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भारतीय अर्थव्यवस्था

RBI के लेखांकन वर्ष में परिवर्तन

  • 18 Feb 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

RBI का लेखांकन वर्ष, बिमल जालान समिति, आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क

मेन्स के लिये:

RBI के लेखांकन वर्ष में परिवर्तन के कारण एवं प्रभाव, मौद्रिक नीति एवं राजकोषीय नीति से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of india- RBI) अपने लेखांकन वर्ष (Accounting Year) को जुलाई-जून से परिवर्तित कर अप्रैल-मार्च करने पर विचार कर रहा है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • RBI देश के वित्त के अधिक प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करने हेतु अपने लेखांकन वर्ष को सरकार के वित्तीय वर्ष (Fiscal Year) के साथ संरेखित करना चाहता है।

पृष्ठभूमि:

  • जब 1 अप्रैल, 1935 में सर ऑसबोर्न स्मिथ (तत्कालीन गवर्नर) की अध्यक्षता में RBI का परिचालन शुरू हुआ तो इसका लेखांकन वर्ष जनवरी-दिसंबर था किंतु 11 मार्च, 1940 को बैंक ने अपना लेखांकन वर्ष बदलकर जुलाई-जून कर दिया था।
  • अब लगभग आठ दशकों के बाद RBI एक और बदलाव कर रहा है। ध्यातव्य है कि अगला लेखा वर्ष जुलाई 2020 से 31 मार्च 2021 तक नौ महीने की अवधि का होगा और उसके बाद सभी लेखांकन वर्ष सरकार के वित्तीय वर्ष की भाँति 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होंगे।

RBI के लेखांकन का महत्त्व

  • RBI की बैलेंस शीट देश की अर्थव्यवस्था की कार्यपद्धति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो बड़े पैमाने पर इसके मुद्रा संबंधी मुद्दे के साथ-साथ मौद्रिक नीति और आरक्षित प्रबंधन उद्देश्यों के अनुसरण में की गई गतिविधियों को दर्शाती है।
  • RBI अधिनियम के अनुसार, केंद्रीय बैंक केंद्र सरकार के खाते के लिये धनराशि स्वीकार करने तथा क्रेडिट करने के लिये राशि का भुगतान और विनिमय के अतिरिक्त सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन के साथ-साथ प्रेषण एवं अन्य बैंकिंग कार्यों का प्रबंधन करता है।
  • RBI देश का मौद्रिक प्राधिकरण, नियामक, वित्तीय प्रणाली का पर्यवेक्षक, विदेशी मुद्रा का प्रबंधक, मुद्रा जारी करने वाला, भुगतान और निपटान प्रणाली का नियामक तथा पर्यवेक्षक, केंद्र एवं राज्य सरकारों के बैंकर के साथ-साथ बैंकों का भी बैंकर है। ध्यातव्य है कि ये सभी कार्य भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, इसलिये इन दायित्वों का निर्वहन करने के कारण RBI का लेखांकन अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

RBI द्वारा लेखांकन वर्ष में परिवर्तन के कारण

  • RBI के आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क (Economic Capital Framework- ECF) पर बिमल जालान समिति ने RBI के वार्षिक खातों की अधिक पारदर्शी प्रस्तुति और वित्तीय वर्ष 2020-21 से इसके लेखांकन वर्ष को जुलाई-जून के स्थान पर अप्रैल-मार्च करने का प्रस्ताव दिया था।
  • समिति के अनुसार, इससे RBI बजटीय उद्देश्यों हेतु वित्त वर्ष के लिये सरकार को अनुमानित अधिशेष के हस्तांतरण (Estimated Surplus Transfer) का बेहतर अनुमान प्रदान करने में सक्षम होगा।
  • समिति का मानना था कि इससे सरकार को प्राप्त लाभांश या अधिशेष के हस्तांतरण का बेहतर प्रबंधन किया जा सकेगा। इसके अलावा सरकारें, कंपनियाँ और अन्य संस्थान जो अप्रैल-मार्च वित्त वर्ष का पालन करते हैं, को उनके लेखांकन के प्रभावी प्रबंधन में मदद मिलेगी।

लेखांकन वर्ष में परिवर्तन का प्रभाव

  • वित्तीय वर्ष में बदलाव RBI द्वारा भुगतान किये जाने वाले अंतरिम लाभांश की आवश्यकता को कम किया सकता है और इस तरह के भुगतान असाधारण परिस्थितियों तक सीमित हो सकते हैं। ध्यातव्य है कि पिछले वित्त वर्ष में RBI ने अंतरिम लाभांश के रूप में 28,000 करोड़ रुपए का भुगतान किया था।
  • इससे RBI द्वारा प्रकाशित मौद्रिक नीति अनुमानों और रिपोर्टों में अधिक सामंजस्य बनाया जा सकेगा। क्योंकि इनके लिये RBI वित्तीय वर्ष को ही आधार वर्ष मानता है।
  • लेखांकन वर्ष को सरकार के वित्तीय वर्ष से संरेखित करने से सरकारी नीतियों एवं RBI की मौद्रिक नीतियों में समन्वय स्थापित किया जा सकता है तथा देश की आर्थिक स्थितियों का प्रबंधन बेहतर तरीके से किया जा सकता है।

आगे की राह

  • RBI को वर्तमान आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपनी नीतियों में परिवर्तन करना चाहिये, साथ ही इसे सरकार की नीतियों के साथ परस्पर समन्वय बनाए रखने की आवश्यकता है।
  • इसके अतिरिक्त RBI को बैंकिंग क्षेत्र में व्याप्त चुनौतियों को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है तथा बैंकिंग क्षेत्र में NPA, प्रबंधन में समस्या जैसी अन्य समस्याओं से निपटने की दिशा में व्यापक कदम उठाने की आवश्यकता है जिससे बैंकिंग व्यवस्था में नागरिकों का विश्वास बना रहे तथा वित्तीय समावेशन को बल मिले।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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