चार्जशीट: एक सार्वजनिक दस्तावेज़ नहीं | 23 Jan 2023
प्रिलिम्स के लिये:चार्जशीट, प्राथमिकी (FIR), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) मेन्स के लिये:चार्जशीट और FIR में अंतर, चार्जशीट एक सार्वजनिक दस्तावेज़ क्यों नहीं है। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायलय (SC) ने फैसला सुनाया कि चार्जशीट 'सार्वजनिक दस्तावेज़' नहीं हैं और चार्जशीट की स्वतंत्र सार्वजनिक पहुँच को सक्षम करना आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के प्रावधानों का उल्लंघन करता है क्योंकि यह आरोपी, पीड़ित और जाँच एजेंसियों के अधिकारों से समझौता करता है।
चार्जशीट:
- परिचय:
- चार्जशीट, जैसा कि धारा 173 CrPC के तहत परिभाषित किया गया है, एक पुलिस अधिकारी या जाँच एजेंसी द्वारा मामले की जाँच पूरी करने के बाद तैयार की गई अंतिम रिपोर्ट है।
- के वीरास्वामी बनाम भारत संघ और अन्य (1991) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चार्जशीट CrPC की धारा 173 (2) के तहत पुलिस अधिकारी की अंतिम रिपोर्ट है।
- आरोपी के खिलाफ 60-90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर चार्जशीट दायर की जानी चाहिये, अन्यथा गिरफ्तारी अवैध मणी जाएगी और आरोपी जमानत का हकदार होगा।
- चार्जशीट, जैसा कि धारा 173 CrPC के तहत परिभाषित किया गया है, एक पुलिस अधिकारी या जाँच एजेंसी द्वारा मामले की जाँच पूरी करने के बाद तैयार की गई अंतिम रिपोर्ट है।
- चार्जशीट में शामिल होना चाहिये:
- नामों का विवरण, सूचना की प्रकृति और अपराध। अभियुक्त गिरफ्तारी में है, हिरासत में है, या रिहा हो गया है, क्या उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही की गई, ये सभी महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं जिनका उत्तर चार्जशीट में दिया जाना चाहिये।
- चार्जशीट दाखिल करने के बाद की प्रक्रिया:
- चार्जशीट तैयार करने के बाद पुलिस स्टेशन का प्रभारी इसे एक मजिस्ट्रेट को प्रेषित करता है, जिसे इसमें उल्लिखित अपराधों का नोटिस लेने का अधिकार है ताकि आरोप तय किये जा सकें।
चार्जशीट FIR से कैसे अलग है?
- प्रावधान:
- 'चार्जशीट' शब्द को सीआरपीसी की धारा 173 के तहत परिभाषित किया गया है, लेकिन प्राथमिकी (FIR) को न तो भारतीय दंड संहिता (IPC) और न ही CrPC में परिभाषित किया गया है। इसके स्थान पर इसे CrPC की धारा 154 के तहत पुलिस नियमों/विनियमों के तहत जगह मिलती है, जो 'संज्ञेय मामलों में जानकारी' से संबंधित है।
- दाखिल करने का समय:
- चार्जशीट किसी जाँच की समाप्ति पर दाखिल की गई अंतिम रिपोर्ट होती है, एक प्राथमिकी (FIR) 'किसी भी घटना की प्रथम सूचना' के तौर पर दर्ज की जाती है जब पुलिस को एक संज्ञेय अपराध (ऐसा अपराध जिसके लिये किसी को वारंट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है, जैसे कि बलात्कार, हत्या, अपहरण) के बारे में सूचित किया जाता है।
- दोष निर्धारण:
- एक प्राथमिकी से किसी व्यक्ति के दोष का निर्धारण नहीं हो जाता है, लेकिन एक चार्जशीट में सबूत भी होते है और अक्सर मुकदमे के दौरान अभियुक्त पर लगाए गए अपराधों को साबित करने के लिये इनका उपयोग किया जाता है।
- नियम एवं शर्तें:
- FIR दर्ज किये जाने के बाद जाँच होती है। CRPC की धारा 169 के तहत पुलिस मामले को मजिस्ट्रेट के पास तभी ला सकती है जब उसके पास पर्याप्त सबूत हों, अन्यथा आरोपी को हिरासत से रिहा कर दिया जाता है।
- CRPC की धारा 154 (3) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अधिकारियों द्वारा प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार करने की समस्या से परेशान है, तो वह पुलिस अधीक्षक को शिकायत भेज सकता हैं, जो या तो स्वयं मामले की जाँच करेगा या अपने अधीनस्थ को निर्देशित करेगा।
- पुलिस या कानून-प्रवर्तन/जाँच एजेंसी द्वारा प्राथमिकी में वर्णित अपराधों के संबंध में अभियुक्त के खिलाफ पर्याप्त सबूत इकट्ठा करने के बाद ही आरोप पत्र दायर किया जाता है, अन्यथा सबूत की कमी के कारण 'रद्दीकरण रिपोर्ट' या 'अनट्रेस्ड रिपोर्ट' दायर की जा सकती है।
- FIR दर्ज किये जाने के बाद जाँच होती है। CRPC की धारा 169 के तहत पुलिस मामले को मजिस्ट्रेट के पास तभी ला सकती है जब उसके पास पर्याप्त सबूत हों, अन्यथा आरोपी को हिरासत से रिहा कर दिया जाता है।
FIR
- यह किसी भी सूचना की वह रिपोर्ट है जो पुलिस तक सबसे पहले पहुँचती है और इसीलिये इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट कहा जाता है।
- यह आमतौर पर किसी संज्ञेय अपराध के शिकार व्यक्ति अथवा उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा पुलिस में दर्ज कराई गई शिकायत है। संज्ञेय अपराध होने की रिपोर्ट कोई भी मौखिक या लिखित रूप में कर सकता है।
चार्जशीट, एक सार्वजनिक दस्तावेज़ क्यों नहीं?
- न्यायालय के अनुसार, चार्जशीट को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं कराया जा सकता क्योंकि यह साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 74 और 76 के तहत एक 'सार्वजनिक दस्तावेज़' नहीं है।
- धारा 74: यह सार्वजनिक दस्तावेज़ों को ऐसे दस्तावेज़ों के रूप में परिभाषित करता है जो भारत, राष्ट्रमंडल या किसी बाहरी देश के किसी भी हिस्से में संप्रभु प्राधिकरण, आधिकारिक निकायों, न्यायाधिकरणों और सार्वजनिक कार्यालयों के या तो विधायी, न्यायिक या कार्यकारी के कार्य या रिकॉर्ड होते हैं। इसमें "निजी दस्तावेज़ों के किसी भी राज्य में रखे गए" सार्वजनिक रिकॉर्ड भी शामिल हैं।
- इस खंड में उल्लिखित दस्तावेज़ सार्वजनिक दस्तावेज़ हैं तथा उनकी प्रमाणित प्रतियाँ उन सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा प्रदान की जानी चाहिये जिनके पास उनकी कस्टडी है।
- आवश्यक सार्वजनिक दस्तावेज़ों के साथ चार्जशीट की प्रति को इस धारा के तहत सार्वजनिक दस्तावेज़ नहीं कहा जा सकता है।
- इस खंड में उल्लिखित दस्तावेज़ सार्वजनिक दस्तावेज़ हैं तथा उनकी प्रमाणित प्रतियाँ उन सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा प्रदान की जानी चाहिये जिनके पास उनकी कस्टडी है।
- धारा 76: ऐसे दस्तावेज़ों की अभिरक्षा वाले किसी भी सार्वजनिक अधिकारी को कानूनी शुल्क की मांग और भुगतान पर एक प्रति प्रदान करनी चाहिये, साथ ही सत्यापन का प्रमाण पत्र भी देना होगा जिस पर अधिकारी की मुहर, नाम एवं पदनाम तथा तारीख अंकित हो।
- धारा 74: यह सार्वजनिक दस्तावेज़ों को ऐसे दस्तावेज़ों के रूप में परिभाषित करता है जो भारत, राष्ट्रमंडल या किसी बाहरी देश के किसी भी हिस्से में संप्रभु प्राधिकरण, आधिकारिक निकायों, न्यायाधिकरणों और सार्वजनिक कार्यालयों के या तो विधायी, न्यायिक या कार्यकारी के कार्य या रिकॉर्ड होते हैं। इसमें "निजी दस्तावेज़ों के किसी भी राज्य में रखे गए" सार्वजनिक रिकॉर्ड भी शामिल हैं।
- साक्ष्य अधिनियम की धारा 75 के अनुसार, धारा 74 के अंतर्गत सूचीबद्ध दस्तावेज़ों के अलावा अन्य सभी दस्तावेज़ निजी दस्तावेज़ हैं।
- यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले (2016) में सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सभी पुलिस स्टेशनों को निर्देश दिया कि वे FIR दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर FIR की प्रतियाँ ऑनलाइन प्रकाशित करें, उन मामलों को छोड़कर जहाँ अपराध संवेदनशील प्रकृति के हों।
- इस निर्णय के तहत केवल FIR को कवर किया गया था तथा चार्जशीट को शामिल नहीं किया गया था।