राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के समक्ष चुनौतियाँ | 07 Apr 2021
चर्चा में क्यों?
बीते दिनों कुछ मामलों में यह देखा गया कि कई व्यक्तियों को न्यायिक हिरासत से रिहा होने से रोकने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (National Security Act- NSA), 1980 का प्रयोग किया गया, यद्यपि न्यायालय द्वारा उन आरोपियों को ज़मानत दे दी गई थी।
- NSA, सरकार को किसी व्यक्ति विशिष्ट को फॉर्मल चार्ज (Formal Charge) और बिना सुनवाई के हिरासत में लेने का अधिकार प्रदान करता है।
प्रमुख बिंदु:
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के बारे में:
- NSA एक निवारक निरोध कानून है।
- निवारक निरोध के तहत भविष्य में किसी व्यक्ति को अपराध करने या अभियोजन से बचने से रोकने के लिये हिरासत में लिया जाना शामिल है।
- संविधान का अनुच्छेद 22 (3) (ब) राज्य की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था की स्थापना हेतु व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर निवारक निरोध और प्रतिबंध की अनुमति प्रदान करता है।
- इसके अलावा अनुच्छेद 22 (4) में कहा गया है कि निवारक निरोध के तहत हिरासत में लिये जाने का प्रावधान करने वाले किसी भी कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को तीन महीने से अधिक समय तक हिरासत में रखने का अधिकार नहीं दिया जाएगा:
- एक सलाहकार बोर्ड द्वारा विस्तारित निरोध हेतु पर्याप्त कारणों के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।
- ऐसे व्यक्ति को संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अनुसार हिरासत में लिया जा सकता है।
- सरकार की शक्तियाँ:
- NSA किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करने से रोकने हेतु केंद्र या राज्य सरकार को उस व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार देता है।
- सरकार किसी व्यक्ति को आवश्यक आपूर्ति एवं सेवाओं के रखरखाव तथा सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने से रोकने के लिये उस पर NSA के अंतर्गत कार्यवाही कर सकती है।
- कारावास की अवधि: किसी व्यक्ति को अधिकतम 12 महीने हिरासत में रखा जा सकता है लेकिन सरकार को मामले से संबंधित नवीन सबूत मिलने पर इस समयसीमा को बढ़ाया जा सकता है।
अधिनियम से संबंधित मुद्दे:
- यह एक प्रशासनिक आदेश है जो या तो डिविज़नल कमिश्नर या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) द्वारा पारित किया जाता है। यह विशिष्ट आरोपों के आधार पर या किसी विशेष कानून के उल्लंघन हेतु पुलिस द्वारा दिया गया निरोध आदेश (Detention Ordered) नहीं है।
- NSA को लागू करने वाली परिस्थितियाँ:
- अगर कोई व्यक्ति पुलिस हिरासत में है, तो भी डीएम उसके खिलाफ NSA लागू कर सकता है।
- यदि किसी व्यक्ति को ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत दी गई है, तो उसे तुरंत NSA के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।
- यदि व्यक्ति अदालत से बरी हो गया है, तो उस व्यक्ति को NSA के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।
- संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध: भारतीय संविधान के अनुच्छेद-22 के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति को पुलिस हिरासत में लिये जाने के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना अनिवार्य है, जबकि NSA के तहत इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है, जो कि एक व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का हनन है।
- हिरासत में लिये गए व्यक्ति को आपराधिक न्यायालय के समक्ष जमानत याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है।
- आदेश पारित करने संबंधी सुरक्षा: निरोध संबंधी आदेश पारित करने वाले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम के तहत किसी भी कानूनी कार्यवाही से सुरक्षा प्रदान की गई है, अधिनियम के मुताबिक, आदेश पारित करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी अभियोजन अथवा कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन:
- न्यायालय ने माना है कि सामाजिक सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता के मध्य एक नाजुक संतुलन के साथ NSA के तहत निवारक नज़रबंदी को सख्ती से बनाए रखना होगा।
- न्यायालय ने यह भी माना कि "इस संभावित खतरनाक शक्ति के दुरुपयोग को रोकने हेतु निवारक निरोध के कानून को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिये" तथा इसके लिये "प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के साथ सावधानीपूर्वक अनुपालन" सुनिश्चित करना होगा।
अधिनियम के विरुद्ध सुरक्षा उपाय:
- NSA के तहत अनुच्छेद 22 (5) के तहत प्रक्रियात्मक सुरक्षा दी गई है, जिसके तहत हिरासत में लिये गए सभी व्यक्तियों को एक स्वतंत्र सलाहकार बोर्ड के समक्ष प्रभावी प्रतिनिधित्व करने का अधिकार दिया गया है।
- इस सलाहकार बोर्ड में तीन सदस्य होते हैं जिसमें बोर्ड का अध्यक्ष उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होता है।
- हेबियस कार्पस (Habeas Corpus) की रिट भी NSA के तहत लोगों को हिरासत में लेने की अनियंत्रित राज्य शक्ति के खिलाफ संविधान के तहत गारंटीकृत सुरक्षा प्रदान करती है।