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भारत –चीन संबंधों में व्यापार घाटे की चुनौती

  • 28 Mar 2017
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?
हाल ही में आर्थिक संबंधों, व्यापार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर चीन-भारत संयुक्त समूह (India-China Joint Group on Economic Relations, Trade, Science and Technology) की 11वीं बैठक के पश्चात चीन ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को संधारणीय तरीके से बढ़ावा देने के लिये एक रोडमैप बनाने पर सहमति व्यक्त की है।

  • चीन ने दोनों देशों के बीच व्यापार घाटे पर भारत की चिंताओं को दूर करने के लिये संयुक्त कार्यवाही करने का आश्वासन दिया है। 

भारत-चीन संयुक्त आर्थिक समूह (JEG)

  • भारत-चीन JEG मंत्रिस्तरीय वार्ता है जिसे 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की चीन यात्रा के दौरान स्थापित किया गया था।
  • ऐसी पिछली बैठक (10वीं JEG) सितंबर 2014 में बीजिंग में आयोजित की गई थी, जिसमें दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ाने और इसमें विविधता लाने के लिये सहमति दी थी।
  • 2012 में 9वीं JEG के दौरान दोनों पक्षों ने आर्थिक और व्यापार योजना सहयोग, व्यापार सांख्यिकीय विश्लेषण और सेवा व्यापार संवर्द्धन पर तीन वर्किंग ग्रुप स्थापित किये थे।

11वीं JEG के प्रमुख बिंदु

  • 11वीं JEG की सह-अध्यक्षता दोनों देशों के वाणिज्य मंत्रियों द्वारा की गई थी।
  • दोनों देशों ने एक निश्चित कार्ययोजना और समयसीमा के साथ एक मध्यम और दीर्घकालिक रोडमैप तैयार करने के लिये सहमति व्यक्त की, ताकि $51 बिलियन के द्विपक्षीय व्यापार घाटे का समाधान किया जा सके।
  • दोनों मंत्रियों ने संतुलित एवं सतत् द्विपक्षीय व्‍यापार को बढ़ावा देने के प्रति अपनी कटिबद्धता दोहराते हुए चीन और भारत के बीच सितंबर 2014 में हस्‍ताक्षरित ‘आर्थिक एवं व्‍यापार सहयोग के लिये पंचवर्षीय विकास कार्यक्रम’ में चिह्नित पहलों को और आगे बढ़ाने पर सहमति जताई है।
  • सितंबर 2014 में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देकर वर्ष 2019 तक द्विपक्षीय व्यापार संतुलन के लिये समझौता किया गया था।
  • चीनी पक्ष ने गैर-बासमती चावल, रेपसीड भोजन, सोया भोजन, अनार एवं अनार छिल्का, भिंडी, केला और अन्‍य फलों एवं सब्जियों से संबंधित भारतीय कृषि उत्‍पादों के साथ-साथ बोवाइन मीट के बाज़ार तक पहुँच को संवर्द्धित करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
  • दोनों पक्षों ने फार्मास्‍यूटिकल्‍स के क्षेत्र में द्विपक्षीय व्‍यापार को बढ़ावा देने के लक्ष्‍य के लिये अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, जिसमें चीन के बाज़ारों को भारतीय फार्मा उत्‍पादों के निर्यात से जुड़े मुद्दों, जैसे- नॉन-टैरिफ बाधाओं को सुलझाना भी शामिल है।
  • निवेश को बढ़ावा देने के लिये एक अधिक स्थिर, पारदर्शी और प्रीडिक्टबल कानूनी वातावरण सुनिश्चित करने हेतु द्विपक्षीय निवेश समझौते को रीनिगोशीएट करने पर भी दोनों पक्ष सहमत हुए हैं।
  • दोनों पक्षों ने अपने साझा हितों को बनाए रखने के लिये विश्‍व व्‍यापार संगठन के साथ-साथ अन्‍य बहुपक्षीय एवं क्षेत्रीय ढाँचे के अंतर्गत सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताने के साथ ही नियम आधारित बहुपक्षीय वैश्विक व्‍यापार के लिये अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।   

भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार परिदृश्य

  • अप्रैल 2000 से दिसंबर 2017 तक भारत को चीन से $1.78 बिलियन प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ था।
  • चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर की अवधि के दौरान चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा $36.73 बिलियन रहा। 
  • चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 2015-16 में $52.69 बिलियन था जो वर्ष 2016-17 में थोड़ा कम होकर $51 बिलियन हो गया था।
  • भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार पिछले वितीय वर्ष के $70.17 बिलियन से बढ़कर 2016-17 में $71.42 बिलियन हो गया था।
  • दोनों ही देश दुनिया की सबसे बड़ी उभरती अर्थव्‍यवस्‍थाएँ हैं, जहाँ विश्‍व की लगभग 35 फीसदी आबादी रहती है और वैश्विक सकल घरेलू उत्‍पाद (GDP) में लगभग 20% का योगदान करते हैं।
  • किंतु दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्‍यापार कुल वैश्विक व्‍यापार के 1% से भी कम है। व्यापार घाटे की समस्या दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों के विस्तार की राह में प्रमुख समस्या बना हुआ है। 

क्या है व्यापार घाटा (Trade Deficit)?

  • जब कोई देश निर्यात की तुलना में आयात अधिक करता है तो इसे व्यापार घाटा कहते हैं। इसे नकारात्मक व्यापार संतुलन (Negative Balance of Trade) भी कहा जाता है।
  • स्पष्ट है कि जब आयात अधिक होगा तो विदेशी मुद्रा, विशेष रूप से डॉलर में भुगतान होने के कारण देश में विदेशी मुद्रा (डॉलर) की कमी होगी।
  • जब विदेशी मुद्रा में भुगतान किया जाता है, तो उसकी माँग भी बढ़ती है और रुपया उसके मुकाबले कमज़ोर हो जाता है।
  • रुपए के कमज़ोर होने से उसकी कीमत में गिरावट आती है। ऐसी परिस्थिति में आयातकों को विदेशों से माल के आयात के लिये अधिक कीमत चुकानी पड़ती है।
  • इस तरह आयात महँगा हो जाता है। इसके विपरीत निर्यातकों को फायदा होता है।
  • व्यापार घाटे में केवल वस्तुओं के आयात-निर्यात को शामिल किया जाता है जबकि चालू खाते के घाटे (Current Account Deficit) में अदृश्य मदों, यथा-सेवाओं को भी शामिल किया जाता है। 
  • वस्तुओं के मामले में भारत हमेशा से ही घाटे की स्थिति में रहा है क्योंकि भारत के समग्र आयात में कच्चे तेल की हिस्सेदारी काफी अधिक है, किन्तु सेवाओं के मामले में भारत की स्थिति सकारात्मक रहती है। 
  • भारत में कच्चे तेल की माँग का एक बड़ा भाग आयात से पूरा किया जाता है। कच्चे तेल का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार डॉलर में होता है।
  • जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो उसका प्रभाव भारत के व्यापार घाटे पर पड़ता है।
  • अधिक व्यापार घाटे का मतलब है कि कोई देश कुछ उत्पादों को घरेलू स्तर पर उत्पादित करने की बजाय अन्य देशों से आयात कर रहा है।
  • इससे स्थानीय कंपनियाँ व्यवसाय से बाहर निकलना शुरू कर देती हैं और उस क्षेत्र में रोज़गारों की संख्या भी कम होने लगती है।
  • यही कारण है कि हाल ही में अमेरिका ने चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार में उच्च व्यापार घाटे (लगभग $370 बिलियन) के कारण अमेरिका में 20 लाख नौकरियों के नुकसान का हवाला देते हुए चीन से लगभग $60 अरब के आयात पर शुल्क आरोपित किया है।
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