जल्द ही मिलेगी चकमा, हाजोंग शरणार्थियों को भारत की नागरिकता | 16 Sep 2017

चर्चा में क्यों?

गौरतलब है कि भारत सरकार शीघ्र ही तकरीबन एक लाख चकमा (Chakma) और हाजोंग (Hajong) शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करेगी। ये शरणार्थी करीब पाँच दशक पहले पूर्वी पाकिस्तान से भारत आए थे और वर्तमान में देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में बनाए गए राहत शिविरों में निवास कर रहे हैं। विदित हो कि वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार को अरुणाचल प्रदेश में रह रहे अधिकांश चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करने का आदेश दिया था।

चकमा और हाजोंग शरणार्थी कौन हैं?

  • चकमा और हाजोंग शरणार्थी मूलतः पूर्वी पाकिस्तान के चटगांव हिल ट्रैक्ट्स (Chittagong Hill Tracts) के निवासी थे। परन्तु कर्नाफुली (Karnaphuli) नदी पर बनाए गए कैपटाई बांध (Kaptai dam) के कारण जब वर्ष 1960 में उनका क्षेत्र जलमग्न हो गया तो उन्होंने अपने मूल स्थान को छोड़कर भारत में प्रवेश किया।
  • दरअसल, चकमा बौद्ध हैं, जबकि हाजोंग हिन्दू हैं। इन दोनों जनजातियों ने बांग्लादेश में कथित तौर पर धार्मिक उत्पीड़न का सामना किया तथा असम की लुशाई पहाड़ी (जिसे अब मिज़ोरम कहा जाता है) के माध्यम से भारत में प्रवेश किया। 
  • इसके पश्चात् भारत सरकार द्वारा अधिकांश शरणार्थियों को उत्तर-पूर्व सीमान्त एजेंसी (जिसे अब अरुणाचल प्रदेश कहा जाता है) में बनाए गए राहत शिविरों में भेज दिया गया।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 1964-69 में इनकी संख्या मात्र 5,000 थी, जबकि वर्तमान में इनकी संख्या एक लाख हो चुकी है। इसके अतिरिक्त, वर्तमान में उनके पास न ही भारत की नागरिकता है और न ही भूमि संबंधी अधिकार, परन्तु उन्हें राज्य सरकार द्वारा मूलभूत सुविधाएँ (basic amenities) मुहैया कराई जाती हैं।
  • इन्हें शरणार्थी क्यों कहा जाता है?
  • भारत में निवास कर रहे चकमा और हाजोंग शरणार्थी भारतीय नागरिक हैं। इनमें से अधिकांश मिज़ोरम से हैं जोकि मिज़ो जनजातीय संघर्ष के कारण दक्षिणी त्रिपुरा के राहत शिविरों में रहते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि त्रिपुरा में रह रहे इन भारतीय चकमा लोगों ने मिज़ोरम के चुनावों में भी मतदान किया था। इसके लिये चुनाव आयोग ने राहत शिविरों में ही मतदान केंद्र बनाए थे।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, केवल अरुणाचल प्रदेश में ही 47,471 चकमा लोग रह रहे हैं।
  • चकमा और हाजोंग जनजातियाँ मुख्यतः पूर्वोत्तर भारत, पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश और म्याँमार में पाई जाती हैं।

अरुणाचल प्रदेश को चकमाओं से क्या समस्या है?

  • वर्ष 1960 में जब चकमा शरणार्थियों को उत्तर-पूर्व सीमान्त एजेंसी (नेफा) के तिरप, लोहित और सुबनसिरी ज़िले की खाली भूमियों पर बने राहत शिविरों में भेजा गया तो वहाँ इसका खुला विरोध हुआ। 
  • परन्तु जब वर्ष 1972 में नेफा का नाम बदलकर अरुणाचल प्रदेश कर दिया गया और इसे केंद्र शासित प्रदेश तथा बाद में राज्य का दर्ज़ा दे दिया गया तो इस विरोध ने और अधिक विकराल रूप धारण कर लिया।
  • अरुणाचल प्रदेश के स्थानीय तथा क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने अपनी भूमि पर शरणार्थियों को बसाये जाने का विरोध किया था। उनका मानना था कि इससे राज्य की जनसांखिकीय में बड़ा बदलाव आएगा और उन्हें अपने पास उपलब्ध सीमित संसाधनों का भी बँटवारा करना पड़ेगा। 
  • इसी आधार पर अरुणाचल प्रदेश के अनेक संगठनों और सिविल सोसाइटी ने आज इन शरणार्थियों को नागरिकता देने का भी विरोध किया है। 

निष्कर्ष

केंद्र सरकार इस मुद्दे के लिये एक उपयुक्त समाधान की तलाश कर रही है तथा इसने यह प्रस्तावित किया है कि चकमा और हाजोंग शरणार्थियों को कुछ अधिकार (जैसे-भूमि के स्वामित्व संबंधी) नहीं दिये जाएंगे। विदित हो कि ये अधिकार अरुणाचल प्रदेश की अनुसूचित जनजातियों को प्राप्त हैं। हालाँकि, सरकार का कहना है कि उन्हें इनर लाइन परमिट (Inner Line permits) दिया जाएगा। ध्यातव्य है कि अरुणाचल प्रदेश में रह रहे गैर-स्थानीय निवासियों के पास वहाँ कार्य करने तथा यात्रा करने के लिये इनर लाइन परमिट होना आवश्यक है।