भारत में घटते लिंगानुपात की चुनौती | 05 Mar 2018
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में जन्म के समय लिंगानुपात (Sex Ratio at Birth-SRB) 2012-2014 के 906 से घटकर 2013-2015 में 900 हो गया था।
- SRB प्रत्येक 1000 लड़कों पर पैदा होने वाली लड़कियों की संख्या को दर्शाता है।
- SRB में गिरावट के कारण आज भारत और चीन जैसे देशों में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की संख्या बढ़ रही है। इससे पुरुषों और महिलाओं दोनों के प्रति हिंसा में बढ़ोतरी के साथ ही मानव तस्करी जैसे अपराध भी बढ़ रहे हैं।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
- भारत के 21 बड़े राज्यों में से 17 में SRB में गिरावट देखी गई। 53 अंकों की गिरावट के साथ गुजरात राज्य का प्रदर्शन सबसे खराब रहा।
- हालाँकि नीति आयोग ने रिपोर्ट में 2013-15 तक के आँकड़ों का इस्तेमाल किया था।
- भारत के नमूना पंजीकरण प्रणाली के नए आँकड़े दिखाते हैं कि 2014-2016 में SRB 900 से कम होकर 898 हो गया है।
- भारत में 1970 के दशक से ही SRB में लगातार गिरावट देखी जा रही है।
- प्रकृति द्वारा पुरुषों की उच्च मृत्यु दर को संतुलित करने के चलते प्राकृतिक परिस्थितियों में SRB 952 के आसपास रहता है क्योंकि मादा शिशु की तुलना में नर शिशु जैविक रूप से कमज़ोर होते है और ऐतिहासिक रूप से भी युद्ध जैसी ज़ोखिमकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण पुरुषों की मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक रही है।
- लेकिन इस मामले में भारत की स्थिति अलग है। भारत SRB के 952 से भी कम रहने का कारण पुत्र प्राथमिकता की सामाजिक बुराई है। इसका मतलब यही है की हम गर्भ में ही लड़कियों को मार रहे हैं।
- इस तरह के कार्यों से भारत में लगभग 63 मिलियन लड़कियों के खो जाने का अनुमान है।
कम लिंगानुपात को बढ़ावा देने वाले तरीके
- 1970 के दशक तक कन्या शिशु वध फीमेल चाइल्ड को मारने का प्रचलित तरीका था।
- किंतु सत्तर के दशक में आनुवंशिक असामान्यताओं का पता लगाने में प्रयुक्त की जाने वाली एम्नियोसेंटेसिस (Amniocentesis) तकनीक तथा अल्ट्रासाउंड प्रौद्योगिकी का भ्रूण के लिंग-निर्धारण में प्रयोग किया जाने लगा।
- पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (2010) की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन प्रौद्योगिकियों ने पुत्र प्राथमिकता जैसी समस्याओं को बढ़ावा दिया।
- लिंग चयन की सुविधाओं के फलने-फूलने के बाद लोग गर्भपात के विकल्प का धड़ल्ले से प्रयोग करने लगे।
लिंगानुपात को संतुलित करने के लिये किये गए सरकारी प्रयास
- घटते लिंगानुपात की रोकथाम हेतु 1994 में सरकार ने प्रसव पूर्व नैदानिक तकनीक (PNDT) अधिनियम लागू किया जिसके तहत माता-पिता को भ्रूण के लिंग संबंधी जानकारी देने पर स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के लिये कड़ी सज़ा और आर्थिक जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
- 2003 में गर्भाधान पूर्व लिंग चयन में सक्षम प्रौद्योगिकियों के आने के बाद इस अधिनियम को संशोधित करते हुए इसे गर्भधारण-पूर्व और प्रसव-पूर्व परीक्षण तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम के रूप में अधिनियमित किया गया।
- इस अधिनियम के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं-
► गर्भाधान पूर्व लिंग चयन तकनीक को प्रतिबंधित करना।
► लिंग चयन संबंधी गर्भपात के लिये जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों के दुरुपयोग को रोकना।
► जिस उद्देश्य से जन्म-पूर्व परीक्षण तकनीकों को विकसित किया गया है, उसी दिशा में उनके समुचित वैज्ञानिक उपयोग को नियमित करना।
► सभी स्तरों पर अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना।
PCPNDT अधिनियम का मूल्यांकन
- भारत में लिंगानुपात में जारी गिरावट दर्शाती है कि यह कानून अपने उद्देश्यों को पाने में विफल रहा है।
- लगभग 17 राज्यों में या तो इस अधिनियम के तहत एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया या इसके तहत दोषसिद्धि दर शून्य रही।
- 2010 में PHFI रिपोर्ट में यह कहा गया कि PC-PNDT को लागू करने वाले कार्मिकों के प्रशिक्षण में काफी अंतराल है।
- इसका अर्थ है कि दोषसिद्धि को सुनिश्चित करने हेतु इस कानून के उल्लंघनकर्त्ताओं के खिलाफ मजबूत केस बनाने में कार्मिक असमर्थ थे।
- सरकारों को PC-PNDT अधिनियम को सख्ती से लागू करने के साथ ही पुत्र प्राथमिकता की बुराई से लड़ने के लिये अधिक संसाधनों का आवंटन करना चाहिये।
- पिछले हफ्ते ही ड्रग्स तकनीकी सलाहकार बोर्ड ने अल्ट्रासाउंड मशीनों को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट में शामिल करने का निर्णय लिया है ताकि इनके आयात को विनियमित किया जा सके।