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मुख्य न्यायाधीश की सहमति से ही होगा संवैधानिक पीठ का गठन

  • 13 Nov 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय पीठ ने दो अन्य न्यायाधीशों के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें एक मामले को संविधान पीठ को भेजे जाने का निर्देश दिया गया था।
  • विदित हो कि न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर को आदेश दिया था कि सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठतम पाँच जजों की बेंच एक याचिका पर सुनवाई करे।
  • हालाँकि बाद में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने आदेश दिया कि कोई न्यायाधीश स्वयं यह निर्णय नहीं ले सकता कि कौन सा मामला संवैधानिक पीठ को भेजना है और कौन सा नहीं।

क्या होगा प्रभाव?

  • संविधान के अनुच्छेद 124 (1) के तहत सर्वोच्च न्यायालय का गठन किया गया है, जिसके अनुसार 'भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा, जिसका मुखिया भारत का मुख्य न्यायधीश कहलाएगा।
  • मुख्य न्यायाधीश को न्यायिक कार्यों के लिये भले ही सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के बराबर अधिकार हो, लेकिन उसे शीर्ष न्यायपालिका का प्रशासनिक प्रमुख माना गया है।
  • हालाँकि अपने इस फैसले के बाद भविष्य के लिये व्यवस्था भी तय कर दी गई है कि कोई भी न्यायाधीश स्वयं अपने सामने कोई मामला सुनवाई के लिये नहीं लाएगा या कौन सा मामला कौन सी पीठ सुनेगी यह तय करने का अधिकार सिर्फ मुख्य न्यायाधीश को है।

कैसे नियुक्त होते हैं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश?

  • संविधान के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा अधिकतम सात न्यायाधीशों के होने की व्यवस्था की गई है।
  • हालाँकि यह भी कहा गया है संसद् कानून द्वारा न्यायाधीशों की संख्या में परिवर्तन कर सकती है। वर्तमान में उच्चत्तम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायाधीशों की कुल संख्या 31 हो सकती है।
  • उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और उनका चयन कॉलेजियम व्यवस्था के तहत किया जाता है। देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम व्यवस्था कहा जाता है।
  • कॉलेजियम व्यवस्था के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी वरिष्ठ जजों की समिति जजों के नाम तथा नियुक्ति का फैसला करती है।
  • इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला कॉलेजियम करता है। साथ ही उच्च न्यायालय के कौन से जज पदोन्नत होकर सर्वोच्च न्यायालय जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
  • उल्लेखनीय है कि कॉलेजियम व्यवस्था का उल्लेख न तो मूल संविधान में है और न ही उसके किसी संशोधित प्रावधान में। वर्तमान में कॉलेजियम व्यवस्था के अध्यक्ष चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा हैं और जस्टिस जे. चेलामेश्वरम, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी. लोकूर और जस्टिस कुरियन जोसेफ इसके सदस्य हैं।

कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर क्यों है विवाद? 

  • दरअसल, कॉलेजियम पाँच लोगों का समूह है और इन पाँच लोगों में शामिल हैं भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीश।
  • कॉलेजियम के द्वारा जजों के नियुक्ति का प्रावधान संविधान में कहीं नहीं है। कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर विवाद इसलिये है क्योंकि यह व्यवस्था नियुक्ति का सूत्रधार और नियुक्तिकर्त्ता दोनों स्वयं ही है। इस व्यवस्था में कार्यपालिका की भूमिका बिल्कुल नहीं है या है भी तो बस मामूली।
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