प्रशांत द्वीपीय देशों में चीन का विस्तार | 03 Jun 2022
प्रिलिम्स के लिये :ईईजेड, प्रशांत महासागर, इंडो-पैसिफिक, क्वाड, ब्लू अर्थव्यवस्था। मेन्स के लिये:प्रशांत द्वीप समूह के देश और इसका महत्त्व, भारत-पीआईसी संबंध, वैश्विक समूह। |
चर्चा में क्यों?
चीन के विदेश मंत्री वर्तमान में दस प्रशांत द्वीपीय देशों (PIC) की यात्रा पर हैं और उन्होंने फिज़ी के साथ दूसरी चीन-प्रशांत द्वीपीय देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक की सह-मेज़बानी की है।
- हालाँकि, बैठक में एक व्यापक रूपरेखा समझौते को आगे बढ़ाने के संदर्भ में चीन और PICs के बीच आम सहमति नही बन पाई।
- अप्रैल 2022 में चीन ने सोलोमन द्वीप समूह के साथ एक विवादास्पद सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसने क्षेत्रीय चिंताओं को बढ़ाया।
प्रशांत द्वीपीय देश:
- प्रशांत द्वीप देश 14 राज्यों का समूह है जो एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच प्रशांत महासागर के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र से संबंधित है।
- इनमें कुक आइलैंड्स, फिज़ी, किरिबाती, रिपब्लिक ऑफ मार्शल आइलैंड्स, फेडरेटेड स्टेट्स ऑफ माइक्रोनेशिया (FSM), नाउरू, नीयू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, सोलोमन आइलैंड्स, टोंगा, तुवालु और वानुअतु शामिल हैं।
PIC का महत्त्व:
- सबसे बड़ा अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ):
- द्वीपों को भौतिक और मानव भूगोल के आधार पर तीन अलग-अलग भागों में विभाजित किया गया है - माइक्रोनेशिया, मेलानेशिया और पोलिनेशिया।
- अपने छोटे भूमि क्षेत्र के बावजूद द्वीप प्रशांत महासागर के विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए हैं।
- हालांँकि इनमे से कुछ सबसे छोटे एवं सबसे कम आबादी वाले राज्य हैं, जिनके पास दुनिया के कुछ सबसे बड़े अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) हैं।
- आर्थिक क्षमता:
- बड़े EEZ में बहुत अधिक आर्थिक संभावनाएंँ हैं क्योंकि उनका उपयोग मत्स्य पालन, ऊर्जा, खनिजों और वहांँ मौजूद अन्य समुद्री संसाधनों का दोहन करने के लिये किया जा सकता है।
- इसलिये ये छोटे द्वीप राज्यों के बजाय बड़े महासागरीय राज्यों के रूप में पहचाने जाते हैं।
- वास्तव में किरिबाती और FSM दोनों PIC का EEZ भारत से बड़ा है।
- बड़े EEZ में बहुत अधिक आर्थिक संभावनाएंँ हैं क्योंकि उनका उपयोग मत्स्य पालन, ऊर्जा, खनिजों और वहांँ मौजूद अन्य समुद्री संसाधनों का दोहन करने के लिये किया जा सकता है।
- प्रमुख शक्ति प्रतिद्वंद्विता में भूमिका:
- इन देशों ने सामरिक क्षमताओं के विकास और प्रदर्शन के लिये शक्ति प्रक्षेपण और प्रयोगशालाओं के लिये स्केप्रिंग बोर्ड्स रूप में प्रमुख शक्ति प्रतिद्वंद्विता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- औपनिवेशिक युग की प्रमुख शक्तियों ने इन सामरिक क्षेत्रों पर नियंत्रण पाने के लिये एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा की।
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान (शाही जापान और यूएस) प्रशांत द्वीपों ने भी संघर्ष के प्रमुख कारकों में से एक के रूप में काम किया।
- प्रमुख परमाणु हथियार परीक्षण स्थल:
- संभावित वोट बैंक:
- साझा आर्थिक और सुरक्षा चिंताओं द्वारा संबंधित 14 PICs संयुक्त राष्ट्र में मतदान के लिये ज़िम्मेदार हैं और अंतर्राष्ट्रीय राय जुटाने हेतु प्रमुख शक्तियों के संभावित वोट बैंक के रूप में कार्य करते हैं।
चीन के लिये PICs का महत्त्व:
- एक प्रभावी ब्लू वाटर सक्षम नौसेना बनने में:
- PICs चीन के समुद्री हित और नौसैनिक शक्ति के विस्तार की प्राकृतिक रेखा में अवस्थित हैं
- वे चीन की 'प्रथम द्वीप शृंखला' से परे स्थित हैं, जो देश के समुद्री विस्तार के प्रवेश बिंदु का प्रतिनिधित्व करता है।
- PICs भू-रणनीतिक दृष्टि से उस स्थान पर अवस्थित हैं जिसे चीन अपने 'सुदूर समुद्र' के रूप में संदर्भित करता है, जिसका नियंत्रण चीन को एक प्रभावी ब्लू वाटर सक्षम नौसेना बना देगा - जो महाशक्ति बनने के लिये एक आवश्यक शर्त है।
- काउंटरिंग क्वाड:
- PICs को प्रभावित करने की आवश्यकता ऐसे समय में चीन के लिये और भी अधिक दबाव का विषय बन गई है जब चीन के विरोध स्वरुप हिंद-प्रशांत में चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरी है।
- ताइवान की भूमिका:
- PICs की विशाल समुद्री समृद्धि के अलावा, ताइवान चीन के प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
- चीन, ताइवान को इस क्षेत्र में एक प्रतिस्पर्द्धी मानता है तथा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में इसकी मान्यता का विरोध करता है।
- इसलिये जिस भी देश को चीन के साथ आधिकारिक रूप से संबंध स्थापित करने होंगे, उसे ताइवान के साथ राजनयिक संबंध तोड़ने होंगे।.
- चीन अपनी आर्थिक उदारता के माध्यम से 14 PICs में से 10 से राजनयिक मान्यता प्राप्त करने में सफल रहा है।
- केवल चार PICs - तुवालु, पलाऊ, मार्शल द्वीप और नौरु, वर्तमान में ताइवान को मान्यता देते हैं।
चीन के वर्तमान कदम के निहितार्थ:
- PICs को प्रमुख शक्ति संघर्षों में शामिल कर सकता है:
- सामूहिक रूप से PICs चीन के व्यापक और महत्वाकांँक्षी प्रस्तावों से सहमत नहीं थे, इसलिये चीन समझौते पर आम सहमति प्राप्त करने में विफल रहा।
- चीन द्वारा प्रस्तावित आर्थिक और सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने से PICs की संप्रभुता और एकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है तथा भविष्य में उन्हें बड़े शक्ति संघर्षों में शामिल किया जा सकता है।
- क्षेत्र में पारंपरिक शक्तियों को मज़बूत करने में:
- प्रशांत द्वीपों के प्रति चीन की कूटनीति की तीव्रता ने उन शक्तियों को मज़बूत बना दिया है जिन्होंने परंपरागत रूप से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्रीय गतिशीलता को नियंत्रित किया है।
- चीन-सोलोमन द्वीप समझौते के बाद से अमेरिका ने इस क्षेत्र के लिये अपनी कूटनीतिक प्राथमिकता पर फिर से विचार करना शुरू कर दिया है।
- चीन के प्रस्तावित सौदे के खिलाफ विपक्ष को लामबंद करने में अमेरिका द्वारा निभाई गई भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि संघीय राज्य माइक्रोनेशिया (FSM) एकमात्र ऐसा देश है जो चीन को मान्यता देता है और साथ ही अमेरिका के साथ मुक्त संघ के समझौते का भी हिस्सा है।
- संघीय राज्य माइक्रोनेशिया पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित एक द्वीपीय देश है जिसमें 600 से अधिक छोटे-छोटे द्वीप शामिल हैं।
भारत तथा प्रशांत द्वीपीय देशों के बीच संबंधों की मुख्य विशेषताएँ:
- परिचय:
- प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ भारत की बातचीत अभी भी काफी हद तक इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भारतीय डायस्पोरा की उपस्थिति से प्रेरित है।
- फिजी की लगभग 40% आबादी भारतीय मूल की है और लगभग 3000 भारतीय वर्तमान में पापुआ न्यू गिनी में रह रहे हैं।
- संस्थागत जुड़ाव के संदर्भ में, भारत प्रशांत द्वीप मंच (PIF) में प्रमुख संवाद भागीदारों के रूप में भाग लेता है।
- हाल के वर्षों में प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ भारत की बातचीत को सुविधाजनक बनाने में सबसे महत्त्वपूर्ण विकास के रूप में प्रशांत द्वीप समूह सहयोग (FIPIC) के लिये एक कार्रवाई-उन्मुख मंच का गठन किया गया है।
- FIPIC की शुरुआत वर्ष 2014 में एक बहुराष्ट्रीय समूह के रूप में की गई थी।
- प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ भारत की बातचीत अभी भी काफी हद तक इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भारतीय डायस्पोरा की उपस्थिति से प्रेरित है।
सहयोग के क्षेत्र:
- ब्लू इकॉनमी:
- अपने संसाधन संपन्न अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (EEZs) के साथ प्रशांत द्वीपीय देश भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये तरल प्राकृतिक गैस (LNG) और हाइड्रोकार्बन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के आकर्षक स्रोत होने के साथ-साथ इनके लिये नए बाज़ार भी प्रदान कर सकते हैं।
- 'ब्लू इकॉनमी' के विचार परा ज़ोर देते हुए भारत इन देशों के साथ विशेष रूप से जुड़ सकता है।
- जलवायु परिवर्तन और सतत विकास:
- इन द्वीप देशों का भूगोल उन्हें जलवायु चुनौतियों के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील बनाता है।
- समुद्र जलस्तर में वृद्धि के कारण बढ़ती मिट्टी की लवणता निचले द्वीपीय राज्यों के लिये खतरा है, जिससे विस्थापन की समस्या भी पैदा हो रही है।
- इसलिये, जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास चिंता के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहाँ प्रभावी और ठोस समाधान के लिये एक करीबी साझेदारी विकसित की जा सकती है।
- इन द्वीप देशों का भूगोल उन्हें जलवायु चुनौतियों के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील बनाता है।
- आपदा प्रबंधन:
- प्रशांत द्वीप समूह के अधिकांश देश व्यापक सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय परिणामों के साथ विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त हैं।
- भारत आपदा जोखिम लचीलापन की क्षमता निर्माण में सहायता कर सकता है।
- सितंबर, 2017 में, भारत ने सात प्रशांत द्वीपीय देशों में जलवायु पूर्व चेतावनी प्रणाली की शुरुआत की है।
आगे की राह:
- प्रशांत द्वीपीय देश भौगोलिक रूप से छोटे होते हुए भी अंतर्राष्ट्रीय मामलों में काफी आर्थिक, रणनीतिक और राजनीतिक महत्त्व रखते हैं।
- इस क्षेत्र के साथ जुड़ने के हालिया प्रयासों ने भारत को इन देशों के बहुत करीब ला दिया है।
- प्रशांत द्वीपीय देशों के प्रति भारत का दृष्टिकोण साझा मूल्यों और साझा भविष्य के आधार पर क्षेत्र के साथ एक पारदर्शी, आवश्यकता-आधारित दृष्टिकोण और समावेशी संबंधों पर केंद्रित है।
- आने वाले वर्षों में प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ भारत का जुड़ाव तीसरे FIPC शिखर सम्मेलन के जल्द ही होने की उम्मीद है।