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सामाजिक न्याय

घुमंतू जनजातियाँ और संबंधित चुनौतियाँ

  • 13 Mar 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री ने हाल ही में संसद को सूचित किया है कि वर्ष 2019 में देश में विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के लिये विकास एवं कल्याण बोर्ड (DWBDNCs) का गठन किया गया था।

  • कल्याण बोर्ड का गठन तीन वर्ष की अवधि के लिये किया गया था, जिसे अधिकतम पाँच वर्ष की अवधि के लिये बढ़ाया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

खानाबदोश/घुमंतू जनजातियों के समक्ष मौजूद चुनौतियाँ

  • रेनके आयोग (2008) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों की मानें तो भारत में लगभग 1,500 घुमंतू एवं अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ और 198 विमुक्त जनजातियाँ हैं, जिनमें तकरीबन 15 करोड़ भारतीय शामिल हैं।
    • ये जनजातियाँ अब भी सामाजिक एवं आर्थिक रूप से हाशिये पर मौजूद हैं और इसमें से कई जनजातियाँ अपने मूल मानवाधिकारों से भी वंचित हैं।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा उनकी पहचान को लेकर है। 
  • बुनियादी अवसंरचना सुविधाओं का अभाव: इन समुदायों के सदस्यों के पास पेयजल, आश्रय और स्वच्छता आदि संबंधी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा ये स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी सुविधाओं से वंचित रहते हैं।
  • स्थानीय प्रशासन का दुर्व्यवहार: विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के संबंध में प्रचलित गलत और अपराधिक धारणाओं के कारण आज भी उन्हें स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया जाता है।
  • सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव: चूँकि इन समुदायों के लोग प्रायः यात्रा पर रहते हैं, इसलिये इनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता है। नतीजतन उनके पास सामाजिक सुरक्षा कवर का अभाव होता है और उन्हें राशन कार्ड, आधार कार्ड आदि भी नहीं जारी किया जाता है।
  • इन समुदायों के बीच जाति वर्गीकरण बहुत स्पष्ट नहीं है, कुछ राज्यों में इन समुदायों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाता है, जबकि कुछ अन्य राज्यों में उन्हें अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) के तहत शामिल किया जाता है।
    • हालाँकि इन समुदायों के अधिकांश लोगों के पास जाति प्रमाण पत्र नहीं होता और इसलिये वे सरकारी कल्याण कार्यक्रमों का लाभ नहीं उठा पाते हैं।

DWBDNCs का दायित्व

  • आवश्यकता के अनुसार, विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों हेतु कल्याणकारी एवं विकास कार्यक्रम तैयार कर उन्हें कार्यान्वित करना।
  • उन स्थानों/क्षेत्रों की पहचान करना जहाँ ये समुदाय निवास करते हैं।
  • मौजूदा कार्यक्रमों तक इन समुदायों की पहुँच में मौजूद अंतराल का आकलन करना और उसकी पहचान करना, इसके अलावा विभिन्न मंत्रालयों/कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ सहयोग के माध्यम से यह सुनिश्चित करना कि मौजूदा कार्यक्रम इन समुदायों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करें।
  • विमुक्‍त, घुमंतू व अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के संदर्भ में भारत सरकार और राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की योजनाओं की प्रगति की निगरानी तथा मूल्यांकन करना।

विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों से संबंधित योजनाएँ 

  • डीएनटी के लिये डॉ. अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति:
    • यह केंद्रीय प्रायोजित योजना वर्ष 2014-15 में विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजाति (DNT) के उन छात्रों के कल्याण हेतु शुरू की गई थी, जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के अंतर्गत नहीं आते हैं।
    • इसके तहत पात्रता के लिये आय सीमा प्रतिवर्ष 2 लाख रुपए निर्धारित की गई है।
    • यह योजना राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है। योजना का वित्तपोषण केंद्र और राज्य द्वारा 75:25 (केंद्र:राज्य) के अनुपात में किया जाता है। 
    • यह योजना विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के बच्चों विशेषकर बालिकाओं के बीच शिक्षा के प्रसार में सहायक है।
  • डीएनटी बालकों और बालिकाओं हेतु छात्रावासों के निर्माण संबंधी नानाजी देशमुख योजना:
    • वर्ष 2014-15 में शुरू की गई यह केंद्र प्रायोजित योजना, राज्य सरकारों/ केंद्रशासित प्रदेशों/केंद्रीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से लागू की गई है।
    • योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के अंतर्गत न आने वाले DNT छात्रों को छात्रावास की सुविधा प्रदान कर उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम बनाना है। 
    • इसके तहत पात्रता के लिये आय सीमा प्रतिवर्ष 2 लाख रुपए निर्धारित की गई है।
    • केंद्र सरकार पूरे देश में प्रतिवर्ष अधिकतम 500 सीटें प्रदान करती है।
    • योजना का व्यय केंद्र और राज्य के बीच 75:25 (केंद्र:राज्य) के अनुपात में साझा किया जाता है।

विमुक्‍त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदाय

  • विमुक्त जनजातियाँ वे हैं, जिन्हें ब्रिटिश शासन के दौरान लागू किये गए आपराधिक जनजाति अधिनियम के तहत अधिसूचित किया गया था, जिसके तहत पूरी आबादी को जन्म से अपराधी घोषित कर दिया गया था।
    • वर्ष 1952 में इस अधिनियम को निरस्त कर दिया गया और समुदायों को विमुक्त कर दिया गया।
  • घुमंतू जनजातियाँ निरंतर भौगोलिक गतिशीलता बनाए रखती हैं, जबकि अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ वे हैं, जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवाजाही तो करती हैं, किंतु वर्ष में एक बार मुख्यतः व्यावसायिक कारणों से अपने निश्चित निवास स्थान पर ज़रूर लौटती हैं। 
    • घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों के बीच अंतर करने हेतु विशिष्ट जातीय या सामाजिक-आर्थिक मानकों को शामिल नहीं किया जाता है, बल्कि यह उनकी गतिशीलता से प्रदर्शित होती है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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