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भारतीय अर्थव्यवस्था

केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप के कारण

  • 02 May 2018
  • 5 min read

संदर्भ

लगभग दो हफ्ते पहले अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने भारत के केंद्रीय बैंक द्वारा लगातार किये जा रहे विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप का हवाला देते हुए भारत को अपनी ‘निगरानी सूची’ में जोड़ दिया है, जिसके अंतर्गत अमेरिका द्वारा भारतीय आर्थिक नीतियों और विदेशी मुद्रा विनिमय पर नज़र रखी जाएगी। इससे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा पिछले कुछ वर्षों से किये जा रहे विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप की आलोचना की जा रही है। हालाँकि, इसे आरबीआई की बफर रिज़र्व तैयार करने की नीति का भाग माना जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • हाल के दिनों में विदेशी निवेशकों ने उभरते बाज़ारों से धन निकालना शुरू कर दिया है। इससे भारत पर बड़ा प्रभाव पड़ा है और भारतीय रुपया 14 माह के निचले स्तर के करीब है।
  • ऐसे समय में जब भारत के चालू खाता घाटे में वृद्धि के साथ ही मुद्रा बाज़ार में कमजोरी बने रहने की  संभावना है, तब केंद्रीय बैंक द्वारा तैयार किया जा रहा यह बफर रिजर्व रुपए में खुली गिरावट को रोकने का काम करेगा। 
  • वर्ष 2013 में भी ऐसा ही देखने को मिला था, जब उभरते बाज़ारों से बड़ी मात्रा में धन निकाला गया था और भारत इससे बहुत प्रभावित हुआ था।
  • भारत उस समय इंडोनेशिया, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील के साथ उन पाँच उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल था, जो इस धन प्रवाह से सर्वाधिक प्रभावित हुई थीं। 
  • उस छोटे संकट से यह सीख मिली कि हमें अपने आयात कवर को बढ़ाना होगा ताकि भविष्य में ऐसे संकटों से बचा जा सके। परिणामस्वरूप, भारत के बाह्य भेद्यता संकेतक (external vulnerability indicators) 2013 की तुलना में आज काफी मज़बूत दिखते हैं।
  • भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब $424 बिलियन है, जो 2013 के 6 महीने की तुलना में लगभग 10 महीने का आयात कवर प्रदान करता है।
  • संकट के समय मुद्रा हस्तक्षेप की आवश्यकता विदेशी मुद्रा भंडार के निर्माण के महत्त्व को रेखांकित करती है। 1997 के एशियाई संकट के चलते ये सबक उभरते बाज़ारों द्वारा सीखे गए थे।
  • उस समय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा प्रभावित देशों को इस संकट से बाहर निकालने के एवज़ में कड़ी शर्तें आरोपित की गई थीं, जिससे उन देशों को भविष्य में इस तरह के अपमान से बचने के उपाय तैयार करने की आवश्यकता महसूस हुई।
  • चीन जैसे उभरते बाज़ारों ने चालू खाता अधिशेष द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार जमा किये हैं, जबकि भारत में यह भंडार पूंजी आगतों के कारण जमा हुआ है।
  • भारत का कुल बाह्य ऋण आरबीआई के विदेशी मुद्रा भंडार से अधिक है, जबकि चीन के मामले में, यह उसके केंद्रीय बैंक द्वारा रखे गए भंडार के आधे से भी कम है। इस प्रकार, इस पर चीन के साथ भी कोई तुलना नहीं हो सकती है।
  • यह भी ध्यान देने योग्य है कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के कई केंद्रीय बैंकों की गैर-परंपरागत मौद्रिक नीतियाँ मुद्रा बाज़ारों को विकृत करती हैं।
  • अमेरिकी फेडरल बैंक और यूरोपीय सेंट्रल बैंक द्वारा चलाए गए बड़े पैमाने के बॉण्ड-खरीद कार्यक्रमों के कारण भी मुद्रा की कीमतों पर प्रभाव पड़ता है।
  • ध्यातव्य है कि 2011 और 2015 के बीच स्विस नेशनल बैंक (SNB) ने स्विस फ्रैंक को निर्धारित अधिकतम सीमा तक रोकने हेतु सार्वजनिक रूप से मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करने की घोषणा की थी।
  • अतः आरबीआई द्वारा मुद्रा बाज़ार में किये जा रहे रक्षोपाय उचित प्रतीत होते हैं एवं जो उभरते बाज़ार पूंजी आगतों के समय रिज़र्व तैयार करते हैं, उन्हें करेंसी मैनीपुलेटर (currency manipulator) नहीं माना जाना चाहिये।
  • वे केवल इतिहास से सीखने की कोशिश कर रहे हैं और अपने भविष्य की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं।
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