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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘अंतर्राष्ट्रीय अभिभावकीय बाल अपहरण’ के मामले में बच्चे का हित सर्वोपरि

  • 09 Dec 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में अपने एक निर्णय द्वारा देश की अदालतों को उन मामलों में असीमित विवेकाधिकार प्रदान किया है, जो माता या पिता द्वारा बच्चों के ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल अपहरण’ (International Parental Child Abduction) से संबंधित हैं।

इस फैसले के अनुसार भारतीय अदालतें यदि इस बात से संतुष्ट हैं कि भारत में बच्चे का पालन-पोषण ठीक तरह से हो रहा है या प्रत्यावर्तन (विदेश में रहने वाले अभिभावक के पास वापस भेजना) के बाद बच्चे के अहित या असहनीय परिस्थिति में रखे जाने की संभावना हो तो वह बच्चे के प्रत्यावर्तन वाले विदेशी अदालत के आदेश को मानने से मना कर सकती हैं। 

क्या था मामला ?

यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस निर्णय के विरुद्ध दिया, जिसमें दिल्ली हाई कोर्ट ने भारत में रह रहे एक पिता को आदेश दिया था कि वह उसके साथ रह रहे बच्चे की कस्टडी अमेरिका में रह रही उसकी माँ को दे दे। 

बच्चा जब ढाई साल का था, तब से भारत में ही रह रहा है। बच्चे की मां और पिता दोनों 2014 से एक-एक बच्चे के साथ अलग-अलग रह रहे हैं। छोटे बच्चे के साथ उसकी मां अमेरिका में रहती है, जबकि पांच साल का बड़ा बच्चा पिता के साथ रहता है। बच्चे की मां भारत लौटने को तैयार नहीं है। पिता ने कोर्ट को बताया कि बच्चा एक बड़े स्कूल में पढ़ता है और खुश है। अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच उसकी बेहतर परवरिश हो रही है।

इस निर्णय को लेने की वज़ह

  • न्यायालय ने इस निर्णय के दौरान कहा कि माता या पिता द्वारा बच्चे के अंतर्राष्ट्रीय अपहरण के मामलों में बच्चे का हित सर्वोपरि है।
  • भारत बच्चों के अंतर्राष्ट्रीय अपहरण के नागरिक पहलुओं से संबंधित ‘हेग कन्वेंशन’ का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है। अतः उसके प्रावधान भारतीय अदालतों पर बाध्यकारी नहीं है।  
  • ‘न्यायालयों के सद्भाव के सिद्धांत’ (Principle of Comity of Courts) को बच्चे के कल्याण के ऊपर प्राथमिकता नहीं दी जा सकती। 

► यहाँ न्यायालयों के सद्भाव के सिद्धांत से तात्पर्य उस स्थिति से है, जिसमें एक राजनीतिक व्यवस्था (देश) के कानून का सम्मान दूसरी राजनीतिक व्यवस्था (देश) भी करे। 

क्या है हेग कन्वेंशन?

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जो उन बच्चों की त्वरित वापसी को सुनिश्चित करती है, जिनका "अपहरण" कर उन्हें उस जगह पर रहने से वंचित कर दिया गया है, जहाँ वे रहने के अभ्यस्त हैं। 
  • अब तक 97 देश इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव के बावजूद, भारत ने अभी तक इस कन्वेंशन की पुष्टि नहीं की है। 
  • कन्वेंशन के तहत हस्ताक्षर करने वाले देशों को उनके अभ्यस्त निवास स्थान से गैरकानूनी ढंग से निकाले गए बच्चों का पता लगाने और उनकी वापसी को सुनिश्चित करने के लिये एक केन्द्रीय प्राधिकरण का निर्माण करना होगा। 
  • मान लिया जाए कि किसी देश ने हेग कन्वेंशन पर हस्ताक्षर कर रखा है और इस मसले पर उस देश का अपना कानून कोई अलग राय रखता हो तो भी उसे कन्वेंशन के नियमों के तहत ही कार्य करना होगा।

भारत ने अब तक हेग-कन्वेंशन पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किये?

विदित हो कि इस कन्वेंशन को लेकर पहला विवाद इसके नाम से ही संबंधित है। ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल अपहरण के नागरिक पहलुओं को लेकर 1980 का हेग कंवेंशन’ उन बच्चों की बात करता है, जिनका ‘अपहरण’ किया गया है। इस मुद्दे पर विचार करने के दौरान विधि आयोग ने भी कहा था कि कैसे कोई माता-पिता अपने ही बच्चे का ‘अपहरण’ कर सकते हैं। 
विदित हो कि विदेशी न्यायालयों द्वारा दिये गए निर्णय, भारत के लिये बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन अब हेग कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने के उपरांत हम स्वयं के कानूनों के तहत फैसला लेने के बजाय अंतर्राष्ट्रीय नियमों को मानने के लिये बाध्य हो जाएंगे।
शादी के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों में बसने वाली कई महिलाओं का उनके पतियों द्वारा बहिष्कार कर दिया जाता है। ऐसे में वे अपने बच्चों के साथ भारत में रहने लगती हैं। यदि भारत ने इस कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किया तो उन्हें अपने बच्चों के बिना रहना होगा।

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