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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सऊदी अरब की बदलती विदेश नीति

  • 15 Apr 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ओपेक+, सऊदी अरब के पड़ोसी देश

मेन्स के लिये:

सऊदी अरब की नई विदेश नीति के निहितार्थ, पश्चिम एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव

चर्चा में क्यों? 

ईरान के प्रति अपने आक्रामक रुख में बदलाव करते हुए विश्व की बड़ी शक्तियों के साथ संतुलन बनाए रखने और अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार करने के उद्देश्य से सऊदी अरब अपनी विदेश नीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करने जा रहा है।

सऊदी अरब की बदलती विदेश नीति: 

  • ईरान के प्रति रुख में बदलाव: 
    • सऊदी अरब की विदेश रणनीति ऐतिहासिक रूप से ईरान के इर्द-गिर्द घूमती रही है, जिसके परिणामस्वरूप पूरे मध्य-पूर्व में अप्रत्यक्ष टकराव की स्थिति बनी हुई थी। इसने हमेशा से ही से ईरान के प्रति अमित्रतापूर्ण रुख अपनाया है।
    • हालाँकि हाल ही में सऊदी अरब ने ईरान के साथ राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाने के लिये चीन की मध्यस्थता वाली वार्ता के बाद एक समझौते की घोषणा की।
      • सामरिक प्रतिद्वंद्विता और अप्रत्यक्ष टकराव ने शांतिपूर्ण समाधान एवं ईरान के साथ पारस्परिक सह-अस्तित्त्व का मार्ग प्रशस्त किया है।
  • वैश्विक शक्तियों के साथ संबंधों को संतुलित करना: 
    • सऊदी अरब भी अमेरिका- उसका सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्त्ता, रूस- उसका ओपेक-प्लस भागीदार और नई महाशक्ति चीन के साथ संतुलन बनाने का प्रयास कर रहा है।

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  • नीति में बदलाव का कारण:  
    • हालिया क्षेत्रीय दाँव या तो असफल रहे या फिर आंशिक रूप से सफल रहे।
      • सीरिया और यमन में असफल क्षेत्रीय नीतियाँ, जिसमें सऊदी अरब का हस्तक्षेप ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों को रोकने में विफल रहा।
      • साथ ही हूती अपने ड्रोन और कम दूरी की मिसाइलों के साथ अब सऊदी अरब के लिये गंभीर सुरक्षा खतरा पैदा कर रहे हैं। 
    • अमेरिका द्वारा पश्चिम एशिया को प्राथमिकता के मामले में दूरी बनाना। 
      • अमेरिका द्वारा पश्चिम एशिया को प्राथमिकता से वंचित करना, सऊदी अरब को एहसास दिलाता है कि उसे अन्य बड़ी शक्तियों के साथ वफादार गठजोड़ करके अपनी स्वायत्तता स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • चीन, जिसके ईरान एवं सऊदी अरब दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं, ने दोनों के बीच मध्यस्थता करने की पेशकश की और सऊदी अरब ने इस अवसर का लाभ उठाया।  
  • यूएस-सऊदी संबंधों पर प्रभाव:
    • हालाँकि सऊदी के बदलते विदेशी रुख का अर्थ यह नहीं है कि वह अमेरिका से दूर जा रहा है।
      • अमेरिका जो कि सऊदी अरब का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्त्ता बना हुआ है,  इस क्षेत्र की सुरक्षा में प्रमुख भूमिका निभाता है।
        • सऊदी अरब इन क्षेत्रों में ईरान की बढ़त का मुकाबला करने के लिये अमेरिका तथा अन्य की मदद से उन्नत मिसाइल एवं ड्रोन क्षमताओं को विकसित करने की भी कोशिश कर रहा है।
      • इसके अतिरिक्त अमेरिकी नीति में परिवर्तन के कारण उत्पन्न अंतराल को ध्यान में रखते हुए यह अपनी विदेश नीति को स्वायत्त बनाने का प्रयास कर रहा है।  
    • अमेरिका की प्रतिक्रिया: हालाँकि अमेरिका ने सऊदी-ईरान सामंजस्य का सार्वजनिक रूप से स्वागत किया है, लेकिन ईरान समझौते पर "संभावित खतरों" के बारे में उसने सऊदी के क्राउन प्रिंस के समक्ष अपनी चिंता व्यक्त की है।  
      • अमेरिका काफी हद तक चीन एवं रूस के नेतृत्त्व में मध्यस्थता वार्ता में एक दर्शक के रूप में रहा, विशेष रूप से इस क्षेत्र में इसकी विशाल सैन्य उपस्थिति तथा इस तथ्य को देखते हुए कि अमेरिका लगभग सभी प्रमुख पुनर्गठन का हिस्सा रहा था।  

प्रभाव: 

  • सऊदी अरब की सीरिया और हूती लोगों के साथ चर्चा सऊदी-ईरान सुलह हेतु महत्त्वपूर्ण पहल है।
    • यदि यमन युद्ध को हूती लोगों के साथ समझौते के माध्यम से समाप्त कर दिया जाए तो सऊदी अरब की सीमा पर अशांति कम होगी, साथ ही ईरान, सऊदी अरब के पड़ोस में अपना प्रभाव बना  सकता है।
  • ये समझौते पूरे खाड़ी क्षेत्र में स्थिरता ला सकते हैं, हालाँकि ये इज़रायल और ईरान के बीच तनावपूर्ण स्थिति को प्रभावित कर सकते हैं।
  • सऊदी को अमेरिका को नाराज़ किये बिना स्वायत्तता बनाए रखने की भी ज़रूरत है, क्योंकि सीरिया को पश्चिम एशियाई मुख्यधारा में फिर से शामिल किये जाने से अमेरिका खुश नहीं होगा।

भारत के लिये मायने: 

  • सऊदी अरब मध्य-पूर्व में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता है और विदेश नीति में कोई भी परिवर्तन इस क्षेत्र के अन्य देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित कर सकता है।
    • यह चीन-पाकिस्तान-सऊदी अरब के मध्य मज़बूत संबंध स्थापित कर सकता है। 
  • भारत के संबंध ईरान और सऊदी अरब दोनों के साथ सौहार्दपूर्ण हैं एवं यह संबद्ध क्षेत्र में शांति तथा स्थिरता बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
  • इन दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने से इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों में मदद मिल सकती है।
  • चीन द्वारा ईरान और सऊदी के बीच मध्यस्थता करना भारत के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि यह इस क्षेत्र में चीनी प्रभाव को बढ़ाने में योगदान करेगा।
  • भारत को इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के बारे में सतर्क रहने और मध्य-पूर्व में अपने सामरिक हितों को सुरक्षित करने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू

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