पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने वाले विधेयक के विरोध में केंद्र | 21 Feb 2017

पृष्ठभूमि

विदित हो कि हाल ही में पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजक देश घोषित किये जाने और उसके साथ आर्थिक एवं व्यापारिक संबंध समाप्त किये जाने संबंधी प्रावधान वाला एक निजी विधेयक राज्य सभा में पेश किया गया था। निर्दलीय सदस्य राजीव चंद्रशेखर ने ‘आतंकवाद प्रायोजक देश की घोषणा विधेयक, 2016’ उच्च सदन में पेश किया था। अब केंद्र सरकार ने यह कहा है कि वह इस विधेयक का समर्थन नहीं करेगी।

केंद्र सरकार क्यों नहीं करेगी विधेयक का समर्थन?

केंद्र सरकार ने कहा है कि वह इस विधेयक का समर्थन इसलिये नहीं करेगी क्योंकि इस विधेयक का समर्थन करना जेनेवा कन्वेंशन में तय किये गए अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन होगा। भारत और पाकिस्तान के मध्य द्विपक्षीय संबंध है जिसके तहत दोनों देशों में एक-दूसरे के दूतावास हैं, साथ ही दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध भी हैं। ऐसे में भारत पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित नहीं कर सकता क्योंकि इसका अर्थ पाकिस्तान से हमारे तमाम सबंधों का खात्मा करना होगा। विदित हो की भारत, हमेशा से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को लेकर कड़ा रुख अपनाता रहा है लेकिन दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों को खत्म नहीं किया है।

निष्कर्ष

  • विदित हो कि हाल के दिनों में पाकिस्तान की तरफ से भारत-पाक संबंधों में कुछ सकारात्मक पहल की गई है। गौरतलब है कि आतंकवाद को लेकर उसका रुख बदलता प्रतीत हो रहा है। लाल कलंदर दरगाह पर हमले के बाद पाक ने 100 से अधिक आतंकी मार गिराए हैं। पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने मुंबई आतंकी हमले के साजिशकर्ता और जमात-उद्-दावा के प्रमुख हाफिज़ सईद को आतंकवाद निरोधक कानून के दायरे में लाकर उसके आतंकवाद से संबंध होने को मौन स्वीकृति भी दे दी है। पाकिस्तान के पंजाब सरकार ने हाफिज़ सईद और उसके करीबी सहयोगी काज़ी काशिफ को आतंकवाद निरोधक कानून (एटीए) की चौथी अनुसूची में डाल दिया है। हालाँकि विशेषज्ञों का मानना यह है कि पाकिस्तान ने ऐसा अमेरिका के दबाव में किया है, वज़ह चाहे जो भी हो भारत के लिये हालिया घटनाक्रम निश्चित रूप से लाभकारी हैं।
  • जहाँ तक निजी विधेयक का संबंध है, भारतीय संसद क़ानून बनाती है और शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत के अनुसार वह कार्यपालिका से स्वतंत्र है। हमारी संसद में सरकारी विधेयकों के अलावा सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से विधेयक पेश करने का अधिकार है, हालाँकि सच्चाई यह है कि विधायिका का अधिकांश कार्य कार्यपालिका यानी सरकार ही तय करती है। एक तरह से पार्टी लाइन ही क़ानूनों की दिशा तय करती है। इन परिस्थितियों में विरले ही कभी निजी विधेयक कानून बन पाता है, जबकि यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण व्यवस्था है।