अंतर्राष्ट्रीय संबंध
केंद्रीय तिब्बती राहत समिति
- 09 Apr 2022
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय तिब्बती राहत समिति, टीपीआईई (निर्वासन में तिब्बती संसद), शिमला कन्वेंशन। मेन्स के लिये:भारत की तिब्बत नीति, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने दलाई लामा की केंद्रीय तिब्बती राहत समिति (Central Tibetan Relief Committee- CTRC) को 40 करोड़ रुपए के सहायता अनुदान प्रदान करने की योजना का विस्तार कर वित्तीय वर्ष 2025-26 तक पाँच वर्षों के लिये बढ़ा दिया है।
- यह योजना देश के 12 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में फैली तिब्बती बस्तियों में रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों के लिये प्रशासनिक खर्चों और सामाजिक कल्याण खर्चों को पूरा करने हेतु सीटीआरसी को 8 करोड़ रुपए का वार्षिक अनुदान प्रदान करती है।
केंद्रीय तिब्बती राहत समिति:
- इसे वर्ष 2015 में शुरू किया गया था। समिति का मुख्य उद्देश्य निजी, स्वैच्छिक एजेंसियों और तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास एवं उन्हें बसाने के लिये भारत सरकार के प्रयासों के साथ समन्वय स्थापित करना है।
- इस समिति में भारत, नेपाल और भूटान में स्थित 53 तिब्बती बस्तियों के सदस्य शामिल हैं।
- यह तिब्बत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को संरक्षित करने तथा निर्वासित तिब्बती लोगों के स्थायी लोकतांत्रिक समुदायों का निर्माण करने और उनके सतत् रखरखाव हेतु समर्पित है।
- यह सरकारों, विशेष रूप से भारत, नेपाल और भूटान, परोपकारी संगठनों और व्यक्तियों की उदार अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर निर्भर है।
- सभी CTRC गतिविधियाँ निदेशक मंडल की सहमति और समर्थन तथा TPiE (निर्वासन में तिब्बती संसद) से अनुमोदन के साथ की जाती हैं।
- TPiE का मुख्यालय हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले के धर्मशाला में है, जिसके अनुसार पूरे भारत में 1 लाख से अधिक तिब्बती बसे हुए हैं।
तिब्बती शरणार्थियों के पलायन का कारण:
- वर्ष 1912 से वर्ष 1949 में चीन के जनवादी गणराज्य की स्थापना तक किसी भी चीनी सरकार द्वारा चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region- TAR) पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया गया।
- कई तिब्बतियों का कहना है कि वे उस समय के अधिकांश समय अनिवार्य रूप से स्वतंत्र थे और वर्ष 1950 में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा TAR पर कब्ज़ा करने के बाद वहाँ चीन के शासन का वे विरोध करते रहे।
- वर्ष 1951 तक अकेले दलाई लामा की सरकार ने इस भूमि/क्षेत्र पर शासन किया।
- तिब्बत तब तक "चीन" के अंतर्गत नहीं था जब तक कि माओत्से तुंग की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ( People's Liberation Army- PLA) ने इस क्षेत्र में अपने सैनिकों के साथ मार्च नहीं किया।
- इसे अक्सर तिब्बती लोगों और तीसरे पक्ष के टिप्पणीकारों द्वारा "सांस्कृतिक नरसंहार" (Cultural Genocide) के रूप में वर्णित किया गया है।
- वर्ष 1959 का असफल तिब्बती विद्रोह, जिसमें तिब्बतियों ने चीन की सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयास में विद्रोह किया तथा यह 14वें दलाई लामा के भागकर भारत आने का कारण बना।
- 29 अप्रैल, 1959 में दलाई लामा द्वारा उत्तर भारतीय हिल स्टेशन मसूरी में तिब्बती निर्वासन प्रशासन (Tibetan Exile Administration) की स्थापना की गई।
- इसे आध्यात्मिक दलाई लामा के केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (Central Tibetan Administration- CTA) का नाम दिया गया है जो स्वतंत्र तिब्बत की सरकार की निरंतरता का परिणाम था।
- मई 1960 में CTA को धर्मशाला में स्थानांतरित कर दिया गया।
भारत की तिब्बत नीति:
- तिब्बत वर्षो से भारत का एक अच्छा पड़ोसी रहा है, क्योंकि भारत की अधिकांश सीमाओं सहित 3500 किमी. LAC तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के साथ जुड़ा है, न कि शेष चीन के साथ।
- वर्ष 1914 में चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने ब्रिटिश भारत के साथ शिमला सम्मेलन पर हस्ताक्षर किये, जिसके तहत सीमाओं को चिह्नित किया गया।
- हालाँकि वर्ष 1950 में चीन द्वारा तिब्बत के अधिग्रहण के बाद चीन ने इस सम्मेलन और मैकमोहन रेखा को अस्वीकार कर दिया, जिसने दोनों देशों को विभाजित किया था।
- इसके अलावा वर्ष 1954 में भारत ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें तिब्बत को ‘चीन के तिब्बत क्षेत्र’ के रूप में मान्यता देने पर सहमति हुई।
- वर्ष 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद ‘दलाई लामा’ (तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक नेता) और उनके कई अनुयायी भारत आ गए।
- पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें और तिब्बती शरणार्थियों को आश्रय दिया तथा निर्वासन में तिब्बती सरकार की स्थापना में मदद की।
- आधिकारिक भारतीय नीति यह है कि दलाई लामा एक आध्यात्मिक नेता हैं और भारत में एक लाख से अधिक निर्वासित लोगों वाले तिब्बती समुदाय को किसी भी राजनीतिक गतिविधि की अनुमति नहीं है।
- भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव की स्थिति में भारत की तिब्बत नीति में बदलाव आया है।
- नीति में यह बदलाव सार्वजनिक मंचों पर दलाई लामा के साथ सक्रिय रूप से संलग्न होने वाली भारत सरकार की नीति को चिह्नित करता है।