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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

बाइडू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम

  • 03 Aug 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये

बाईडू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम, नाविक (NavIC), अमेरिका की GPS प्रणाली

मेन्स के लिये

बाईडू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम की विशेषताएँ और चीन तथा भारत के लिये इसके निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन ने औपचारिक रूप से अपने बाइडू-3 नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम (BeiDou-3 Navigation Satellite System) की वैश्विक सेवाओं की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि चीन के साथ निकटता से कार्य करने वाले कुछ देश जैसे पाकिस्तान आदि पहले से ही चीन के बाइडू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम का प्रयोग कर रहे हैं।
  • इसके अलावा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में शामिल देशों में भी चीन अपने इस घरेलू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है।

बाइडू नेवीगेशन सिस्टम- पृष्ठभूमि

  • सर्वप्रथम 1980 के दशक में चीन ने समय की मांग के अनुरूप अपने घरेलू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम के निर्माण हेतु अध्ययन की शुरुआत की।
  • इसके पश्चात् 1990 के दशक के शुरुआती दौर में चीन ने बाइडू-3 नेवीगेशन सैटेलाइट प्रोजेक्ट को लॉन्च किया और वर्ष 2000 तक चीन का यह घरेलू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम सक्रिय रूप से चीन में सेवाएँ प्रदान करने लगा।
  • वर्ष 2012 तक चीन की यह तकनीक एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लगभग सभी क्षेत्रों में अपनी नेवीगेशन संबंधी सेवाएँ प्रदान करने लगी।
  • इस प्रकार इसे कुल तीन चरणों में विकसित किया गया है, जिसमें पहला चरण (BeiDou-1) केवल चीन तक सीमित था, वहीं दूसरा चरण (BeiDou-2) एशिया-प्रशांत क्षेत्र तक सीमित था और तीसरे चरण (BeiDou-3) के तहत यह प्रणाली विश्व के सभी क्षेत्रों में कार्य करने में सक्षम है।

विशेषताएँ

  • चीन के दावे के अनुसार, चीन का यह घरेलू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम उपग्रहों के एक व्यापक नेटवर्क का उपयोग करते हुए लगभग दस मीटर के अंदर सटीक अवस्थिति बता सकता है।
    • ज्ञात हो कि अमेरिका का ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) 2.2 मीटर के अंदर अवस्थिति की सटीकता प्रदान करता है।
  • चीन का बाइडू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम सटीक स्थिति, सटीक नेवीगेशन और सटीक समय के साथ-साथ छोटे संदेशों के संचार की सेवाएँ प्रदान करता है।
  • इस प्रणाली का उपयोग चीन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे-रक्षा, परिवहन, कृषि, मत्स्यपालन और आपदा राहत आदि में किया जा रहा है।
  • ध्यातव्य है कि चीन का बाइडू-3 नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम अमेरिका के GPS, रूस के ग्लोनास (GLONASS) और यूरोपीय संघ (EU) के गैलीलियो (Galileo) के बाद चौथा वैश्विक उपग्रह नेवीगेशन सिस्टम होगा।
    • चीन का दावा है कि उसका घरेलू नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम अमेरिका के GPS से भी काफी सटीक जानकारी प्रदान करता है।

निहितार्थ

  • अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती: विश्व में मौजूद लगभग सभी नेवीगेशन प्रणालियों में से अमेरिका की GPS प्रणाली का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है, ऐसे में चीन के नवीन बाइडू-3 नेवीगेशन सैटेलाइट सिस्टम को अमेरिका की GPS प्रणाली के एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जा रहा है, यदि चीन की यह प्रणाली वैश्विक स्तर पर ख्याति प्राप्त करने में सफल रहती है तो यह अमेरिका के वर्चस्व के लिये बड़ी चुनौती होगी।
  • सैन्य क्षमता में वृद्धि: गौरतलब है कि जैसे-जैसे चीन और अमेरिका के संबंधों में तनाव बढ़ता जा रहा है, वैसे ही चीन के लिये अपनी स्वयं की नेवीगेशन प्रणाली होना काफी महत्त्वपूर्ण हो गया है, खासतौर पर ऐसी प्रणाली जिस पर अमेरिका का नियंत्रण न हो। स्वयं की सुरक्षित और स्वतंत्र नेवीगेशन प्रणाली के विकास से चीन की सैन्य शक्ति को काफी बढ़ावा मिलेगा।
  • आर्थिक लाभ: चीन का दावा है कि उसकी यह घरेलू नेवीगेशन प्रणाली अमेरिका की GPS प्रणाली से काफी बेहतर है और यदि चीन का यह दावा सही है तो इससे दुनिया भर के कई देश और कई बड़ी कंपनियाँ अपने कार्य के लिये चीन की प्रणाली को अपना सकती हैं, जिससे चीन को आर्थिक मोर्चे पर भी काफी फायदा होगा।
  • चीन के प्रोपेगंडा का प्रचार: चीन पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल सभी देशों में इस प्रणाली के प्रयोग पर ज़ोर देने पर विचार कर रहा है, ऐसे में यदि ये देश चीन की इस प्रणाली को अपनाते है तो चीन यह भी सुनिश्चित करना चाहेगा कि ये सभी देश ताइवान, तिब्बत, दक्षिण चीन सागर और अन्य संवेदनशील मामलों पर चीन का साथ दें, इससे कई देशों में चीन के प्रोपेगेंडा का व्यापक प्रचार होगा।
  • भारत के लिये सुरक्षा दृष्टि से खतरा: कई विशेषज्ञ चीन की इस नई प्रणाली को भारत के लिये सुरक्षा की दृष्टि से काफी खतरनाक मान रहे हैं, क्योंकि इस प्रणाली के माध्यम से भारत के रणनीतिक और सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर आसानी से निगरानी की जा सकेगी। वहीं पाकिस्तान में भी इस प्रणाली का काफी व्यापक स्तर पर प्रयोग किया जा रहा है, जिससे भारत को चीन के साथ-साथ पाकिस्तान को लेकर भी सचेत रहने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि भारत के पास भी नाविक (NavIC) नामक एक नेवीगेशन प्रणाली है।

नाविक (NavIC)

  • नाविक-NavIC (Navigation in Indian Constellation) उपग्रहों की क्षेत्रीय नेवीगेशन उपग्रह आधारित स्वदेशी प्रणाली है जो अमेरिका के GPS की तरह कार्य करती है।
  • इसके माध्यम से स्थानीय स्थिति (Indigenous Positioning) या स्थान आधारित सेवा (Location Based Service- LBS) जैसी सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं। यह भारतीय उपमहाद्वीप पर 1,500 किलोमीटर के दायरे को कवर करता है।
  • गौरतलब है कि कारगिल युद्ध के बाद से ही भारत में GPS की तरह ही स्वदेशी नेवीगेशन सेटेलाइट नेटवर्क के विकास पर ज़ोर दिया जा रहा था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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