चीन और रूस संबंध | 09 Feb 2022
प्रिलिम्स के लिये:मानचित्र पर अवस्थिति, दक्षिण चीन सागर, शीत युद्ध, नाटो, एससीओ, ब्रिक्स, यूक्रेन संकट, बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव, यूरेशियन आर्थिक संघ। मेन्स के लिये:भारत-रूस-चीन संबंध। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन और रूस ने एक संयुक्त बयान में पुष्टि की कि उनके नए संबंध शीत युद्ध के दौर के किसी भी राजनीतिक या सैन्य गठबंधन से बेहतर हैं।
- यूक्रेन को लेकर उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के साथ रूस के गतिरोध के बीच यह बयान आया है।
चीन-रूस संबंधों की ऐतिहासिक गतिशीलता:
- अमेरिका की एकध्रुवीयता को खारिज़ करने में एक साथ होने के बावजूद रूस और चीन के बीच संबंध जटिल बने हुए हैं।
- प्रत्येक के अपने भौगोलिक क्षेत्र में विशिष्ट विश्वदृष्टि और विशिष्ट हित मौजूद हैं तथा दोनों अपनी-अपनी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- शीत युद्ध के अधिकांश दशकों में चीन और पूर्व सोवियत संघ के बीच संबंध उदासीन थे, जिसका कारण अविश्वास व सैद्धांतिक मतभेद था।
- संबंधों में परिवर्तन वर्ष 1989 में आया, जब मिखाइल गोर्बाचेव वर्ष 1958 में निकिता ख्रुश्चेव के बाद चीन का दौरा करने वाले पहले सोवियत नेता बने।
- रूस और चीन ने अपने द्विपक्षीय संबंधों के आधार के रूप में "संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता, आपसी गैर-आक्रामकता, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप, समानता व पारस्परिक लाभ एवं शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिये पारस्परिक सम्मान" की घोषणा की।
- सोवियत संघ के टूटने के एक दशक बाद जिस तरह से पश्चिम ने इसे डाउनग्रेड किया था, उससे निराश और अपमानित होकर तथा आर्थिक संकट की स्थिति में रूस ने चीन की ओर रुख किया।
- वर्ष 2001 में दोनों देशों ने अच्छे-पड़ोसी और मैत्रीपूर्ण सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर किये, जिससे आर्थिक और व्यापारिक संबंधों के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ, जिसमें रूस द्वारा चीन को रक्षा उपकरण एवं ऊर्जा की बिक्री तथा ताइवान को लेकर चीन के पक्ष का समर्थन किया गया।
- जून 2021 में दोनों देशों ने एक आभासी बैठक में संधि का विस्तार किया जहाँ रूस ने दावा किया कि "रूसी-चीनी समन्वय विश्व मामलों में एक स्थिर भूमिका निभाता है"।
चीन-रूस संबंधों में हालिया विकास:
- रूस के वर्ष 2014 के क्रीमिया अधिग्रहण के कारण रूस के अमेरिका, नाटो और यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ संबंधों में तीव्र गिरावट आई है।
- यह चीन के साथ रूस के संबंधों का भी एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था, जिसने संबंधों की संभावनाओं और सीमाओं को प्रकट किया।
- जब अमेरिका, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया ने रूस पर प्रतिबंध लगाए तो रूस ने चीन की ओर रुख किया।
- रूस ने चीन के निवेश के लिये अपने दरवाज़े खोल दिये और वर्ष 2025 से 30 वर्षों के लिये चीन को प्रतिवर्ष 38 बिलियन क्यूबिक मीटर (bcm) की आपूर्ति करने हेतु रूसी राज्य एकाधिकार गैस निर्यातक ‘गज़प्रोम’ के लिये 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर का सौदा किया।
- इससे पहले जनवरी 2022 में दोनों देशों ने एक और पाइपलाइन- ‘पावर ऑफ साइबेरिया-2’ के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जो 30 वर्षों हेतु वार्षिक आपूर्ति में 10 bcm गैस को जोडेगा।
- वर्ष 2016 के बाद से दोनों देशों के बीच व्यापार 50 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 147 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- चीन अब रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। मध्य एशिया में दोनों देश रूस के नेतृत्व वाले ‘यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन’ और चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ को जोड़ने की दिशा में काम करने पर सहमत हुए हैं।
- पहले से कहीं अधिक घनिष्ठ संबंधों के साथ यूक्रेन संकट चीन और रूस दोनों को एकजुटता व्यक्त करने का अवसर प्रदान कर रहा है।
- यदि पश्चिमी देश, रूस पर वित्तीय और बैंकिंग प्रतिबंध लगते हैं, तो चीन से रूस की सहायता करने की अपेक्षा की जा सकती है, जो कि संभवतः वैकल्पिक भुगतान विधियों के रूप में हो सकती है।
- चीन और रूस के एक हालिया संयुक्त बयान के तहत यूरोप में पश्चिमी सैन्य गठबंधन के किसी भी विस्तार के लिये रूसी विरोध का समर्थन किया गया है।
- रूस ने ‘एक-चीन’ नीति के समर्थन की पुष्टि की है और ताइवान के लिये किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता का विरोध किया है।
- इस बयान में ‘एशिया-प्रशांत क्षेत्र में किसी भी प्रकार की क्लोज़्ड ब्लॉक संरचनाओं और विरोधी शिविरों के गठन के खिलाफ’ तथा अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति के ‘नकारात्मक प्रभाव’ पर भी प्रहार किया गया।
रूस और चीन के हितों में भिन्नता:
- जैसा कि कई पर्यवेक्षकों ने बताया है कि चीन-रूस समझौता अभी तक पश्चिम के खिलाफ औपचारिक सुरक्षा गठबंधन नहीं बना है और न ही यह एक वैचारिक साझेदारी है।
- मार्च 2014 में क्रीमिया में जनमत संग्रह पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों पर मतदान में चीन ने हिस्सा नहीं लिया था और साथ ही चीन ने अभी तक रूस द्वारा क्रीमिया के अधिग्रहण को मान्यता नहीं दी है।
- चीन के मुख्य सुरक्षा हित एशिया में हैं; जबकि रूस के हित यूरोप में हैं। पश्चिम के साथ चल रही वार्ता में रूस की मांगों से यह स्पष्ट है कि रूस यूरोपीय सुरक्षा के पुनर्गठन की मांग कर रहा है।
- रूस, जो एक बार पुनः एक महान शक्ति के रूप में पहचान बनाना चाहता है, भारत के साथ संबंधों सहित कई मुद्दों पर चीन से स्वतंत्र है।
- छोटी अर्थव्यवस्था के रूप में रूस का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) चीन का दसवाँ हिस्सा है, लेकिन अपनी खोई हुई महाशक्ति की स्थिति की मज़बूत स्मृति के साथ रूस चीन का कनिष्ठ भागीदार बनने को तैयार नहीं है।
- रूस इस बात से अवगत है कि जर्मनी और शेष यूरोप को उसके गैस निर्यात से बहुत अधिक राजस्व प्राप्त होता है, जबकि चीन के पास वैसे भी अन्य पाइपलाइन हैं। इसके अलावा मध्य एशिया में रूस-चीन सहयोग पर बातचीत के बावजूद रूस अभी भी इस क्षेत्र को अपने प्रभाव क्षेत्र के हिस्से के रूप में देखता है।
- यह अमेरिकी सैन्य क्षमता को दक्षिण चीन सागर से दूर तो ले जाएगा, लेकिन यह व्यापार मुद्दों को हल करने के लिये बातचीत को भी रोक सकता है।
- चीन और यूरोपीय संघ एक-दूसरे के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार हैं, रूस के साथ चीन का व्यापार तुलनात्मक रूप से कम है। अगर चीन के साथ युद्ध होता है तो वह युद्ध नहीं लड़ेगा।
- जहाँ तक यूक्रेन का सवाल है तो यह बीआरआई परियोजना की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। चीन, यूक्रेन का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार भी है और अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के दौरान इसका कृषि निर्यात चीन को जारी रहा।
भारत के लिये उपर्युक्त नीतियाँ:
- भारत के लिये सबसे बेहतर विकल्प यह है कि वह दोनों देशों (चीन और रूस) तथा अमेरिका के साथ अपने संबंधों को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखे और यदि ऐसा नहीं होता है तो भारत को अपने स्वयं के स्थान को खोने का जोखिम उठाना पड़ सकता है।
- रूस के साथ भारत के संबंध पहले जैसे नहीं रहे हैं, लेकिन बहुत कुछ ऐसा है जिसे दोनों पक्ष पारस्परिक लाभप्रद स्थिति के रूप में देखते हैं।
- रूस-चीन के बयान में भारत के साथ चीन का सीमा विवाद का उल्लेख नहीं था, इसने केवल तीन देशों के बीच विकासशील सहयोग का संदर्भ दिया है।
- रूस से जुड़ी ‘रेडफिश’ नामक एक मीडिया कंपनी द्वारा कश्मीर एवं फिलिस्तीन के बीच समानता से संबंधित एक डॉक्यूमेंट्री जारी की गई थी, जिसके पश्चात् रूसी दूतावास ने स्पष्ट किया कि रेडफिश मीडिया एक आधिकारिक मीडिया नहीं है और यह दोहराया कि कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान द्वारा द्विपक्षीय रूप से हल किया जाना चाहिये।
- यदि अमेरिका और रूस के बीच मामलों में सुधार होता है तो क्षेत्रीय सुरक्षा वातावरण में ‘शक्ति गतिशीलता’ के कारण उत्पन्न संरचनात्मक बाधाओं को कम किया जा सकता है।
- दोनों के बीच कम संघर्षपूर्ण संबंध भारत को राहत प्रदान करेगा।
- साथ ही अमेरिका और चीन के चल रहे संघर्ष और चीन के साथ रूस के गहरे संबंध भारत के लिये कम महत्त्वपूर्ण होते यदि चीन के साथ भारत के संबंध अधिक शांतिपूर्ण एवं स्थिर होते।
- भारत को रूस, चीन और भारत के बीच पारस्परिक रूप से लाभकारी त्रिपक्षीय सहयोग को भी बढ़ावा देना चाहिये जो भारत व चीन के बीच अविश्वास व संदेह को कम करेगा।
- इस संदर्भ में ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) और आरआईसी त्रिपक्षीय मंच का लाभ उठाया जाना चाहिये।