन द्वारा अपने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के हिस्से के रूप में विकसित किया जा रहा है तथा जो इसे BRI के माध्यम से हिंद महासागर से जोड़ता है।
- भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: भारत ईरान को लेकर अमेरिका और चीन के मध्य भू- राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में फंँसा हुआ है।
- भारत की दुविधा यह है कि सीमा पर चीन के साथ गतिरोध की स्थिति में भारत को अमेरिका के मज़बूत समर्थन की आवश्यकता है।
- अन्य देशों के साथ संबंधों पर प्रभाव: ईरान में चीन का प्रभाव बढ़ने से भारत के संबंध न केवल ईरान के साथ बल्कि अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ भी लंबे समय तक प्रभावित होंगे।
संयुक्त कार्रवाई व्यापक योजना:
- वियना में 14 जुलाई, 2015 को ईरान तथा P5 (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य- अमेरिका, चीन, फ्रांँस, रूस तथा ब्रिटेन) देशों के साथ-साथ जर्मनी एवं यूरोपीय संघ द्वारा इस परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- इस सौदे को संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA) और आम बोलचाल की भाषा में ईरान परमाणु समझौते के रूप में नामित किया गया था।
- इस समझौते के तहत ईरान से प्रतिबंध हटाने और वैश्विक व्यापार तक पहुँच सुनिश्चित करने के बदले ईरान की परमाणु गतिविधि पर अंकुश लगाने के संबंध में सहमति बनी।
- इस समझौते द्वारा ईरान को अनुसंधान हेतु थोड़ी मात्रा में यूरेनियम जमा करने की अनुमति दी गई है लेकिन उसके यूरेनियम संवर्द्धन पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसका उपयोग रिएक्टर ईंधन और परमाणु हथियार बनाने के लिये किया जाता है।
- ईरान को एक विशाल जल-रिएक्टर का निर्माण करने की भी आवश्यकता थी, जिसके प्रयुक्त किये गए ईंधन में एक बम के लिये उपयुक्त प्लूटोनियम और अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षण की अनुमति की आवश्यकता हो सकती है।
- वर्ष 2018 में अमेरिका द्वारा स्वयं को JCPOA से अलग करने की घोषणा की गई और ईरान पर एकतरफा प्रतिबंध आरोपित किये गए।
- ईरान ने अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते हो रहे नुकसान की भरपाई के लिये नए आर्थिक प्रोत्साहन हेतु अन्य हस्ताक्षरकर्त्ताओं- जर्मनी, फ्रांँस, ब्रिटेन, रूस और चीन आदि पर दबाव डालने के लिये स्वयं को इस सौदे से अलग कर लिया था।