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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 28 नवंबर, 2017

  • 28 Nov 2017
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2025 तक बालश्रम को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित करने के दो साल बाद, हाल ही में ब्यूनस आयर्स में आयोजित हुए एक सम्मेलन में 100 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में उक्त लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में किये जा रहे प्रयासों की समीक्षा की गई, जिसमें यह बात निकलकर सामने आई कि वर्तमान में जिस गति से इस संबंध में प्रयास किये जा रहे हैं, उस गति से तय समय-सीमा के अंदर बालश्रम को समाप्त नहीं किया जा सकता। 

  • सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि 2030 के एस.डी.जी. (Sustainable Development Goals - SDGs) की समय-सीमा समाप्त होने के तकरीबन 20 साल बाद इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमानों के अनुसार

  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation - ILO) द्वारा प्रदत्त अनुमानों के अनुसार, अब से आठ साल बाद लगभग 121 मिलियन लड़के और लड़कियाँ किसी न किसी व्यवसाय में संलग्नित होंगी। 
  • वर्तमान में 5-17 वर्ष की आयु के तकरीबन 152 मिलियन बच्चे किसी न किसी व्यवसाय में संलिप्त हैं। 
  • इसका अर्थ यह है कि वर्तमान से लेकर वर्ष 2025 के बीच मात्र 31 लाख बच्चों को ही बालश्रम जैसी गंभीर समस्या से बचाए जाने की संभावना है। 
  • स्पष्ट रूप से इस संबंध में और अधिक गंभीर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे बच्चों के मौलिक अधिकारों के साथ-साथ उनका अस्तित्व भी खतरे में आ जाता है।
  • इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये सभी देशों द्वारा अपने प्रयासों को और अधिक मज़बूत बनाने के लिये प्रत्येक वर्ष कम से कम 19 लाख बच्चों को बालश्रम के दायरे से बाहर निकालने के विकल्प तलाशने होंगे। यह वर्तमान दर से पाँच गुना अधिक है। 

वर्तमान स्थिति क्या है?

  • यदि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के संदर्भ में केवल आँकड़ों का अध्ययन किया जाए तो यह मात्र कल्पना के कुछ नहीं है। गौरतलब है कि वर्ष 2016 तक (पिछले चार साल के दौरान) बालश्रम की दर में मात्र एक प्रतिशत की ही कमी दर्ज़ की गई। 
  • इसके विपरीत वर्ष 2012 में इस दर में तकरीबन तीन प्रतिशत की कमी दर्ज़ की गई। इस संबंध में सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि वर्ष 2012 के बाद से अभी तक के वर्षों में 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के बचाव के संबंध में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है। 
  • इसके अतिरिक्त इस अवधि में लड़कियों के बीच बालश्रम में गिरावट लड़कों की तुलना में केवल आधी ही थी। अर्थात् आज भी बालश्रम में संलिप्त लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में काफी अधिक है। 

विफलताओं के कारण

  • इस संबंध में आई.एल.ओ. द्वारा निम्नलिखित प्रणालीगत विफलताओं को इंगित किया गया है – 
    ► खतरनाक उद्योगों में कार्य करने वाले बच्चों के संबंध में प्रभावी वैश्विक समझौतों को लागू करने में राष्ट्रीय कानून का अभाव।
    ► साथ ही काम की न्यूनतम आयु के संबंध में प्रभावी कानूनों की अनुपस्थिति। 
    ► इसके अतिरिक्त रोज़गार के लिये न्यूनतम आयु निर्धारित करने वाले घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में समन्वय का अभाव।
    ► अभी तक अनिवार्य स्कूली शिक्षा की पहुँच इत्यादि।

इसका समाधान क्या हो सकता है?

  • अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में प्रभावी श्रम निरीक्षण की कमी को संबोधित करते हुए आई.एल.ओ. द्वारा इस बात पर विशेष बल दिया गया कि यदि वैश्विक समुदाय बालश्रम की समस्या से निदान चाहता है तो उसे सर्वप्रथम कानूनी विसंगतियों को दूर करने के प्रयास करने होंगे। 
  • वर्तमान में लगभग 71% कामकाजी बच्चे कृषि क्षेत्र में संलग्नित हैं, जिनमें से 69% बच्चे पारिवारिक इकाइयों में अवैतनिक रूप से काम करते हैं। 
  • इस संबंध में एक मज़बूत कानूनी रूपरेखा तैयार की जानी चाहिये, ताकि अवैध रूप से बच्चों से काम कराने वाली कंपनियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के आदेश जारी किये जा सकें। साथ ही बच्चों के संरक्षण, सुरक्षा एवं बेहतर भविष्य की गारंटी भी सुनिश्चित की जा सके। 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

  • यह ‘संयुक्त राष्ट्र’ की एक विशिष्ट एजेंसी है, जो श्रम-संबंधी समस्याओं/मामलों, मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों, सामाजिक संरक्षा तथा सभी के लिये कार्य अवसर जैसे मामलों को देखती है। 
  • यह संयुक्त राष्ट्र की अन्य एजेंसियों से इतर एक त्रिपक्षीय एजेंसी है, अर्थात् इसके पास एक ‘त्रिपक्षीय शासी संरचना’ (Tripartite Governing Structure) है, जो सरकारों, नियोक्ताओं तथा कर्मचारियों का (सामान्यतः 2:1:1 के अनुपात में) इस अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रतिनिधित्व करती है। 
  • यह संस्था अंतर्राष्ट्रीय श्रम कानूनों का उल्लंघन करने वाली संस्थाओं के खिलाफ शिकायतों को पंजीकृत तो कर सकती है, किंतु यह सरकारों पर प्रतिबंध आरोपित नहीं कर सकती है। 
  • इस संगठन की स्थापना प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् ‘लीग ऑफ नेशन्स’ (League of Nations) की एक एजेंसी के रूप में सन् 1919 में की गई थी। 
  • भारत इस संगठन का एक संस्थापक सदस्य रहा है। 
  • इस संगठन का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में स्थित है। 
  • वर्तमान में 187 देश इस संगठन के सदस्य हैं, जिनमें से 186 देश संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से हैं तथा एक अन्य दक्षिणी प्रशांत महासागर में अवस्थित ‘कुक्स द्वीप’ (Cook's Island) है। 
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 1969 में इसे  सर्वोच्च प्रतिष्ठित ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ प्रदान किया गया था।
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