शासन व्यवस्था
2021 में एकत्रित नहीं किये जाएंगे ‘जातिगत’ आँकड़े
- 03 Aug 2019
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चर्चा में क्यों?
द हिंदू समाचार-पत्र द्वारा प्रकाशित एक खबर में यह संभावना व्यक्त की गई है कि वर्ष 2021 में होने वाली जनगणना में ‘जातिगत’ आँकड़ों को एकत्रित नहीं किया जाएगा।
जातिगत आँकड़े एकत्रित न करने के पीछे तर्क
- भारत में जाति के संदर्भ में अभी तक कोई मानकीकरण नहीं है और इसलिये आँकड़े एकत्र करना काफी मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिये यदि कोई व्यक्ति यादव जाति से है तो जाति में मानकीकरण न होने के कारण वह फॉर्म में यदु, यदुवंशी या कुछ और भी लिख सकता है, परंतु इससे जातिगत आँकड़ों में अंतर पैदा होता है। कई बार लोग अपनी जाति और अपने गोत्र में भी भ्रमित हो जाते हैं।
- अधिकारियों के अनुसार, जाति के आँकड़ों की गणना करना काफी कठिन होता है, जैसा कि पिछली बार जब ये आँकड़े एकत्रित किये गए थे तो लगभग 40 लाख जातियों के नाम सामने आए थे।
- ऐसे में यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि वर्ष 2021 की जनगणना मात्र अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के आँकड़ों तक ही सीमित रहेगी।
- गौरतलब है कि सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना (Socio Economic Caste Census-SECC) के तहत वर्ष 2011 में एकत्रित किये गए ‘जातिगत आँकड़ों’ को अभी तक केंद्र सरकार द्वारा जारी नहीं किया गया है।
मोबाइल एप से होगी वर्ष 2021 की जनगणना:
- भारतीय जनगणना का इतिहास लगभग 140 वर्ष पुराना है, परंतु इस अवधि में यह पहली बार होगा जब जनगणना के आँकड़ों का संग्रहण मोबाईल एप के ज़रिये किया जाएगा।
- इस कार्य के लिये लगभग 33 लाख प्रशिक्षित जनगणना कर्मियों की मदद ली जाएगी।
- आँकड़ों का संग्रहण कागज़ों पर भी किया जा सकता है लेकिन सभी जनगणना कर्मियों के लिये इसे इलेक्ट्रॉनिक रूप में भेजना अनिवार्य होगा।
- जनगणना कर्मी वर्ष 2020 में आवासों की सूची बनाने (House Listing) का कार्य शुरू करेंगे और जनगणना का कार्य फरवरी 2021 से शुरू होगा।
- इस जनगणना को वेबसाइट पर तालिकाओं के रूप में प्रकाशित किया जाएगा।
लाभ
- एकत्रित किये गए आँकड़ों को इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में संग्रहीत कर हमेशा के लिये सुरक्षित रखा जा सकता है।
- इसके अलावा जनगणना का डिजिटलीकरण यह भी सुनिश्चित करेगा कि जनगणना के आँकड़े प्रकाशित होने में भी ज़्यादा समय न लगे। ऐसे में यह संभव हो सकता है अधिकांश आँकड़ें वर्ष 2024-2025 तक सामने आ जाएँ।
पृष्ठभूमि
- जनगणना में केवल व्यक्तियों की ही गिनती नहीं होती, बल्कि इससे सामाजिक-आर्थिक आँकड़ों का भी संग्रह होता है। इसके आधार पर नीतियों का निर्माण होता है और संसाधनों का आवंटन किया जाता है। इसके अलावा जनगणना के आँकड़ों के आधार पर चुनाव क्षेत्रों का निर्धारण और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों को आरक्षण किया जाता है। अतः यह आवश्यक है कि आँकड़ों के संग्रह में सावधानी बरती जाए और गोपनीयता बनाए रखी जाए।