प्रशासनिक सेवाएँ तथा केंद्र बनाम दिल्ली सरकार | 16 Jan 2023
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय संविधान का 69वाँ संशोधन, संविधान का अनुच्छेद 239AA, सामूहिक उत्तरदायित्त्व मेन्स के लिये:नई दिल्ली सरकार बनाम केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021, सहकारी संघवाद, संवैधानिक संशोधन |
चर्चा में क्यों?
प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण का मुद्दा दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच विवाद का विषय बना हुआ है, जिसकी सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय के पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा की जा रही है।
- इसी तरह के एक विवाद में एक अन्य संविधान पीठ द्वारा लगभग पाँच वर्ष पहले राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया गया था।
विवाद की पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2017 का निर्णय:
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 के अपने फैसले में कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) के प्रशासनिक उद्देश्यों के लिये उपराज्यपाल को हमेशा मंत्रिपरिषद की सलाह और सिफारिशों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है।
- वर्ष 2017 में अपील के जवाब में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 239AA की व्याख्या पर निर्णय लेने के लिये मामले को आगे संदर्भित किया।
- वर्ष 2018 का निर्णय:
- पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से माना था कि दिल्ली के उपराज्यपाल को निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह लेनी चाहिये और दोनों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
- वर्ष 2019 का निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने सेवाओं के संदर्भ में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की शक्तियों के सवाल पर एक असमान मत दिया तथा मामले को आगे की सुनवाई के लिये तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया था।
- जबकि एकल न्यायाधीश ने निर्णय दिया था कि दिल्ली सरकार के पास प्रशासनिक सेवाओं पर कोई शक्ति नहीं है।
- हालाँकि एक अन्य न्यायाधीश ने कहा था कि नौकरशाही के शीर्ष अधिकारियों (संयुक्त निदेशक और उससे उच्च) की नियुक्ति या स्थानांतरण केवल केंद्र सरकार द्वारा की जा सकती है तथा अन्य नौकरशाहों से संबंधित मामलों के लिये मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल का विचार मान्य होगा।
- सर्वोच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ ने सेवाओं के संदर्भ में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की शक्तियों के सवाल पर एक असमान मत दिया तथा मामले को आगे की सुनवाई के लिये तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया था।
- वर्ष 2022 का मामला:
- केंद्र ने 27 अप्रैल, 2022 को एक बड़ी पीठ को संदर्भित करने की मांग यह तर्क देते हुए की कि उसे राष्ट्रीय राजधानी और "राष्ट्र का चेहरा" होने के कारण दिल्ली में अधिकारियों के स्थानांतरण एवं नियुक्ति करने की शक्ति की आवश्यकता है।
- न्यायालय ने सहमति व्यक्त की कि "सेवाओं" शब्द के संबंध में केंद्र और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधायी एवं कार्यकारी शक्तियों के दायरे से संबंधित सीमित प्रश्न को संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के संदर्भ में संविधान पीठ द्वारा एक आधिकारिक निर्णय की आवश्यकता होगी।
मुद्दे में वाद और प्रतिवाद:
- वाद:
- केंद्र लगातार कहता रहा है कि चूँकि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी और देश का चेहरा है इसलिये प्रशासनिक सेवाओं पर इसका नियंत्रण होना चाहिये, जिसमें नियुक्तियाँ और स्थानांतरण शामिल हैं।
- प्रतिवाद:
- दिल्ली सरकार ने तर्क दिया है कि संघवाद के हित में निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास स्थानांतरण और नियुक्ति की शक्ति होनी चाहिये।
- दिल्ली सरकार ने यह भी दलील दी थी कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 में हालिया संशोधन संविधान के मूल ढाँचे के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
नई दिल्ली का शासन मॉडल:
- संविधान की अनुसूची 1 के तहत दिल्ली का दर्जा एक केंद्रशासित प्रदेश का है, किंतु अनुच्छेद 239AA के तहत इसे 'राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र' का नाम दिया गया है।
- भारत के संविधान में 69वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 239AA को सम्मिलित किया गया, जिसने केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को एलजी द्वारा प्रशासित केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया जो कि निर्वाचित विधानसभा की सहायता और सलाह पर काम करता है।
- हालाँकि 'सहायता और सलाह' खंड केवल उन मामलों से संबंधित है जिन पर निर्वाचित विधानसभा को सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस तथा भूमि के अपवाद के साथ राज्य और समवर्ती सूची के तहत शक्तियाँ प्राप्त हैं।
- इसके अलावा अनुच्छेद 239AA यह भी कहता है कि एलजी को या तो मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा अथवा वह राष्ट्रपति द्वारा लिये गए निर्णय को लागू करने के लिये बाध्य है।
- साथ ही अनुच्छेद 239AA में यह व्यवस्था है कि उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच किसी मुद्दे पर मतभेद होने पर एलजी मामले को राष्ट्रपति के पास भेज सकता है।
- इस प्रकार एलजी और निर्वाचित सरकार के बीच यह द्वैध नियंत्रण सत्ता संघर्ष की ओर उन्मुख हो जाता है।
आगे की राह
- संविधान की संघीय प्रकृति इसकी मूल विशेषता है और इसे बदला नहीं जा सकता है, इस प्रकार सत्ता में रहने वाले हितधारक हमारे संविधान की संघीय विशेषता की रक्षा करना चाहते हैं।
- भारत जैसे विविध और बड़े देश में संघवाद के स्तंभों, यानी राज्यों की स्वायत्तता, राष्ट्रीय एकीकरण, केंद्रीकरण, विकेंद्रीकरण, राष्ट्रीयकरण तथा क्षेत्रीयकरण के बीच एक उचित संतुलन की आवश्यकता है।
- अत्यधिक राजनीतिक केंद्रीकरण या अराजक राजनीतिक विकेंद्रीकरण दोनों ही भारतीय संघवाद को कमज़ोर कर सकते हैं।
- इस विकट समस्या का संतोषजनक और स्थायी समाधान विधान-पुस्तक में नहीं बल्कि सत्ता में बैठे लोगों की अंतरात्मा में खोजना होगा।
- लोकतंत्र के स्तंभों के रूप में सामूहिक उत्तरदायित्त्व, सहायता और सलाह के साथ एक संतुलन खोजना एवं यह तय करना महत्त्वपूर्ण है कि दिल्ली में सेवाओं पर केंद्र या दिल्ली सरकार का नियंत्रण होना चाहिये या नहीं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. क्या सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनीतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018) |