‘समेकित सिल्क विकास योजना’ : सिल्क उत्पादन में वृद्धि हेतु एक नया कदम | 22 Mar 2018
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति द्वारा 2017-18 से 2019-20 तक आगामी तीन वर्षों के लिये केंद्रीय क्षेत्र की ‘समेकित सिल्क उद्योग विकास योजना’’ को मंज़ूरी दी गई है।
इस योजना के निम्नलिखित चार भाग हैं –
1. अनुसंधान और विकास, प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण और सूचना प्रौद्योगिकी पहल।
2. अंडा संरचना और किसान विस्तार केंद्र।
3. बीज, धागे और रेशम उत्पादों के लिये समन्वय और बाज़ार का विकास।
4. रेशम परीक्षण सुविधाओं, खेत आधारित और कच्चे रेशम के कोवे के बाद टेक्नोलॉजी उन्नयन तथा निर्यात ब्रॉण्ड का संवर्द्धन करने की श्रृंखला के अलावा गुणवत्ता प्रमाणन प्रणाली।
इसकी वित्तीय व्यय व्यवस्था क्या होगी?
- वर्ष 2017-18 से 2019-20 के तीन वर्षों में योजना के कार्यान्वयन के लिये 2161.68 करोड़ रुपए के कुल आवंटन को मंज़ूरी दी गई है। मंत्रालय द्वारा केंद्रीय रेशम बोर्ड के ज़रिये योजना को लागू किया जाएगा।
इस योजना का प्रभाव क्या होगा?
- इस योजना से निम्नलिखित प्रक्रियाओं के साथ रेशम के उत्पादन में 2016-17 के 30348 मीट्रिक टन से बढ़कर 2019-20 की समाप्ति तक 38500 मीट्रिक टन होने की संभावना व्यक्त की गई है :
♦ वर्ष 2020 तक आयात के विकल्प के रूप में प्रतिवर्ष 8,500 मीट्रिक टन बाइवोल्टाइन रेशम का उत्पादन।
♦ वर्ष 2019-20 की समाप्ति तक रेशम का उत्पादन वर्तमान 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के स्तर से 111 किलोग्राम के स्तर तक लाने के लिये अनुसंधान और विकास।
♦ बाज़ार की मांग को पूरा करने के लिये गुणवत्तापूर्ण रेशम के उत्पादन संबंधी मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत उन्नत रीलिंग मशीनों (शहतूत के लिये स्वचालित रीलिंग मशीन; बेहतर रीलिंग/कताई मशीनरी और वन्य रेशम के लिये बुनियादी रीलिंग मशीनें) का बड़े पैमाने पर प्रसार। - इस योजना से महिला अधिकारिता को बढ़ावा मिलेगा और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा समाज के अन्य कमज़ोर वर्गों को आजीविका के अवसर मिलेंगे।
- इस योजना से 2020 तक तकरीबन 85 लाख से 1 करोड़ लोगों के लिये लाभकर रोज़गार बढ़ाने में मदद मिलेगी।
पूर्व की योजना से तुलना करने पर
इस योजना में पूर्व की योजना के मुकाबले निम्नलिखित सुधार किये गए हैं :
- इस योजना का उद्देश्य 2022 तक रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना है। इस लक्ष्य को हासिल कर लेने पर वर्ष 2022 तक भारत में उच्च कोटि के रेशम का उत्पादन 20,650 मीट्रिक टन तक पहुँचने की संभावना है, जो वर्तमान में 11,326 मीट्रिक टन है। इससे एक लाभ यह होगा कि इससे आयात घटकर शून्य हो जाएगा।
- पहली बार उच्च श्रेणी की गुणवत्ता वाले रेशम के उत्पादन में सुधार करने के पक्ष पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है।
- इस योजना के कार्यान्वयन की रणनीति स्पष्ट रूप से ग्रामीण विकास की मनरेगा, आरकेवीवाई (Rashtriya Krishi Vikas Yojana) और कृषि मंत्रालय की पीएमकेएसवाई (Prime Minister Krishi Sinchayee Yojana) जैसी अन्य योजनाओं के साथ राज्य स्तर की योजनाओं के मिलन पर आधारित है।
- बीमारी प्रतिरोधी रेशम के कीड़े, जीवधारी पौध में सुधार, उत्पादकता बढ़ाने संबंधी साधनों, रीलिंग और कताई के लिये सामग्री आदि से जुड़ी अनुसंधान तथा विकास परियोजनाओं का कार्य मंत्रालयों अर्थात् विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कृषि और मानव संसाधन विकास मंत्रालयों के सहयोग से किया जाएगा।
योजना का उद्देश्य क्या है?
- योजना का प्रमुख उद्देश्य अनुसंधान और विकास के ज़रिये रेशम की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार लाना है।
- इस संबंध में अनुसंधान और विकास का मुख्य ज़ोर उन्नत क्रॉसब्रीड रेशम और आयात के विकल्प के रूप में बाइवोल्टाइन रेशम को बढ़ावा देना है ताकि भारत में बाइवोल्टाइन रेशम का उत्पादन इस स्तर तक बढ़ाया जा सके कि 2022 तक कच्चे रेशम का आयात नगण्य हो जाए और भारत रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर हो।
प्रमुख विशेषताएँ
- अनुसंधान और विकास में उन्नत किस्मों के विकास के ज़रिये प्रजाति में सुधार और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अनुसंधान संगठनों, जैसे- आईआईटी, सीएसआईआर, भारतीय विज्ञान संस्थान एवं जापान, चीन, बल्गारिया आदि में रेशम उत्पादन के अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर अनुसंधान के माध्यम से बीमारी प्रतिरोधी रेशम कीट पालन में सुधार; कच्चे रेशम के कोवे से पूर्व और कोवे के बाद के क्षेत्रों में तकनीकी सुधार पर विशेष बल दिया जा रहा है।
- इसके अंतर्गत तकनीकी सुधार और सस्ते मशीनीकरण पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा।
- रेशम के कीड़ों के उप-उत्पादों (प्यूपा), कॉस्मेटिक में इस्तेमाल के लिये सेरिसिन और बिना बुने वस्त्रों, रेशम डेनिम, रेशम निट आदि के विविधीकरण पर वर्द्धित मूल्य वसूली के लिये भी विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा।
- अंडा क्षेत्र के अंतर्गत अंडा उत्पादन इकाइयों को मज़बूत बनाया जाएगा ताकि बढ़े हुए रेशम उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिये उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के अलावा उत्पादन नेटवर्क में गुणवत्तापूर्ण मानकों को स्थापित किया जा सके।
- गुणवत्तापूर्ण अंडा ककूनों के उत्पादन के लिये चौकी कीटों के उत्पादन तथा आपूर्ति के लिये इनक्यूबेशन की सुविधाओं के साथ चौकी रियरिंग केंद्रों और गुणवत्तापूर्ण अंडों के लिये निजी ग्रेनियरों के लिये सहायता भी प्रदान की जाएगी।
- अन्य प्रयासों में नए शीत-भंडारण स्थापित करना, मोबाइल डिसइंफेक्शन इकाइयाँ प्रदान करना और मशीनीकरण के लिये उपकरण सहायता शामिल है।
- सीड कानून के अंतर्गत पंजीकरण की प्रक्रिया और अंडा उत्पादन केंद्रों द्वारा रिपोर्टिंग, मूलभूत सीड फार्म, विस्तार केंद्रों को वेब आधारित सॉफ्टवेयर विकसित कर स्वचालित बनाया जाएगा।
- इस योजना के अंतर्गत सभी लाभान्वितों, रेशम पालकों, सीड उत्पादकों, चौकी रियररों को आधार से जोड़कर डीबीटी मोड में लाया जाएगा।
- शिकायतों के समय पर निवारण और सभी कार्यक्रमों तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये एक हेल्पलाइन भी स्थापित की जाएगी।
- भारतीय रेशम के ब्रॉण्ड प्रमोशन को सिल्क मार्क द्वारा गुणवत्ता प्रमाणपत्र के ज़रिये न केवल घरेलू बाज़ार में बल्कि निर्यात बाज़ार में भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
- रेशम के कीड़ों के अंडे, ककून एवं कच्चे रेशम को ककून परीक्षण केंद्र और रेशम परीक्षण केंद्रों की स्थापना कर बढ़ावा दिया जाएगा।
- उत्पाद और डिज़ाइन विकसित करने के लिये निफ्ट और एनआईडी के साथ सहयोग को मज़बूत करने के प्रयास किये जा रहे हैं।