अंतर्राष्ट्रीय संबंध
हरियाणा में राज्य में वन की वास्तविक स्थिति की जाँच हेतु हरित दल का गठन
- 28 Jan 2017
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गौरतलब है कि हरियाणा राज्य सरकार ने राज्य में वनों की वास्तविक स्थिति की जाँच करने हेतु राज्य के भिन्न-भिन्न ज़िलों में हरित समितियों का गठन करने का निर्णय लिया है| ध्यातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (Punjab Land Preservation Act - PLPA), 1900 की धारा 4 एवं 5 के अंतर्गत “वन” के रूप में वर्णित भूमि की जाँच करने के लिये इन समितियों का गठन किया जा रहा है|
प्रमुख बिंदु
- हालाँकि पर्यावरणविदों द्वारा राज्य सरकार के इस फैसले को अरावली क्षेत्र में आधिपत्य रखने वाले बिल्डरों एवं नौकरशाहों की मदद करने के उद्देश्य से बिना सोचे-विचारे लिया गया फैसला करार देते हुए इसके प्रति असंतोष प्रकट किया गया है|
- उल्लेखनीय है कि कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बी.एस. संधू बनाम भारत सरकार मामले में (B.S Sandhu versus Government of India ,2014) यह स्पष्ट किया गया है कि हरियाणा के मंगर बानी पूजनीय उपवन (Mangar Bani Sacred Grove) के घने वन क्षेत्र को वन भूमि के रूप में मान्यता प्रदान नहीं की गई है|
- इसके अतिरिक्त हरियाणा राज्य में 4 प्रतिशत से भी कम क्षेत्रफल वन भूमि क्षेत्र के अंतर्गत आता है|
- ऐसी स्थिति में जनता के हितों को ध्यान में रखकर बनाई गई राज्य सरकार की इस नई नीति के अंतर्गत वनों की अधिकारिक रूप से सटीकतम पहचान ( वन का अर्थ उसी रूप में लिया जाना चाहिये जैसा कि उक्त अधिनियम के शब्दकोश में वर्णित किया गया है) सुनिश्चित करने पर बल दिया जाना चाहिये|
- इस योजना के तहत इस बात पर विशेष गौर किये जाने की आवश्यकता है कि पीएलपीए के अंतर्गत वर्णित वन क्षेत्र में कमी करने के बजाय वनों की वास्तविक पहचान करने पर बल दिया जाना चाहिये|
- गौरतलब है कि 16 जनवरी को जारी किये समिति के गठन के इस आदेश के मद्देनज़र हरियाणा के उपायुक्त (Deputy Commissioner) तथा ज़िला राजस्व अधिकारी (District Revenue Officer) सहित दूसरे अन्य अधिकारी मिलकर आगामी दो महीनों के अंदर इस संबंध में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे|
- पर्यावरणविदों के अनुसार, हरियाणा ने अभी तक शब्दकोश में वर्णित वनों की परिभाषा के अनुसार वनों की पहचान करने के संबंध में कोई विशेष कदम नहीं उठाए है| हालाँकि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ( National Green Tribunal) के साथ-साथ पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (Ministry of Environment and Forests) तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (National Capital Region Planning Board) द्वारा भी इस बात को दोहराया गया है कि वनों की पहचान शब्दकोश में वर्णित वनों की परिभाषा के अनुरूप ही की जानी चाहिये|